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Written By ND

आई बसंती होली

Holi Poem | आई बसंती होली
- आर. सूर्य कुमार
ND

ऊपर नीला-नीला आकाश,
नीचे हरी-भरी धरती।

लाल-लाल खिला पलाश
सृष्टि की छवि मन हरती।

फिर अपने आंगन में
आई बसंती होली।

मन पुलकित, तन पुलकित
पुलकित हर दिवस निशा।

कण सुरभित, क्षण सुरभित,
सुरभित दिशा-दिशा।

फिर अपने आंगन में
आई बसंती होली।

यत्र-तत्र रंग ही रंग,
जीवन के रंग अपार।

प्रीति-रीति संग हो संग,
हुआ त्योहार साकार।

फिर अपने आंगन में,
आई बसंती होली।

मानो निकले पाथर के पर,
आनंद का अनूठा लगन।

उभर उठे सप्त स्वर,
गायन में कोकिल मगन।

फिर अपने आंगन में
आई बसंती होली।

बजा मंजीरा, बजा ढोल,
जग झूम-झूम उठ जागा,
कैसे सजे सुंदर बोल,
यह कैसा सुरीला फाग।

फिर अपने आंगन में,
आई बसंती होली।