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Last Updated : रविवार, 6 मार्च 2022 (17:25 IST)

Holi Katha : होलिका के रंगोत्सव परंपरा की 5 पौराणिक कथाएं

Holi Katha : होलिका के रंगोत्सव परंपरा की 5 पौराणिक कथाएं - Holi ki pauranik katha
Holi ki pauranik katha: होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है इसके पीछे कुछ कारण या परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है, परंतु 5 ऐसी पौराणिक कथाएं हैं जिनके कारण होली का पर्व या रंगोत्सव मनाया जाता है। आओ जानते हैं कि आखिर इस त्योहार को मनाने की क्या है कथा।
 
 
1. आर्यों का होलका : प्राचीनकाल में होली को होलाका के नाम से जाना जाता था और इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे। इस पर्व में होलका नामक अन्य से हवन करने के बाद उसका प्रसाद लेने की परंपरा रही है। होलका अर्थात खेत में पड़ा हुआ वह अन्न जो आधा कच्चा और आधा पका हुआ होता है। संभवत: इसलिए इसका नाम होलिका उत्सव रखा गया होगा। प्राचीन काल से ही नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है। इस तथ्य से यह पता चलता है कि यह त्योहार वैदिक काल से ही मनाया जाता रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली और दिवाली मनाए जाने के सबूत मिलते हैं।
 
2. होलिका दहन : होलिका दहन और होली के रंग के उत्सव की प्राचीन कथा भक्त प्रहलाद और उनकी बुआ होलिका और पिता हिरण्यकश्यप से जुड़ी हुई है। हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझता है और वह अपने पुत्र को विष्णु की पूजा और भक्ति से रोकता है। परंतु प्रहलाद इससे इनकार कर देता है। तब प्रहलाद को कई तरह से मारने का उपक्रम किया जाता है परंतु श्रीहरि विष्णु उसे बचा लेते हैं। अंत में होलिका प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाती हैं क्योंकि उसे अग्नि नहीं जलने का वरदान था। इसीलिए इस दिन असुर हरिण्याकश्यप की बहन होलिका दहन हुआ था। प्रहलाद बच गए थे। इसी की याद में होलिका दहन किया जाता है। यह होली का प्रथम दिन होता है। संभव: इसकी कारण इसे होलिकात्वस कहा जाता है।
Holika dahan 2022
3. कामदेव को किया था भस्म : इस दिन शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद जीवित किया था। कामदेव ने सभी देवताओं के कहने पर शिवजी की तपस्या को भंग कर दिया था क्योंकि सभी देवता चाहते थे कि शिवजी अपनी तपस्या से जागकर मां पार्वती से विवाह करें और उनसे जो पुत्र होगा वह हमारी तारकासुर से रक्षा करेगा। परंतु शिवजी ने कामदेव को भस्म कर दिया और बाद में रति को यह वचन दिया कि तुम्हारा यह पति द्वापर में श्रीकृष्‍ण का पुत्र प्रद्युम्न बनकर जन्मेगा। 
 
4. राक्षसी ढुंढी और राजा पृथु : यह भी कहते हैं कि इसी दिन राजा पृथु ने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था। इसीलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।
 
5. पूतना वध : जिस दिन राक्षसी पूतना का वध हुआ था उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी। अत: बुराई का अंत हुआ और इस खुशी में समूचे नंदगांववासियो ने खूब जमकर रंग खेला, नृत्य किया और जमकर उत्सव मनाया। तभी से होली में रंग और भंग का समावेश होने लगा।
 
फाग उत्सव : त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।
 
पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों में नए नए प्रयोग किए जाने लगे।