Motivational Story : भावना का खेल
चेरनोबिल के रब्बाई नाहुम को उनका पड़ोसी दुकानदार नाहक ही अपशब्द आदि कहकर अपमानित करता रहता था। कुछ दिनों बाद एक समय ऐसा आया कि दुकानदार का धंधा मंदा चलने लगा।
दुकानदार ने सोचा- इसमें जरूर नाहुम का हाथ है, वही ईश्वर से प्रार्थना करके अपना बदला निकाल रहा है। दुकानदार फिर नाहुम के पास अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगने गया।
नाहुम ने दुकानदार से कहा- मैं तुम्हें उसी भावना से क्षमा करता हूं, जिस भावना के वशीभूत होकर तुम क्षमा मांगने आए हो, लेकिन दुकानदार का धंधा गिरता ही गया और अंततः वह बर्बाद हो गया। नाहुम के शिष्यों ने उससे दुकानदार के बारे में पूछा।
नाहुम ने कहा- मैंने उसे क्षमा कर दिया था और मैं उसे भूल भी गया था, लेकिन वह अपने मन में मेरे प्रति घृणा का पालन-पोषण करता रहा। इसके परिणामस्वरूप उसकी अच्छाई भी दूषित हो गई और उसे मिला दंड कठोर होता गया। काश, वह मुझे भूलकर अपनी भावना को अच्छा बनाता तो उसके साथ ऐसा नहीं होता।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। अर्थात जिसकी जैसी भावना रहती है भगवान उसे सी रूप में दर्शन देते हैं। यह यह कहें कि हमारा जीवन हमारी भावनाओं का खेल है। अच्छा सोचोगे तो अच्छा होगा। बुरा सोचोगे तो बुरा होगा।