लघुकथा : घड़े का पानी
संतोष मैडम कक्षा में हिंदी पाठ पढ़ा रहीं थीं 'बच्चों हमारे देश में छुआछूत एक सामाजिक बुराई है। हम सभी को इसे दूर करना है। सभी लोगों को ईश्वर ने समान अधिकार के लिए बनाया है अतः हमको जाति-पाति का भेदभाव नहीं करना चाहिए।'
पढ़ाते-पढ़ाते उन्होंने आवाज लगाई- 'अरे कोई पानी तो लाओ रे प्यास लगी है।'
रवि, मैडम को पानी को पिलाने के लिए घड़े की और दौड़ा, अभी घड़े की पास पहुंचा ही था कि मैडम की आवाज गुंजी 'घड़ा मत छूना यहां आकर बैठ।'
रवि सकपकाया-सा अपने स्थान पर आकर बैठ गया।
तभी मोहन गिलास में पानी लेकर मैडम के पास पहुंचा- 'मैडम पानी'।
संतोष मैडम ने मोहन की तारीफ करते हुए पानी पिया और पाठ पढ़ाने लगीं 'हां तो बच्चों सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं ओ हमें एक दूसरे से अपनापन का व्यवहार करना चाहिए। जाति-पाति मनुष्य के बनाए आडम्बर हैं।'
रवि समझ नहीं पा रहा था कि संतोष मैडम ने उस को घड़ा क्यों नहीं छूने दिया।