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बची है बहुत आस
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तेजराम शर्मा धागे से छूटे हुएमनकों की तरह दोस्तबहुत दूर न चले जाना मुझसे,अभी सुई और धागे में बची है बहुत आसजीवन के महासागर मेंथम ही जाएगा तूफान,छंट ही जाएँगे,गहरे काले बादल,ढूँढ ही लूँगा मैं तुम्हें इस यात्रा मेंध्रुव तारे की तरहजीवन की गोधूलि में ही सहीसमय की धुंधली धूल के बीच सेलौट आना, सूनी टहनी पर कोंपल की तरह,सूनी आँखों में आंसू की तरह,जैसे धरती की फटी आँखों के जाले मेंलौट आती है उम्मीद,लौट आओ तोबिखरने न दूंगा धागे की अढ़ाई गाँठ में बांध मोती से चमकेंगेफिर माला में साथ-साथ । साभार: कथाबिंब