कविता : शिल्पकार
तुम,
सचमुच महान हो
शिल्पकार-
तुम्हारे हाथ
नहीं दुलारते बच्चों को
न ही गूंथते हैं फूल
अर्द्धांगिनी के केशों में
बस, उलझे रहते हैं
'ताज' बनाने में-
और/ बाद में
फेंक दिए जाते हैं
काटकर
तब भी/ आखिर क्यों
नहीं कम होता
तुम्हारा
'ताज' के प्रति अनुराग?