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कविता : रात की यारी

कविता : रात की यारी - Raat Ki Yari Hindi Poem
मैं अपनी कमीज गंदी करके पहनता हूं।
मैं आज भी चाय ठंडी करके पीता हूं।
 
सुबह की धूप से मेरी मौसिकी नहीं आज भी।
रात की यारी मैं आज भी पक्की करके जीता हूं।
 
न सताया करो देखकर यूं कभी-कभी।
मैं आज भी जेहन में तुमसे कत्ल होकर मिलता हूं।
 
खुश है कि नहीं कोई परिंदा दिल का।
कैसे हो पता, मैं आज भी अपने दिल की कहां सुनता हूं।
आशुतोष झा
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