हिन्दी कविता : सांप
सांप
मैं डरती हूं तुमसे
तुम्हारे फुंफकारने से
तुम्हारे डंसने से
मैंने सुना है
तुम्हारी फुंफकार के बारे में
डंक के बारे में
देखा नहीं है
फिर भी बचती हूं
तुमसे
या बचा लेती हूं
तुम्हें
खुद से
सांप
मैं भी सीखना चाहती हूं ये फन
ताकि लोग डरे
मेरी भी फुंफकार से
डंक से
एक डर का अहसास
आसान कर देता है
कितने काम।