हिन्दी कविता : खूब पनप रहा है भ्रष्टाचार...
पात्र बेचारे भूखे सोते हैं,
अपात्र डकारें लेते हैं।
अपने सारे हितैषी को,
प्रधान भी सुविधा देते हैं।
जांच करा के देख सकते हो,
हर गांव में पाए जाएंगे।
गरीबी रेखा के नीचे यूं,
बहुत लोग नहीं आएंगे।
बीपीएल कार्ड बना है उनका,
साहब के वही चहेते हैं।
अपने सारे हितैषी को,
प्रधान भी सुविधा देते हैं।
हॉफ सेंचुरी पार नहीं है,
मिलती वृद्धावस्था पेंशन है।
जो लोग 60 के हो गए,
उनको दवा की टेंशन है।
भ्रष्टाचार खूब पनप रहा है,
सच्चाई को सब मेटे हैं।
अपने सारे हितैषी को,
प्रधान भी सुविधा देते हैं।