कविता : भ्रूण हत्या ना करे
आने दो इस धरा पे मुझको
नेह भरी निगाह से देख सकूंगी मैं सबको
कसूर क्या है मेरा ये पूछुंगी जग से
भ्रूण हत्या ना करें ये कहूंगी तब जग से
आराध्य से मांगे वरदान
सारे पुण्य व्यर्थ जाएंगे
जब करोगे भ्रूण हत्याएं
सारे जग में कहीं-न कहीं
भ्रूण हत्याओं की हृदय विदारक
खबरें सुन-सुनकर
सिसक रही हूं मैं गर्भ में
मैं तो अभी भ्रूण हूं
किंतु भ्रूण भी तो सीख जाता
अभिमन्यु-सा चक्रव्यूह
भेदने का राज
दुनिया के लोभी चक्रव्यूह
को मैं तोड़ना चाहती हूं
अभी बोल नहीं पाती
लेकिन समझ तो जाती हूं
बेटी हूं तो क्या हुआ
धरा पर आकर
उड़ान भरुंगी नभ में
तैरुंगी गहरे जल में
दौड़ूंगी पथरीले थल में
क्योंकि मुझे भी तो
देश की रक्षा व नाम रोशन करने का हक है
कोयल की कूक बन जाउंगी
फूलों की खुशबु बन महक जाउंगी
रिश्तों का अर्थ सबको समझाउंगी
जीने का अधिकार
ईश्वर ने दिया सब को
तो भला क्यों मारते हो हमें
बस आने तो दो इस धरा पे मुझको
नेह भरी निगाह से देख सकुंगी मैं सबको
कसूर क्या है मेरा पुछुंगी ये तब जग से
भ्रूण हत्या ना करे ये कहूंगी तब मैं सब से