पुष्पा परजिया
मां जैसी जन्नत जिनके पास होती है, वो नसीबों वाले हैं
याद बड़ी तड़पाती है जब वो पास न होकर दूर होती है
मां के ऋण से उऋण न हो पाए कोई क्यूंकि एक,
मां ही तो है जो हर बच्चे की तकदीर होती है
बच्चे की आने वाली मुश्किलों का अंदाजा
जिसे सबसे पहले हो उन मुश्किलों को
दूर करने वाली मां ही पहली होती है
दिलों जान से चाहती है
खुद को कुर्बान करती बच्चों पर
वो सिर्फ और सिर्फ मां ही होती है
जब-जब नजर से दूर होता
उसका कलेजे का टुकड़ा
दिन और रात सिर्फ
उसकी ही आंखें राह तकती है
जैसे ही देखा बच्चे को
मां की बांछें खिलती हैं
हर खुशी हर गम उसका
उसकी जान बच्चे में ही होती है
न देख सकती उदास
अपने कलेजे के टुकड़े को वो
सर पर बारंबार हाथ फिर,
फिराकर रोती है
दुनिया के हर दुख झेलकर भी
अपने बच्चे के दामन को
वो खुशियों से भरती है
बड़े होकर संतान भले ही
भेजे वृद्धाश्रम उसे,
या करे तनहा फिर भी
"मां" दुआएं ही देती हैं
इसलिए तो लोग कहते हैं
संतान हो जाए कुसंतान पर
माता कुमाता कभी "ना" हो सकती है
भर देना ऐ संतान, गंगा-सी मां की झोली में तुम खुशियां
तीर्थ तेरा घर पे तेरे है
आंसुओं से कभी उसके नयन तू ना भीगने देना ,
न देना दान मंदिरों अनाथालयों में तुम
सिर्फ मां की दुआओं से ईश्वर को रिझा लेना
शत शत वंदन, शत शत वंदन तेरे चरणों में
ओ ...मां .. मां.. मां ..