मंगलवार, 1 अप्रैल 2025
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lock down poem : पथिकों की डगर को मखमली रखना

poem
भगवन मेरे, 
 
पथिकों की डगर को
मखमली रखना
हाथों को 
निवाले भी
 
उजास भी
पूरा का पूरा
रहने देना सूरज में
चांद की शीतलता
और ठंडाये रखना
 
शिशुओं की
खिल-खिल मुस्कान
फूलों की खुशबुएँ
पौधों का हरा
नदियों का कलरव
 
घर-परिवार
आंगन-औसारा
मेहंदी के हाथ
हल्दी के पांव
नेग-शगुन,
शहनाई
थिरकते मन
सब कुछ
 पूरा का पूरा 
लौटाना है तुम्हें ही, 
बिना किसी कतरब्योंत के।
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