डॉ. शिवा श्रीवास्तव
हम कभी न कभी किसी संकट, दर्द, डर, या गलती में अवश्य ही पडे होंगे। तब हमारे मुंह से अनायास ही निकल जाता है- ओह मां/मम्मी/अम्मी/बेबे.. या जो भी हम अपनी मां को संबोधित करते हों। उस समय हम पाते हैं कि मां भी उतनी ही परेशानी महसूस कर रही होती हैं। आखिर ये कौन से तार होते हैं, जो मां तक पहुंच जाते हैं। दिल, दिल से बात करता है बिन चिट्ठी बिन तार। मां को कुछ भी बताने या जताने की जरूरत नहीं पड़ती, वो तो चेहरा देखकर ही सब समझ जाती है।
मां शब्द अत्यंत प्रिय और बहुव्यापक है। जन्मदात्री मां गर्भ धारण और पोषण करती है। इसलिए वह श्रेष्ठ है, किंतु जो पालन पोषण करती है उनका महत्व सौ गुना अधिक है।
कर्ण की पालक राधा, और कृष्ण की यशोदा इसकी साक्ष्य प्रमाण है।
पूरे संसार में स्नेह करने वाली मां ही है, जिसका प्रेम संतान पर जन्म से लेकर मां के परलोक गमन तक एक सा बना रहता है। मां की यही लालसा होती है कि उसकी संतान चिरायु, निरोगी, सच्ची और सर्व गुण संपन्न हो।
मां का यह प्रेम केवल मनुष्य तक ही सीमित नहीं। वह तो पशु, पक्षी, जलचर, थलचर, सभी में होता है। घरों में पक्षियों द्वारा बनाए गए घोंसलों में अक्सर यह देखा है, कि अंडे देने के बाद मां कुछ दिन तक उनको सेती है। बच्चे निकल आने पर दाना लाकर उनकी चोंच में देती है।
कितना आनंदित करता है वो देखना। पर/पंख निकल आने और दाना दुनका चुगने तक सक्षम होते देखती है। तब कहीं जाकर वो उनको अकेला छोड़ती है। इसी तरह गाय, भैंस, बकरी, बिल्ली,श्वान, आदि भी बच्चे जनकर बाहरी आपत्तियों से तब तक रक्षा करते हैं, जब तक कि वे माता का दूध छोड़कर अपना खाना खुद न ढूंढने लगें, आत्मनिर्भर न हो जाएं।
वानरी तो स्नेह पाश में इतनी बंधी रहती है कि मृत शावक को भी कई दिनों तक छाती से लगाए फिरती है।
कई बार देखने में आया है कि, माता निर्बल या असमर्थ होने पर भी संतान के लिए लड़ने और उसे बचाने में पीछे नहीं हटती। फिर वो सफल हो या असफल।
" जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"- मां का महात्म्य ही ऐसा है। मां की सेवा सभी देवताओं की सेवा में सर्वोपरि है।
वेद शास्त्रों में तो सोलह प्रकार की माताओं का उल्लेख है। दूध पिलाने वाली (धाय), गर्भ धारण करने वाली, भोजन देने वाली, गुरु पत्नी, ईष्ट देव की पत्नी, सौतेली मां, सौतेली मां की बेटी, सगी बड़ी बहन, स्वामी की पत्नी, सास, नानी, दादी, सगे बड़े भाई की पत्नी, मौसी, बुआ और मामी।
इन दिनों कोरोना के संकट काल में मांओं के साहसी रूप देखने और सुनने को मिले। जिसके लिए उनके प्रति नमन श्रद्धा से भर जाता है। यह भी सिद्ध हुआ कि दुनिया में कहीं भी हो, मां सब जगह एक जैसी ही हैं।
पुलिस, डाक्टर, नर्स, सफाई कर्मी, मीडिया कर्मी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता, बिना किसी सेवा में रहते हुए भी दूसरों के लिए निस्वार्थ कुछ करने वाली माताऐं, या ऐसे पेशे से जुड़ी हो, जो जनसेवा से सीधे संबंधित हो तो इन दिनों के हालातों में उनके चरणों में लोट जाने का मन करता है। अपने नौकरी के दायित्वों के साथ घर की जिम्मेदारी का बराबरी से वहन करने वाली मातृ शक्ति को मातृ दिवस पर हृदय से आदर सहित प्रणाम।
ऐसी अनगिनत माता हैं जिनमें से , किसी ने अपने हज जाने का संचित धन, तो किसी ने पूरी पेंशन दान कर दी। किसी ने रोजाना खुद खाना बनाकर बांटा तो किसी ने घर से मास्क बनाकर एवं अन्य तरीकों से सहायता पहुंचाने का निस्वार्थ सहयोग किया। 2020 में मदर्स डे की थीम उन्हें विशेष सम्मान देने को लेकर है। जो परिवार के साथ-साथ देश को भी कोरोना महामारी से बचाने के लिए सेवा दे रहीं है।
मातृ दिवस पर इन सभी के संघर्ष एवं परिवार के प्रति प्रेम और दायित्वों के समर्पण का हृदय से आभार। मां से ही संसार है।