कविता : किन्नर कौन?
किन्नर कौन?
वो जो धर्म की आड़ में
अस्मत लूटता है।
या वो जो पांच साल की
बच्ची को कामुकता से देखता है
या वो जो पांच साल के प्रद्युम्न
का स्कूल में गला रेत देता है।
किन्नर कौन?
वो जो अपनी बूढ़ी मां को
वृद्धाश्रम छोड़कर आता है।
वो जो अबलाओं को पीटता है
वो जो किसानों को फांसी पर
लटकाकर राजनीति करता है।
किन्नर वो है जो
गरीब का हक मारकर
कालेधन के ढेर लगाता है।
जो शिक्षा को नीलाम कर
प्रतिभाओं को दम तोड़ने
के लिए मजबूर करता है।
किन्नर वो है जो
मासूमों को ड्रग्स पिलाकर
धकेल देता है मौत के मुंह में।
जो बेटियों को चंद सिक्कों
में बेचकर कर देता है जीवन
नरक से भी बदतर।
किन्नर सिर्फ शरीर से नहीं
आचरण से भी होते हैं।