शुक्रवार, 29 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Hindi Poem

हिन्दी कविता : आजकल

हिन्दी कविता : आजकल - Hindi Poem
आजकल बचाने वाले कम हैं
मारने वाले ज्यादा हो गए हैं
हर कोई नजर गड़ाए बैठा है
 
कोई किसी के शरीर पर
कोई किसी के पैसे पर
किसी को है किसी की कुर्सी की चाह
तो किसी को है किसी की जिंदगी की चाह
घर की दीवारें 
और धरती की सीमाएं
बढ़ रही हैं दिन ब दिन
पत्थर मार के की जाती हैं बातें
 
प्यार मोहब्बत और ईमान को
बंद करके रख दिया है एक तिजोरी में
जिसकी चाबी फेंक दी गई है
हंसी और कहकहे भाप बनकर खो गए हैं
 
बन गए हैं बादल न बरसने वाले
ले रही तोहफा हमसे अगली पीढ़ी 
खोखली इंसानियत का 
पैबंद लगे फटे पुराने रीति रिवाजों का..!!
ये भी पढ़ें
शादी पर यह 5 गलतियां, पड़ सकती हैं भारी