प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
पावन नवरात्री की बेला, उमड़ी है माँ भीड़, तुम्हारे दर्शन को
मां सबकी तुम एक सहारा , पाने को आशीष तुम्हारा
आये चल के बड़ी दूर से , तुम्हें चढ़ाने नीर, तुम्हारे दर्शन को
तुम्हें ज्ञात हर मन की भाषा , आये हम भी ले अभिलाषा
छू के चरण शाँति पाने माँ , मन है बहुत अधीर , तुम्हारे दर्शन को
भाव सुमन रंगीन सजाये , पूजा की थाली ले आये
माला , श्रीफल , और भौग में , फल मेवा औ खीर , तुम्हारे दर्शन को
मन की कहने , मन की पाने , आशा की नई ज्योति जगाने
तपते जीवन पथ पर चलते , मन में है एक पीर , तुम्हारे दर्शन को
मां भू मंडल की तुम स्वामी , घट घट की हो अंतर्यामी
देकर आशीर्वाद , कृपाकर , लिख दो नई तकदीर , तुम्हारे दर्शन को