बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. father's memories
Written By Author श्रवण गर्ग
Last Updated : गुरुवार, 4 अगस्त 2022 (17:13 IST)

स्मृतियां भी मैं, जंगल भी मेरे ही भीतर!

स्मृतियां भी मैं, जंगल भी मेरे ही भीतर! - father's memories
नहीं टूटता कुछ भी एक बार में
न अखरोट, न नारियल,
न पहाड़ या दिल पिता का!
 
दरकती है सबसे पहले
कोई कमजोर चट्टान
देती है संकेत ढहने का
पूरा का पूरा पहाड़!
 
हवा का एक तेज झोंका
या आकाश से टूटता पानी
बहा ले जाता है चट्टान अपने साथ
छूट जाती हैं अंगुलियां जैसे
भीड़ में हाथों से पिता के!
 
नहीं दिखते बहते हुए आंसू
टूटता है जब कोई कोना मन का
निकल जाते हैं तभी पिता बाहर
कहकर टहलने का
दूर, बहुत दूर कहीं-
स्मृतियों के घने जंगल में!
ये भी पढ़ें
प्रवासी कविता : मेरी भारत माता