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फेमिनिज्म के बदलते परिदृश्य पर परिचर्चा

फेमिनिज्म के बदलते परिदृश्य पर परिचर्चा - vani prakashan
कार्यक्रम : ‘नया वाला फेमिनिज्म’ (परिचर्चा) 
 
(उषाकिरण खान, निवेदिता शकील, अनीश अंकुर और प्रतिष्ठा सिंह की बातचीत)
 
समय : शाम 4.40 से 5.40 तक (8 फरवरी 2017)
 
स्थान : पटना पुस्तक मेला, गांधी मैदान (पटना)

हमारे दौर में फेमिनिज्म की चर्चा-परिचर्चा को लगभग एक फैशन की तरह बरता जा रहा है और ऐसा केवल बुद्धिजीवियों के बीच ही नहीं है, बल्कि खुद फेमिनिज्म के पैरोकार और उसके पक्षधरों के बीच भी यह स्थिति है। आज जो लोग इसके बुनियादी पहलुओं को नहीं जानते, वे इसकी गलत व्याख्या करते हैं। दूसरी ओर इसके बारे में जानने वाले भी इसे प्रासंगिक और समकालीन बनाकर पेश नहीं कर पाते। इस प्रकार फेमिनिज्म की व्याख्या और प्रस्तुति एक दुहरी समस्या से ग्रस्त है।
 
फेमिनिज्म क्या है, हमारे समय में उसकी समझ और उसकी व्याख्या के कौन-कौन से पड़ाव हैं; क्या यह केवल एक विचार है या जीने की एक तरीका भी है; यदि यह एक नया नजरिया है तो इसकी क्या खूबियां हैं; क्या यह केवल स्त्रियों से जुड़ा हुआ मुद्दा है या एक व्यापक विमर्श भी है जिसमें नई तरह से सोचने-समझने वाले सभी लोग हिस्सा ले सकते हैं। ऐसे और भी कई प्रश्न हैं, जो फेमिनिज्म के दायरे में आते हैं। इसकी बदलती हुई धारणा और व्याख्या के कारण आज बहुत जरूरी हो गया है कि इसके बदलते हुए तेवर और स्वरूप पर बात की जाए।
 
‘नया वाला फेमिनिज्म’ पटना पुस्तक मेला में वाणी प्रकाशन की एक खास पेशकश है जिसमें फेमिनिज्म के बदलते हुए परिदृश्य पर विचारोत्तेजक परिचर्चा की जाएगी। इस परिचर्चा में भाग ले रही हैं वरिष्ठ लेखिका उषाकिरण खान, सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता शकील, वरिष्ठ पत्रकार अनीश अंकुर, युवा लेखिका प्रतिष्ठा सिंह। कार्यक्रम का संचालन करेंगी वाणी प्रकाशन की अदिति माहेश्वरी-गोयल।
 
उक्त परिचर्चा में भाग लेने वाली वरिष्ठ लेखिका उषाकिरण खान ने सामाजिक सरोकारों को केंद्रित करते हुए हिन्दी और मैथिली दोनों में विपुल लेखन किया है। उन्होंने लेखन में लगातार अपने दायरे को बढ़ाया है और सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों के अलावा एक विरल ऐतिहासिक विजन का भी परिचय दिया है। उषाकिरण खान की अनेक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं और साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी उन्हें सम्मानित किया गया है। हाल ही में मैथिली भाषा और साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान का सौहार्द सम्मान प्रदान किया गया है। 
 
वाणी प्रकाशन से प्रकाशित उनकी नवीनतम कृति है 'अगनहिंडोला' जिसमें लेखिका ने इतिहास के गलियारे में झांकते हुए शेरशाह के जीवन की टूटी-बिखरी कड़ियों का रचनात्मक पुनर्निर्माण किया है। यह उपन्यास पाठकों को उषाकिरण खान के लेखन के एक नये अनुभव संसार में ले जाता है।
 
निवेदिता शकील ने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र का अध्ययन किया है और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर लगातार सजग लेखन किया है। इन्होंने पटना के छात्र आंदोलन में निर्णायक भूमिका निभाई है और आंदोलन के अंतिम दौर की साक्षी भी रही हैं। निवेदिता कविता के अलावा दूसरी विधाओं में भी बराबर लिखती रही हैं। नाट्य अभिनय के क्षेत्र में ख्याति हासिल करने वाली निवेदिता शकील पटना की नाट्य संस्था ‘नटमंडप’ में बतौर अभिनेत्री काम भी कर चुकी हैं।
 
अनीश अंकुर ने मगध विश्वविद्यालय (बोधगया) से अपनी पढ़ाई पूरी की है। एक पत्रकार और संस्कृतिकर्मी की हैसियत से अनीश अंकुर ने सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर लगातार लेखन किया है और इनसे संबंधित चर्चा-परिचर्चा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। उन्होंने ‘संडे पोस्ट’ (पटना) में वरिष्ठ संवाददाता के रूप में काम किया है और पटना की ‘अभियान’ संस्था से भी जुड़े रहे हैं।
 
युवा लेखिका प्रतिष्ठा सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में इटैलियन पढ़ाती हैं। अकादमिक उद्देश्यों से वे लगातार देश-विदेश की यात्राएं करती रहती हैं और जब कभी समय मिलता है तो कविता और कहानियां लिखती हैं। हाल ही में बिहार चुनाव में महिलाओं की भूमिका पर आई किताब ‘वोटर माता की जय!’ काफी चर्चित रही है और आम पाठकों के साथ-साथ राजनीति विज्ञानियों और चुनाव विश्लेषकों के लिए प्रासंगिक बनी हुई है।
 
अदिति माहेश्वरी-गोयल अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इन्होंने स्ट्रेथक्लाइड बिजनेस स्कूल, स्कॉटलैंड से बिजनेस मैनेजमेंट तथा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस, मुंबई से प्री-डॉक्टरल/ एमफिल की डिग्री प्राप्त की है। आप वाणी प्रकाशन में कॉपीराइट और अनुवाद विभाग की प्रमुख तथा वाणी फाउंडेशन की प्रबंध न्यासी हैं।
 
वाणी प्रकाशन ने गत 55 वर्षों से हिन्दी प्रकाशन के क्षेत्र में कई प्रतिमान स्थापित किए हैं। वाणी प्रकाशन को फेडरेशन ऑफ इंडियन पब्लिशर्स द्वारा ‘डिस्टिंग्विश्ड पब्लिशर अवॉर्ड’ से नवाजा गया है। वाणी प्रकाशन अब तक 6,000 से अधिक पुस्तकें और 2,500 से अधिक लेखकों को प्रकाशित कर चुका है। हिन्दी के अलावा भारतीय और विश्व साहित्य की श्रेष्ठ रचनाओं का प्रकाशन कर इसने हिन्दी जगत में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। नोबेल पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और अनेक लब्ध-प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त लेखक वाणी प्रकाशन की गौरवशाली परंपरा का हिस्सा हैं।
 
हाल के वर्षों में वाणी प्रकाशन ने अंग्रेजी में भी महत्वपूर्ण शोधपरक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने अपने गैरलाभकारी उपक्रम वाणी फाउंडेशन के तहत हिन्दी के विकास के लिए पहली बार ‘हिन्दी महोत्सव’ और अनुवाद के लिए ‘डिस्टिंग्विश्ड ट्रांस्लेटर अवॉर्ड’ की भी नींव रखी है। इस वर्ष यह अवॉर्ड प्रख्यात कवयित्री और विदुषी डॉ. अनामिका को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान प्रदान किया गया है। इस बार 3-4 मार्च को ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर किया जा रहा है।
 
पटना पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन अपने पाठकों के लिए 75 नई पुस्तकें लेकर उपस्थित हुआ है। साहित्य की विविध विधाओं के अलावा समाज विज्ञान, इतिहास, मीडिया और एथनोग्राफी पर प्रकाशित ये पुस्तकें हर तरह के पाठकों के लिए ज्ञान के साथ-साथ एक नए अनुभव संसार का झरोखा खोलती हैं।
 
वाणी प्रकाशन का लोगो ज्ञान की देवी मां सरस्वती की प्रतिमा है जिसे मशहूर कलाकार स्व. मकबूल फिदा हुसैन ने बनाया है। उम्मीद है कि फेमिनिज्म के बदलते स्वरूप पर केंद्रित नए वाले फेमिनिज्म की परिचर्चा में अधिक से अधिक पाठक और बुद्धिजीवी हिस्सा लेंगे और पूरे आयोजन को यादगार बनाएंगे।
 
साभार- वाणी प्रकाशन। 
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