- पुरुषोत्तम व्यास
शब्द
शब्द छिने-छिने से
शब्द भिने-भिने से...
कुछ शब्द काटें
कुछ शब्द डाटें
कुछ शब्द अडियल
कुछ शब्द मरियल
कुछ शब्द ने रास्ता दिखलाया
कुछ शब्द ने रास्ता भटकाया
कुछ शब्द पटरी पर दौड़ पड़े
कुछ शब्द राह में गिर पड़े
कुछ शब्द नयनों से बह पड़े
कुछ शब्द होठों पर दब मरे...
शब्द छिने-छिने..से
शब्द भिने-भिने से
मुझे बड़ा अजीब ही समझे, मुझे लेख लिखना है फूलों की पंखुडियों पर, परंतु लिखूं तो लिखूं कैसे और लिखने के लिए लाने है, पखुंडियों जैसे कोमल शब्द। अजीब ही है या अतिसुंदर-सा.. संसार किसी कोने में जलता हुआं..दीप वह कुछ कहता नहीं, उजियारा उसके आनंद की अभिव्यक्ति कर ही देता और कभी दूसरों के जीवन में उजास लाना भी हमें आत्मीय आनंद प्रदान करता है। भोर... गलियारे में खड़े होकर पिए गरम-गरम चाय, मिले किसी से बगीचे की पंगडंड़ियों पर बिखरे हरे-हरे पल्लव, देखने वाली आंखें ढूंढ़ लेती सुंदरता। संतोष की कोई परिभाषा., किसे सूखी रोटी खाकर तो किसे छत्तीस पकवान में नहीं पल...पल बदरा चिताओं के...सोच उलूल-चलूल ऐसे जीने का क्या फायदा, कचरा ही समझें।
राह बहुत ...इशारा उसका प्यार भरा..और फूलों की पखुड़ियों पर सुकोमल..शब्दों का लेख...अंबर अतिविशाल..सीटी बजी..रेलगाड़ी की धड़क..धड़क का शोर खिड़की के बाहर का नजारा ...हरे-भरे खेत...काम करते हुए...किसान और फूलों की पंखुड़ियों का कोमल-सा लेख।
अजब व्यवहार वह भी तराजू...लेकर..कितने कुंठित और व्यथित...झूम-झूम कर बहती...समीर...पत्तों की सरसहाट में..कविता..फूलों की पखुड़ियों का लेख। कोई क्या पढ़ने वाला यह तो जरूर..सोचेगा की यह कैसा फूलों की पखुड़ियों का लेख.. लेखक तो...भटका रहा है।
सोचे तो हम भटक ही रहे, हमें मालूम..नहीं.. जीवन किस प्रकार जीना..पल-पल बेतुके बातों में गंवा रहे है.. बस सूर्य..का उदय होना और अस्त होना..इस प्रकार दिवस..दिवस बीत रहे।
पल की बातें
पल में बीती...
पल में बदल गया
सब...
पल में हंसना
पल में रोना
पल-भर संग नहीं रहता कोई...
पल में पहाड़ की चोटी
पल में सरिता का किनारा
पल में सूरज चमक रहा
पल में बादल बरस पड़े....
पल भर का भरोसा नहीं
पल भर के लिए भाग रहे
पल करते-करते कितने युग बीत गए...
पल में सोचो
पल में जी लो
पल भर में सब छोड़
दूर देश चला गया...
पल की बातें
पल में बीती
क्या चाहिए...और कितना... साथ क्या ले जाओगे..इधर से समेटों...उधर समेटों जिसके लिए संचय किया...उसी.. ने मिट्टी में मिलाया ..बस इतना ही, फिर कितनी.. दौड़म-दौड़। सोच कर सोचे तो हम अपनी ऊर्जा का कितना सद्उपयोग कर रहे... शास्त्रों में लिखा है चौरासी लाख योनियों के बाद यह मनुष्य जीवन प्राप्त होता है...इस बात पर हमें गहराई से सोच विचार करना ही चाहिए...।
भागम-भाग
इस भागम-भाग जिंदगी
में थोड़ा सुस्ता लें
कही बैठकर अपने-आप से बतिया लें
धूप-बहुत है
छांव-बहुत है
अपने-आप को समझा लें....
फिर थोड़ा भटका रहा हूं, एक पंक्ति बड़ी याद आज आ रही, प्रीत, बेर और खांसी छुपाएं नहीं छुपती...बड़ी मीठी बात प्रीत और बेर बड़े ही मीठे और खांसी बीमारी का घर...बैठा रहा चुप-मौन-सा वृक्ष के नीचे..सोचता रहा... पाप और पुण्य कैसे-कैसे मोड़ हर मोड़ से गुजर के अपने आप को सात्विक रखना..ज्यादा कठिन नहीं...याद आ रहा रहीम जी का दोहा ...चंदन और भुंजग वाला...।
फूलों की पंखुड़ियां ही पंखुड़ियां...उड़ उड़ गाती सुकोमल.. भरे गीत...लाल....पीली..गुलाबी..हरी..रंग की पंखुड़ियां...पंखुड़ियां..सुमनों ...की ..शोभा...पंखुड़ियां...जीवन में क्या चाहिए सिर्फ... दो मीठे बोल कर लीजिए...सबको अपना...जो न समझे प्रीत को छोड़ दीजिए उसको उसी के हाल में ..जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए... और फूलों की पंखुड़ियां...सुकोमल-सा लेख।
प्रीत मेरी फूलों-की पंखुड़ियों-सी
प्रीत मेरी फूलों-की पंखुड़ियों-सी
पत्र लिखा तुमको जो
शब्द लिए है
पंखुडियों जैसे
तितली बन तुम
मेरी प्रीत को..
छोड़ मुझे मत जाना...
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)