narak chaturdashi essay : नरक चतुर्दशी पर निबंध
essay on narak chaturdashi
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जानते हैं। दीपावली के एक दिन पहले आने वाली इस चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहते हैं।
इस दिन के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था। नरकासुर को भौमासुर भी कहा जाता है। प्रागज्योतिषपुर के राजा भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुंदर कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी को मुक्त कराया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई गई थी।
दूसरी कथा के अनुसार पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा रंति देव को जब यमदूत नरक ले जाने लगे तो उन्होंने कहा मैंने तो कोई पाप नहीं किया फिर क्यों नरक ले जा रहे हो? यमदूतों ने कहा कि एक बार आपके द्वार से एक विप्र भूखा ही लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है।
तब रंति देव ने कहा कि मुझे इसके प्रायश्चित का एक वर्ष दीजिए। यमदूतों ने एक वर्ष दिया तो राजा ऋषियों के पास पहुंचे और उन्होंने इस पाप से छूटने का उपाय पूछा। तब ऋषियों ने बताया कि कार्तिक मास की चतुर्दशी को व्रत रखने के बाद ब्राह्मण भोज कराएंगे तो आप इस पाप से मुक्त हो जाएंगे। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
नरक चतुर्दशी के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय होने से बाद नहाता हैं उसे वर्ष भर में किए गए अच्छे कार्यों का फल नहीं मिलता है।
इस दिन को यम के नाम से भी जानते हैं। इसीलिए इस दिन शाम होने के बाद घर में और उसके चारों ओर दीये जलाए जाते हैं और यमराज से अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घूमाता है और फिर उसे लेकर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीये को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घूमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।
इस दिन को काली चौदस भी कहते हैं। काली चौदस की रात माता काली की पूजा होती है। दरअसल पूरे भारतवर्ष में रूप चतुर्दशी का पर्व यमराज के प्रति दीप प्रज्ज्वलित कर, यम के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है, लेकिन बंगाल में मां काली के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, जिसके कारण इस दिन को काली चौदस कहा जाता है।
इस दिन मां काली की आराधना का विशेष महत्व होता है। काली मां के आशीर्वाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफलता मिलती है।