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जानिए संगीत से सम्बंधित इन शब्दों का उचित अर्थ, जिन्हें हम बोलचाल में प्रयोग करते हैं

जानिए संगीत से सम्बंधित इन शब्दों का उचित अर्थ, जिन्हें हम बोलचाल में प्रयोग करते हैं - some words of music terminology which are used by common man in daily life
- अथर्व पंवार
 
हर व्यक्ति के जीवन में संगीत का एक अलग ही स्थान है। हर व्यक्ति 3 चीजों पर अपने ज्ञान के अनुसार बात कर सकता है - राजनीति, क्रिकेट और संगीत। संगीत पर भी हमें चाय की गुमटी से लेकर एक एसी हॉल तक में विचार-मंथन होता मिल जाता है। पर कई बार संगीत के शौक रखने वाले हम में से ही कई लोग सांगीतिक शब्दों का प्रयोग तो करते हैं पर उन्हें उनका अर्थ पता नहीं होता।
 
चलिए जानते हैं ऐसे कुछ सांगीतिक शब्दों का अर्थ जिनका उपयोग आम आदमी भी करता है -
 
नाद
ध्वनि(आवाज) कंपन्न से निकलती है। यह आंदोलन(vibration) जिनका सम्बन्ध मधुर ध्वनि से होता है अर्थात जो कानों को प्रिय लगते हैं उन्हें नाद कहते हैं। संगीत का अर्थ ही मधुर ध्वनि से होता है इसीलिए नियमित कंपन्न को ही नाद माना जाता है।
 
राग
राग शब्द 'रंज' अथवा 'आनंद देना' धातु से उत्पन्न हुआ है। स्वरों की एक विशेष रचना जिससे सुन्दर आनंद की प्राप्ति हो वह राग है। रागों के कई नियम हैं, हर स्वर श्रृंगारित रचना राग नहीं होती।
 
तान
तान शब्द का अर्थ होता है विस्तार करना या तानना। राग के स्वरों को तेज गति (द्रुत लय) में बजाया या गाया जाता है तो उसे तान कहते हैं। आलापों और तान में यही अंतर है। आलाप कम गति (विलम्बित लय) में गाए/बजाए जाते हैं और तान तेज गति में।
 
आलाप
किसी राग के स्वरों का उसके स्वरों (वादी,सम्वादी और विशेष स्वरों) को सूंदर ढंग से विभूषित करते हुए दिखलाना आलाप कहलाता है। इसे कम लय में अपना भावनात्मक अंग प्रस्तुत करते हुए गाया/बजाया जाता है।
 
स्वर
संगीत के उपयोगी नाद जो कानों से स्पष्ट सुनाई दे सकते हैं उन्हें श्रुति कहते हैं। ऐसे ही एक सप्तक में सात श्रुतियां होती है जिसमें से 7 एक दूसरे से कुछ अंतर पर हैं , यह सुनाने में मधुर है , इन्हें ही स्वर कहा जाता है। इन स्वरों के नाम है - षड्ज (सा), ऋषभ (रे), गन्धार (ग), मध्यम (म), पंचम (प), धैवत (ध) और निषाद (नि)। इन्हें शुद्ध स्वर कहा जाता है और जब यह अपने स्थान से रागानुसार ऊपर या नीचे की श्रुति की ओर जाते हैं तो उन्हें विकृत स्वर कहते हैं। रे,ग,म,ध और नि की श्रुतियों में उतर-चढ़ाव होता है।
 
ताल
ताल को वर्णित करना एक बहुत कठिन कार्य है। पर सरल शब्दों में समझा जाए तो , गायन,वादन और नृत्य की क्रियाओं में जो समय लगता है उसे काल कहते हैं और इसे नापने के पैमाने को ताल कहा जाता है। ताल अलग-अलग मात्राओं की बनी होती है जिससे उस संगीत को नापा जाता है जैसे तीनताल 16 मात्रा की होती है और कहरवा 8 मात्रा की।
 
लय
संगीत जिस गति से हो रहा है उसे लय कह सकते हैं। इन क्रियाओं की चाल या गति जो समान होती है, वह लय है। इसकी एक परिभाषा यह भी है कि दो मात्राओं के बीच की दूरी लय होती है। अगर दूरी अधिक है तो लय धीमी अर्थात विलम्बित है और अगर दूरी बहुत कम है तो लय तेज अर्थात द्रुत होती है।
 
सम
जिस मात्रा या अक्षर से ताल का आरम्भ होता है उसे सम कहा जाता है। काल में इसे बार-बार विशेष प्रकार से दिखाया जाता है। ताल एक बार खत्म होकर पुनः आरम्भ होती है और यह चक्र चलता रहता है। जब ताल अपनी यात्रा एक बार पूर्ण करती है तो उसे एक आवर्तन कहते हैं। अगले आवर्तन का आरम्भ अर्थात ताल की पहली मात्रा सम कहलाती है।