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Last Updated : गुरुवार, 2 नवंबर 2017 (16:37 IST)

प्रयोगशाला में विकसित किए गए लिंग..!

प्रयोगशाला में लिंग
वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में लिंगों को विकसित करने का काम कर दिखाया है और उनका कहना है कि इनको मनुष्यों पर प्रयोग करने का काम पांच वर्ष के अंदर किया जा सकता है।
 
उनका कहना है कि ये अंग ऐसे लोगों को दिए जा सकेंगे जो कि वंशानुगत रूप से किसी असामान्यता के शिकार हैं, या फिर कैंसर के कारण जिनका ऑपरेशन किया गया या फिर उन्हें इस क्षेत्र में चोट आदि लगने से कोई सदमा पहुंचा है। इस विकसित लिंगों का परीक्षण अब से पांच वर्ष के दौरान किया जाएगा जिसके दौरान इनकी 'सुरक्षा, काम करने की क्षमता और टिकाऊपन' की जांच की जाएगी। 
 
मेल ऑनलाइन में अन्ना होजकिस लिखती हैं कि यह सफलता उसी दल को मिली है, जिसने इसी वर्ष महिलाओं के लिए प्रयोगशाला में विकसित जननांग का प्रतिरोपण किया है। यह काम नॉर्थ कैरोलिना में वेक फॉरेस्ट इंस्टीट्‍यूट फॉर रिजनरेटिव मेडिसिन में ‍किया जा रहा है।
 
ऐसी उम्मीद की जाती है कि प्रयोगशाला में पैदा किए गए इन अंगों क पांच साल में परीक्षण के लिए मनुष्यों पर आजमाने की अमेरिकी फूड और ड्रग ‍एडिमिनिस्ट्रेशन से हरी झंडी मिल जाएगी। इससे पहले इसी वर्ष की शुरुआत में इसी टीम ने प्रयोगशाला में वि‍कसित की गई स्त्री जननांग को विकसित किया था और इन्हें उन चार किशोर मरीजों में प्रत्यारोपित किया गया था जो कि एमआरकेएच (मायर -रोकितांस्की-कुस्टर-होजर) सिंड्रोम से प्रभावित थीं।
 
विदित हो कि इस बीमारी के परिणामस्वरूप महिलाओं में योनि और गर्भाशय अविकसित रह जाते हैं या फिर पूरी तरह से होते ही नहीं हैं। इस तरह का इलाज उन महिलाओं के लिए भी किया जा सकता है जो कि योनि संबंधी कैंसर या चोटों से पीडि़त होती हैं।
 
इस अनुसंधान पर यूएस आर्म्ड फोर्सेज इंस्टीट्‍यूट ऑफ रिजनरेटिव मेडिसन पैसा खर्च कर रहा है। उसे उम्मीद है कि इस तरह के प्रयोग से उन सैनिकों की भी मदद की जा सकती है जो कि युद्ध के मैदान में चोटों से घायल हो जाते हैं। इंस्टीट्‍यूट के डायरेक्टर प्रोफेसर एंथनी अटल की देखरेख में वर्ष 2008 में खरगोशों के लिए लिंग विकसित करने का सफल प्रयोग किया था, लेकिन चिकित्सा नियामकों को संतुष्ट करने के लिए कई सुरक्षा बाधाओं को पार करना पड़ा था। 
 
कैसे विकसित होते हैं लिंग... पढ़ें अगले पेज पर....

प्रोफेसर अटल ने गार्जियन को बताया है कि हमारा खरगोशों पर अध्ययन बहुत सफल रहा है और हम प्रयोगशाला में विकसित किए गए अंगों को उन मरीजों में लगाना चाहते हैं जो कि किसी बीमारी या वंशानुगत कमियों से प्रभावित हैं। इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए कि किन्हीं कारणों से प्रयोगशाला में विकसित अंग को अस्वीकार न कर दे, हमने इन अंगों को प्रत्येक मरीज के शरीर की कोशिकाओं से ही इन्हें विकसित किया था। इसलिए हम पुरुष के अंग विशेष का जो हिस्सा बचा रहता है, हम उसी से कोशिकाएं लेते हैं और उन्हें छह सप्ताह तक एक कल्चर में विकसित करने का काम करते हैं। 
 
कैसे बनाए जाते हैं अंग : इसके लिए हम मरीज के लिंग के शेष हिस्से से कोशिकाएं लेते हैं और इन कोशिकाओं को एक कल्चर में छह सप्ताहों तक विकसित किया जाता है। एक लिंग का आकार बनाने के लिए एक डोनर लिंग को साबुन से धोया जाता है ताकि इसमें से डोनर के सेल निकल जाएं। एक पखवाड़े के बाद जो कुछ बच जाता है, वह मात्र एक लिंग का अस्थायी ढांचा होता है जो कि हड्‍डी, कॉर्टिलेज, टेंडन और अन्य कनेक्टिव ऊतकों से बना एक फाइब्रस प्रोटीन होता है जिसे मरीज से मिले कल्चर्ड सेल्स से जोड़ दिया जाता है। 
 
इस नई खोज के बारे में यूनिवर्सिटी कॉलेज हॉस्पिटल, लंदन के कंसलटेंट यूरोलॉजिकल सर्जन, आसिफ मुनीर का कहना है कि अगर प्रयोग शाला में विकसित किए गए लिंगों का काम सफल होता है तो यह पेनाइल कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रस्त मरीजों के इलाज की दिशा में एक बहुत बड़ी छलांग होगी।
 
वर्तमान में जो विकल्प है उसके तहत एक ऐसा लिंग बनाया जा सकता है जो कि बांह या जांघ की त्वचा की मदद से बनाया जा सकता है और इसमें प्राकृतिक तनाव को लाने के लिए एक पम्प की जरूरत पड़ेगी। वे कहते हैं कि मेरी चिंता इस बात को लेकर है कि इस प्रकार के लिंगों में कुदरती तौर पर उत्थान (इरेक्शन) की समस्या आ सकती है। हालांकि प्रोफेसर और उनकी टीम इस दिशा में भी काम कर रहे हैं।