पंजाब में खालिस्तानी खतरे का अलार्म, अब अमृतपाल की हरकत ने बढ़ाया टेंशन
पंजाब और पंजाब में खालिस्तान। यह दोनों शब्द इतिहास के पन्नों में खून-खराबे, आतंक और कई हत्याओं के साथ दर्ज हैं। जब-जब खालिस्तान शब्द अखबारों के पन्नों में छपा और न्यूज चैनलों में सुनाई आया, तब-तब हरेभरे खेतों- खलिहानों से आबाद और अन्न से खुशहाल पंजाब में बारुद की गंध और दीवारें खून से सनी हुई नजर आईं।
एक बार फिर से पंजाब में खालिस्तान के आतंक की आहट सुनाई दी है। पैटर्न भले ही अलग हो, लेकिन मांग वही खालिस्तान की है। इस बार तो हिंदुस्तान मुर्दाबाद और खालिस्तान जिंदाबाद के साथ भारत माता चोर है के नारे भी पंजाब की धरा पर सुनाई दिए।
दरअसल, खालिस्तान की इस नई आहट के पीछे जो नाम इस वक्त सामने आया है वो है अमृतपाल सिंह। अमृतपाल सिंह 'वारिस पंजाब दे' गुट का मुखिया और खालिस्तान का कट्टर समर्थक है।
हाल ही में गुरुवार को अमृतपाल सिंह ने पंजाब में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी। वो अपने हजारों समर्थकों के साथ एक अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गया। उसके समर्थकों के हाथों में धारदार तलवारें, राइफलें और मुंह पर भारत विरोधी नारे थे। कानून व्यवस्था को धता बताते हुए अमृतपाल के समर्थकों ने पुलिसवालों को मारपीट कर उन्हें लहूलुहान कर दिया। अजनाला में पुलिस थाने पर हमला किया गया। बैरिकेड तोड़े गए।
यह सब उसने अपने साथी लवप्रीत उर्फ तूफान सिंह को छुड़ाने के लिए किया, जिसे पुलिस ने पूछ्ताछ के लिए पकड़ा था। दरअसल, लवप्रीत तूफान के खिलाफ अपहरण और मारपीट का मामला दर्ज हुआ था। लेकिन अमृतपाल के आगे कानून-व्यवस्था ने घुटने टेक दिए और तूफान को छोड़ना पड़ा। लेकिन इस पूरे एपिसोड के पीछे खालिस्तान जिंदाबाद की आहट भी सुनाई दी, जो न सिर्फ पंजाब बल्कि पूरे देश के लिए खतरे के अलार्म की तरह है।
क्यों अलार्म है पंजाब के लिए?
पंजाब की धरती खालिस्तान आतंकवाद के इतिहास से कई बार सिहर चुकी है। यही वजह है कि पंजाब के पूर्व डीजीपी एसएस विर्क ने कहा-- भीड़ एकत्र करने वाली मानसिकता और इस तरह का खुला प्रदर्शन, लोकतंत्र और किसी भी राज्य की कानून व्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है, पुलिस को अजनाला की घटना से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहना चाहिए था क्योंकि पंजाब ने आतंकवाद के काले दिन देखे हैं, इसलिए प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। पूर्व डीजीपी ने कहा, हमें सुनिश्चित करना होगा कि हम काले दिनों को दोबारा वापस नहीं लौटने दें।
कौन है अमृतपाल सिंह?
अमृतपाल सिंह खालिस्तान का कट्टर समर्थक है। वो लंबे समय से इस आंदोलन से जुडा रहा है और एक स्वयंभू धार्मिक उपदेशक है। साल 2022 में दुबई से लौटा अमृतपाल सिंह अभिनेता और कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा स्थापित संगठन वारिस पंजाब दे' का प्रमुख है। सिद्धू की पिछले साल फरवरी में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। अमृतपाल सिंह दीप सिद्धू की मौत के बाद 'वारिस पंजाब दे' का प्रमुख बन गया। अमृतपाल सिंह पर ख़ुफ़िया एजेंसियों की नज़रें हैं। उस पर खालिस्तानी आंदोलन को हवा देने का भी आरोप है। अमृतपाल ने इशारों में गृह मंत्री को भी धमकी दी थी। उसने कहा था, इंदिरा गांधी ने हमें दबाने की कोशिश की थी, क्या हश्र हुआ?
ये 80 के दशक की स्थिति तो नहीं?
अमृतपाल के तेवरों को देखकर इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही है कि पंजाब में कहीं 80 के दशक वाली स्थिति न निर्मित हो जाए। अमृतपाल का कहना है कि पंजाब आजाद होकर रहेगा। उसने कहा कि मेरी मांग है कि जब मैं या मेरा कोई साथी खालिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाएं तो उसे कोई डर नहीं होना चाहिए। यही वजह है कि अमृतपाल को भिंडरावाले 2.0 इसलिए भी कहा जा रहा है। दरअसल, खालिस्तान की मांग के तार पाकिस्तान से लेकर कनाडा तक जुडे हैं। इसलिए यह भारत के लिए एक गंभीर मसला है।
आइए जानते हैं कौन हैं खालिस्तानी, क्या है इनका इतिहास और किस तरह से यह आतंकी संगठनों के रूप में फैले हुए हैं।
कब शुरू हुआ खालिस्तान आंदोलन?
बात साल 1947 की है, जब अंग्रेज भारत को दो देशों में बांटने की योजना बना रहे थे, तभी कुछ सिख नेताओं ने अपने लिए अलग देश खालिस्तान की मांग की। उन्हें लगा कि अपने अलग मुल्क की मांग करने के लिए ये सबसे सही वक्त है। भारत से अलग होकर पाकिस्तान तो बन गया, लेकिन खालिस्तान नहीं बन सका। आजादी के बाद इसे लेकर कई हिंसक आंदोलन हुए, जिसमें कई लोगों की जानें भी गईं।
पंजाबी सूबा और अकाली दल का उदय
साल 1950 में अकाली दल ने पंजाबी सूबा आंदोलन के नाम से आंदोलन चलाया। भारत सरकार ने साफतौर पर पंजाब को अलग करने से मना कर दिया। ये पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने की कोशिश हुई। अकाली दल का जन्म हुआ। कुछ ही वक्त में इस पार्टी ने बेशुमार लोकप्रियता हासिल कर ली। अलग पंजाब के लिए जबरदस्त प्रदर्शन शुरू हुए।
सरकार ने बात मानी
1966 में भारत सरकार ने पंजाब को अलग राज्य बनाने की मांग मान ली, लेकिन भाषा के आधार पर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और केंद्र शाषित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई। अकाली चाहते थे कि पंजाब की नदियों का पानी किसी भी हाल में हरियाणा और हिमाचल को नहीं दिया जाए। सरकार ने इसे मानने से साफ इनकार कर दिया।
कब खालिस्तान नाम आया सामने?
अलग सिख देश की आवाज लगातार उठती रही। आंदोलन भी होते रहे। 1970 के दशक में खालिस्तान को लेकर कई घटनाएं हुईं। 1971 में जगजीत सिंह चौहान ने अमेरिका जाकर वहां के अखबार में खालिस्तान राष्ट्र के तौर पर एक पेज का विज्ञापन प्रकाशित कराया और इस आंदोलन को मजबूत करने के लिए चंदा मांगा। बाद में 1980 में उसने खालिस्तान राष्ट्रीय परिषद बनाई और उसका मुखिया बन गया। लंदन में उसने खालिस्तान का देश का डाक टिकट भी जारी किया। इससे पहले 1978 में जगजीत सिंह चौहान ने अकालियों के साथ मिलकर आनंदपुर साहिब के नाम संकल्प पत्र जारी किया, जो अलग खालिस्तान देश को लेकर था।
भिंडरावाले का उदय
80 के दशक में खालिस्तान आंदोलन पूरे उभार पर था। उसे विदेशों में रहने वाले सिखों के जरिए वित्तीय और नैतिक समर्थन मिल रहा था। इसी दौरान पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाले खालिस्तान के सबसे मजबूत नेता के रूप में उभरा। उसने स्वर्ण मंदिर के हरमंदिर साहिब को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। उसने अपने साथियों के जरिए पूरे पंजाब में इस आंदोलन को खासा उग्र कर दिया। तब ये स्वायत्त खालिस्तान आंदोलन अकालियों के हाथ से निकल गया।
आपरेशन ब्लू स्टार
पहले 'ऑपरेशन सनडाउन' बनाया गया, 200 कमांडोज को इसके लिए ट्रेनिंग दी गई। लेकिन बाद में आम नागरिकों को ज्यादा नुकसान की आशंका के चलते इस ऑपरेशन को नकार दिया गया। आखिरकार एक जून 1984 में भारत सरकार ने आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देकर सैन्य कार्रवाई की और इस आंदोलन को कुचल दिया।
84 के बाद खालिस्तान आंदोलन
खालिस्तान आंदोलन यहीं खत्म नहीं हुआ, इसके बाद से कई छोटे-बड़े संगठन बने। 23 जून 1985 को एक सिख राष्ट्रवादी ने एयर इंडिया के विमान में विस्फोट किया, 329 लोगों की मौत हुई थी। दोषी ने इसे भिंडरवाला की मौत का बदला बताया।
10 अगस्त 1986 को पूर्व आर्मी चीफ जनरल एएस वैद्य की दो बाइक सवार बदमाशों ने हत्या कर दी। वैद्य ने ऑपरेशन ब्लूस्टार को लीड किया था। इस वारदात की जिम्मेदारी खालिस्तान कमांडो फोर्स नाम के एक संगठन ने ली।
31 अगस्त 1995 को पंजाब सिविल सचिवालय के पास हुए बम विस्फोट में पंजाब के तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई थी। ब्लास्ट में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।
इन सब घटनाओं को खालिस्तान आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है। कई दूसरे देशों में बैठकर भी खालिस्तान समर्थक भारत में कट्टरवादी विचारधारा को हवा देते रहते हैं।
खालिस्तान के बारे में तथ्य
1971: जगजीत सिंह चौहान ने अमेरिकी अखबार में खालिस्तान राष्ट्र के तौर पर विज्ञापन दिया
1980: खालिस्तान राष्ट्रीय परिषद बनाया गया
लंदन में खालिस्तान को राष्ट्र माना और डाक टिकट जारी किया गया
विदेशों में रहने वाले सिखों ने आर्थिक मदद दी
भिंडरावाला के उदय के बाद ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया