प्रकृति मानवीय संवेदनाओं में रची बसी है। जब भी हम दुखी होते हैं तब भी प्रकृति की शरण लेते हैं और जब खुश होते हैं तब भी प्रकृति का ही साथ चाहते हैं। कभी महसूस करके देखिए ये आपके साथ रोती है और आपके साथ हँसती भी है।
और भी पढ़ें : |
WD | WD |