मंगलवार, 25 नवंबर 2025
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  4. Why is Tulsi marriage performed on Dev Uthani Ekadashi
Written By WD Feature Desk
Last Modified: मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025 (18:18 IST)

Tulsi vivah 2025: देव उठनी एकादशी पर क्यों करते हैं तुलसी विवाह?

तुलसी विवाह 2025
Dev Uthani Ekadashi 2025: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी पर देव उठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह करने के पीछे दो मुख्य और गहरे कारण हैं, जो पौराणिक कथाओं और धार्मिक महत्व से जुड़े हैं। देव उठनी एकादशी के दिन तुसली का शालिग्रामजी से विवाह करने की परंपरा है।
 
1. मांगलिक कार्यों का आरंभ (देवों का जागना):
देव उठनी एकादशी को ही देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है।
 
भगवान विष्णु का जागरण: हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु चार माह की लंबी योगनिद्रा (चातुर्मास) में चले जाते हैं। देव उठनी एकादशी के दिन वह अपनी निद्रा से जागते हैं और पुनः सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं।
 
मांगलिक कार्यों की शुरुआत: भगवान विष्णु के जागने के साथ ही, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि सभी शुभ और मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं, जिन पर चातुर्मास के दौरान रोक लग जाती है।
 
प्रतीकात्मक विवाह: तुलसी विवाह को इसी मांगलिक काल के आरंभ का पहला शुभ कार्य माना जाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से सृष्टि में शुभता और विवाह संस्कारों की शुरुआत का संकेत देता है।
2. पौराणिक कथा का समापन और भगवान का वरदान: 
तुलसी विवाह कथा: तुलसी विवाह का आयोजन भगवान विष्णु और उनकी परम भक्त वृंदा (जो बाद में तुलसी बनीं) की पौराणिक कथा को दर्शाता है।
 
जालंधर और वृंदा की कथा: वृंदा, एक परम पतिव्रता स्त्री थीं, जिनके सतीत्व के कारण उनका पति राक्षस जालंधर अजेय हो गया था। देवताओं को बचाने के लिए, भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया, जिससे जालंधर युद्ध में मारा गया।
 
वृंदा का श्राप और आत्मदाह: छल का पता चलने पर, वृंदा ने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शिला (पत्थर) बनने का श्राप दिया (यही रूप शालिग्राम कहलाया)। इसके बाद, वृंदा ने आत्मदाह कर लिया।
 
तुलसी का जन्म और वरदान: जिस स्थान पर वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उग आया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया:- "हे वृंदा, तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी, और मेरा एक रूप शालिग्राम पत्थर के रूप में हमेशा तुम्हारे साथ पूजा जाएगा।"
 
तुलसी विवाह का कारण: भगवान विष्णु ने वृंदा को यह वरदान दिया था कि उनका विवाह उनके शालिग्राम रूप से होगा। इसलिए, देव उठनी एकादशी, जब भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं, उस दिन उनका विवाह तुलसी (वृंदा) के साथ कराकर इस वरदान को पूरा किया जाता है।
 
तुलसी विवाह के धार्मिक लाभ:
कन्यादान का पुण्य: तुलसी विवाह को कन्यादान के समान पुण्यदायी माना जाता है। जिन लोगों को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है, उन्हें यह विवाह कराना चाहिए।
 
सुखी वैवाहिक जीवन: यह विवाह वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।