History of Chhath Puja: छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना का एक प्राचीन पर्व है, जिसकी जड़ें धार्मिक कथाओं से अधिक, वैदिक काल की सूर्य उपासना परंपरा में निहित हैं। छठ शब्द षष्ठी (छठा दिन) से बना है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है।
1. वैदिक काल:
प्राचीनतम पर्व: छठ पूजा को भारत के उन गिने-चुने पर्वों में से एक माना जाता है, जिनकी परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है।
सूर्य उपासना: प्राचीन भारतीय ग्रंथों, जैसे ऋग्वेद में सूर्य देव की स्तुति और सूर्य सूक्त का विस्तृत वर्णन मिलता है। ये सूर्य स्तुतियां जीवन और ऊर्जा के स्रोत के प्रति आभार प्रकट करती हैं, जो छठ के मूल सिद्धांत हैं।
आरोग्य और दीर्घायु: वैदिक काल में ऋषि-मुनियों द्वारा सूर्य की उपासना मानसिक और शारीरिक शुद्धि, आरोग्य (अच्छा स्वास्थ्य) और दीर्घायु के लिए की जाती थी, जो आज भी छठ व्रत का प्रमुख उद्देश्य है।
2. भौगोलिक उत्पत्ति और प्रसार
स्थानीय साक्ष्य: मुंगेर (बिहार) में गंगा के बीच स्थित सीता चरण मंदिर जैसे कुछ स्थल हैं, जिनके बारे में स्थानीय मान्यता है कि माता सीता ने यहीं छठ पर्व मनाया था। ये स्थल छठ की प्राचीनता और क्षेत्रीय इतिहास को दर्शाते हैं।
मूल क्षेत्र: ऐतिहासिक रूप से छठ पूजा का केंद्र मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में रहा है। इन क्षेत्रों में यह पर्व एक गहरी सांस्कृतिक पहचान बन चुका है।
प्रकृति से जुड़ाव: यह पर्व प्रकृति के तत्वों सूर्य (ऊर्जा), जल (जीवन) और छठी मैया (षष्ठी देवी, संतान और स्वास्थ्य की अधिष्ठात्री) के प्रति आभार व्यक्त करने पर केंद्रित है। यह प्रकृति के साथ मनुष्य के संतुलन को दर्शाता है।
3. अनुष्ठानों का महत्व:
जल और सूर्य की भूमिका: छठ पूजा की अनूठी विशेषता यह है कि इसमें डूबते और उगते दोनों सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। डूबते सूर्य की पूजा करना इस बात का प्रतीक है कि जीवन चक्र में अंत के बाद ही एक नई शुरुआत होती है।
कठोर व्रत: इस पर्व में व्रती (विशेषकर महिलाएं) लगभग 36 घंटों का निर्जला (बिना जल के) उपवास रखते हैं, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण, और उच्च अनुशासन का प्रतीक है।
छठ पूजा पर्व का पौराणिक आधार:
1. राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा:
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।
उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
2. श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना:
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
3. द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत:
पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।
4. दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा:
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।
कौन है छठ पूजा की छठी मैया?
देवी कात्यायिनी: शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है।
सूर्यदेव की बहन: एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्यदेव की बहन भी माना गया है। इनका नाम देवसेना है। छठ पूजा में इन्हें भगवान सूर्य (सूर्य देव) की बहन के रूप में पूजा जाता है। चूँकि छठ पूजा सूर्य की उपासना का पर्व है, इसलिए छठी मैया की पूजा साथ में की जाती है। धार्मिक ग्रंथों जैसे मार्कण्डेय पुराण में भी देवी षष्ठी का उल्लेख मिलता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, देवी प्रकृति (प्रकृति माता) का एक महत्वपूर्ण और छठा अंश ही देवी षष्ठी हैं, जो सृष्टि के पोषण और रक्षा से जुड़ी हैं। छठी मैया सूर्य देव की बहन और संतान की रक्षा करने वाली देवी हैं, जिनकी पूजा छठ पर्व के दौरान विशेष श्रद्धा से की जाती है।