• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. एकादशी
  4. Tulsi Vivah Puja Method
Written By
Last Updated : शुक्रवार, 12 नवंबर 2021 (18:20 IST)

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi : देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की प्रामाणिक पूजा विधि

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi : देव उठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की प्रामाणिक पूजा विधि - Tulsi Vivah Puja Method
Dev Uthani Gyaras 2021 : 14 नवंबर 2021 को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी ग्यारस है। इस दिन तुलसी जी का शालिग्राम जी के साथ विवाह किया जाता है। तुलसी विवाह का यह प्रचलन खासकर उत्तर भारत में ही प्रचलित है। हर समाज में विवाह की रस्म निभाना और तुसली माता की पूजा करने की विधि भिन्न भिन्न होती है।
 
 
तुलसी विवाह की सरल विधि ( Tulsi Vivah Puja Vidhi  2021 ) :
 
1. जिन घरों में तुलसी विवाह होता है वे स्नान आदि से निवृत्त होकर तैयार होते हैं।
2. तुलसी के पौधे को अच्छे से सजाते हैं और जिन्हें कन्यादान करना होता है वे व्रत रखते हैं।
 
3. इसके बाद आंगन में चौक सजाते हैं और चौकी स्थापित करते हैं। आंगन नहीं हो तो मंदिर या छत पर भी तुलसी विवाह करा सकते हैं।
 
4. इसके बाद साथ ही अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करके उनका श्रृंगार करते हैं।
 
5. अष्टदल कमल के उपर कलश स्थापित करने के बाद कलश में जल भरें, कलश पर सातीया बनाएं, कलश पर आम के पांच पत्ते वृत्ताकार रखें, नारियल लपेटकर आम के पत्तों के ऊपर रख दें।
 
6. अब लाल या पीला वस्त्र पहनकर तुलसी के गमले को गेरू से सजाएं और इससे शालिग्राम की चौकी के दाएं ओर रख दें।
 
7. गमले और चौकी के आसपास रंगोली या मांडना बनाएं, घी का दीपक जलाएं।
 
8. इसके बाद गंगाजल में फूल डुबाकर ‘ॐ तुलसाय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए माता तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करें।
 
9. अब माता तुलसी को रोली और शालिग्राम को चंदन का तिलक लगाएं।
10. अब तुलसी और शालिग्राम के आसपास गन्ने से मंडप बनाएं। मंडब पर उस पर लाल चुनरी ओढ़ा दें।
 
11. अब तुलसी माता को सुहाग का प्रतीक साड़ी से लपेट दें और उनका वधू (दुल्हन) की तरह श्रृंगार करें।
 
12. शालिग्रामजी को पंचामृत से स्नान कराने के बाद उन्हें पीला वस्त्र पहनाएं। 
 
13. अब तुलसी माता, शालिग्राम और मंडप को दूध में भिगोकर हल्दी का लेप लगाएं।
 
14. अब पूजन की सभी सामग्री अर्पित करें जैसे फूल, फल इत्यादि।
 
15. अब कोई पुरुष शालिग्राम को चौकी सहित गोद में उठाकर तुलसी की 7 बार परिक्रमा कराएं।
 
16. इसके बाद तुलसी और शालिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। 
 
17. विवाह के दौरान मंगल गीत गाएं।
 
18. इसके बाद दोनों की आरती करें और इस विवाह संपन्न होने की घोषणा करने के बाद प्रसाद बांटें।
 
tulsi vivah 2021
तुलसी विवाह की पूरी और संपूर्ण विधि ( Tulsi Vivah 2021 Pooja Vidhi ) :
 
* देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं।
 
* पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें।
 
* फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें।
 
* देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें।
 
* विविध प्रकार के खेल-कूद, लीला और नाच आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : -
 
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
इसके बाद विधिवत पूजा करें।
 
कैसे करें व्रत-पूजन:-
 
* पूजन के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं।
 
* आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं।
 
* विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।
* इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : -
 
'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'
 
पश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : -
 
'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥'
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥'
साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष,शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं।
 
(शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से 'समुत्थिते ततो विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रवर्तयेत्‌' के अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं)। अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें।