Highlights :
• अपरा एकादशी की कथा जानें।
• अपरा एकादशी पूजन कैसे करें।
Apara Ekadashi 2024 : वर्ष 2024 में अपरा एकादशी व्रत 2 तथा 3 जून को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के 5वें अवतार वामन ऋषि की पूजा की जाती है। मान्यतानुसार अपरा एकादशी की कथा को पढ़ने से सोया हुआ भाग्य जागृत हो जाता है तथा सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं। यहां पढ़ें पौराणिक व्रत कथा :
इस वरक की कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था।
उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरे।
उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया।
इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
अत: अपरा एकादशी की कथा पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है। अपरा एकादशी व्रत से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होकर समस्त पापों से मुक्ति मिलती है तथा धन संपत्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही यह कथा पढ़ने से मनुष्य का सोया भाग्य जाग जाता है।
पूजा विधि : Puja Vidhi
- अपरा एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनें और एकादशी व्रत का संकल्प करें।
- तत्पश्चात पूजन से पहले घर के मंदिर में एक वेदी बनाए उस पर सात तरह के धान यानी उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें।
- उस वेदी पर कलश की स्थापना करें, उस पर आम के या अशोक वृक्ष के 5 पत्ते लगाएं।
- अब भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें और भगवान विष्णु को पीले पुष्प, ऋतु फल और तुलसी दल चढ़ाएं।
- फिर धूप-दीप से आरती करें।
- मंत्र - ॐ विष्णवे नम: का जाप करें।
- शाम को भगवान विष्णु की आरती करके फलाहार ग्रहण करें।
- रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- अगले दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन कराएं। इच्छानुसार दान-दक्षिणा दें।
- तत्पश्चात व्रत का पारण करें।
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