25th day of ramadan 2020 : नर्क से मुक्ति का मार्ग है पच्चीसवां रोजा
- प्रस्तुति : अजहर हाशमी
अल्लाह की मेहरबानी से माहे-रमजान का कारवां पच्चीसवें रोजे तक पहुंच गया है। दोजख से निजात का अशरा (नर्क से मुक्त का कालखंड) चल रहा है।
तरावीह (रमजान की रातों में की जाने वाली विशेष नमाज या प्रार्थना जो चांदरात से यानी पहले रोजे की पूर्व संध्या/पूर्व रात्रि से शुरू हो जाती है और ईद का चांद दिखते ही, समापन हो जाता है) के साथ-साथ नवाफिल (विशिष्ट पुण्य की इबादत) पढ़ने और तिलावते-क़ुरआन (कुरआन का पठन-पाठन) का दौर जारी है।
एतेकाफ (मस्जिद के किसी कोने में एकांत-साधना और नमाज के वक्त शरई उसूल से समूह-प्रार्थना यानी बा-जमाअत नमाज पढ़ना) भी परवान पर है। यानी रोजा रखने वाले रोजादार, एतेकाफ करने वाले मोअतकिफ़ और नमाज पढ़ने वाले नमाजी और इबादत करने वाले आबिद (आराधक) मशगूल और मसरूफ (ध्यानस्थ और व्यस्त) हैं।
यानी दोजख से निजात (नर्क से मुक्ति) के लिए रमजान के इस आखिरी अशरे में रोजादार कोशां (प्रयासरत) है। कोशिश और करम की कड़ियों को जोड़ा जा रहा है। कोशिश आबिद (आराधक) की, करम माबूद (आराध्य) का। यही वह मुकाम है जहां यह समझ लेना जरूरी है कि रोजादार या आबिद की इबादत को माबूद यानी अल्लाह तभी पसंद करेगा जब रोजादार, मोअतकिफ यानी आबिद (आराधक) में बिलकुल भी गुरूर (घमंड/अहंकार) नहीं हो।