भारत और इंदौर दोनों ही “टेस्ट” में सफल
इंदौर। तो ये करिश्मा भारत ने भी कर दिखाया और इंदौर ने भी। न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ 3-0 से श्रृंखला जीत कर भारत की टीम ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। होलकर स्टेडियम में इंदौर को मिले पहले टेस्ट की सौगात को इंदौरी दर्शकों ने हाथोंहाथ लपका और चारों दिन क्रिकेट का भरपूर आनंद उठाया। दरअसल इंदौरी दर्शकों के उत्साह ने टेस्ट क्रिकेट को जिलाने के लिए महत्वपूर्ण संजीवनी दी है। उत्सवप्रिय और खेलप्रेमी इंदौर ने इस जलसे को भरपूर जिया और शहर की पहचान को मजबूती दी।
क्रिकेट बोर्ड का कहना है कि छोटे शहरों को भी टेस्ट मैच से जोड़ने की नीति के तहत यह मैच इंदौर को मिला। इंदौर किस लिहाज से छोटा है ये तो बोर्ड और उसकी परिभाषा ही जाने। उत्सवधर्मिता और खेलप्रेम के मामले में तो बहुत कम ही शहर होंगे जो इंदौर से मुकाबला कर पाएँगे.... देश ही नहीं दुनिया में। कुल बाइस हज़ार की क्षमता वाला इंदौर का ये होलकर स्टेडियम तो इंदौर के क्रिकेट प्रेम के सामने हमेशा से ही बहुत छोटा पड़ता रहा है। जिस दुर्घटना की वजह से इंदौर को ये सौगात मिल पाई है, आज की इस टेस्ट जीत ने उस दाग को धोने में कुछ और साबुन-पानी लगाया है। 25 दिसंबर 1997 को नेहरू स्टेडियम में अगर वो दुर्भाग्यपूर्ण क्षण नहीं आया होता तो आज ये होलकर स्टेडियम का ऐतिहासिक दिन भी नहीं आया होता।
बहरहाल, क्रिकेट के इतने शौकीन और कर्नल नायडू, मुश्ताक अली, संजय जगदाले और नरेन्द्र हिरवानी के शहर में टेस्ट क्रिकेट पहुँचने में 85 साल क्यों लग गए, ये तो नहीं पता पर निश्चित ही देर आयद और एकदम दुरुस्त आयद।
अच्छे अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए तरस रहे इंदौर के दर्शकों ने मौके को हाथोंहाथ लपक लिया। छुट्टी का संयोग भी था। पास और टिकट की मारामारी हमेशा की तरह मच गई। जेब में ख़ूब पैसा होने के बाद भी रसूख की चादर ओढ़ने वाले अधिकतरों को घमंड का पास मिल गया। इंदौर की उत्सवप्रियता को अपने कंधे पर हमेशा से तान कर उठाने वाले भाई लोग जुगाड़ की आस छोड़ जब जहाँ जैसे मिला टिकट ख़रीद लाए। पहले दिन से ही उत्साह चरम पर था। शनिवार-रविवार की छुट्टी पर सपरिवार आ जमे। सोमवार को अपने पास और टिकट दूसरों को दे दिए। मंगलवार को दशहरे की छुट्टी के दिन भारत की बल्लेबाजी को देखते हुए फिर मारामारी मच गई। अब इंदौरी लोग फेसबुक पर पूछ भी रहे हैं कि कल की टिकट किसी को चाहिए क्या!!
.... तो ये ही ख़ालिस इंदौर अंदाज़ है जिसकी जीत हुई है। मस्त और बेफिक्र। व्हॉट्सएप और फेसबुक पर बिलकुल इंदौरी अंदाज़ में जुमले, चुटकियाँ और चुटकुले भी खूब चले। सबसे ज़्यादा चर्चा इंदौर के पोहे-जलेबी और खान-पान की हुई। कई भाई लोग ये भी कहते पाए गए कि केवल पोहे-जलेबी ही इंदौर की पहचान नहीं है, यहाँ आईआईएम और आईआईटी भी है, आरआर कैट भी है, लताजी भी हैं, ये भी है, वो भी है, .... तो मान लिया ना भई ... तो क्या ... हाँ तो वो विराट की टीम ने पोहे-जलेबी खाए कि नहीं? ..... मतलब कि ये नहीं सुधरेंगे!! कुछ भी कर लो ...।
इंदौर का ये मैच जिसमें कई कीर्तिमान बने और टूटे वो ना केवल भारतीय टीम के शानदार खेल के लिए जाना जाएगा बल्कि वो इंदौरियों के खेल-प्रेम, उत्साह और आयोजकों की मेहनत के लिए भी जाना जाएगा। भारत की 3-0 से जीत, विराट का दोहरा शतक, रविचन्द्रन अश्विन के 13 विकेट, विराट-रहाणे की साझेदारी और भारत को टेस्ट में पहले स्थान की गदा मिलने के साथ ही इंदौरी दर्शकों के जोश, उत्साह और इतनी भीषण उमस और तीखी धूप के बीच स्टेडियम में जमे रहने के हौंसले के लिए भी जाना जाएगा। इस मैच ने ये भी साबित किया कि इंदौर को अब एक नया स्टेडियम चाहिए जो 60 हज़ार से अधिक दर्शक क्षमता का हो, जिसमें इंदौर का उत्साह बेहतर तरीके परिलक्षित हो सके। मुझे विश्वास है कि इंदौर की इस आवाज़ को क्रिकेट के भागीरथ 'गट्टू सर' यानी के संजय जगदाले भी सुन रहे हैं। .... अभी तो इस मैच की जीत के लिए भारत की टीम और इंदौर के दर्शकों को बधाई और विजयादशमी की शुभकामनाएँ!