ध्यान के अनुभव निराले हैं। जब मन मरता है तो वह खुद को बचाने के लिए पूरे प्रयास करता है। जब विचार बंद होने लगते हैं तो मस्तिष्क ढेर सारे विचारों को प्रस्तुत करने लगता है। जो लोग ध्यान के साथ सतत ईमानदारी से रहते हैं वह मन और मस्तिष्क के बहकावे में नहीं आते हैं, लेकिन जो बहकावे में आ जाते हैं वह कभी ध्यानी नहीं बन सकते।
शुरुआत में ध्यान करने वालों को ध्यान के दौरान कुछ एक जैसे एवं कुछ अलग प्रकार के अनुभव होते हैं। पहले भौहों के बीच आज्ञा चक्र में ध्यान लगने पर अंधेरा दिखाई देने लगता है। अंधेरे में कहीं नीला और फिर कहीं पीला रंग दिखाई देने लगता है। लेकिन ध्यान के दूसरे चरण में अजीब तरह के अनुभव होते हैं।
लगातार ध्यान लगाते रहने के बाद लाल, नीले, पीले आदि रंगों के स्थान पर व्यक्ति को सफेद प्रकाश दिखाई देने लगता है। कुछ अंधेरा और फिर कुछ प्रकाश। ध्यान की गहराइयों में जाने के बाद मस्तिष्क उस कार्य को करने के लिए तैयार रहता है तो आपकी कल्पना या विचार से संचालित हो सकता है।
ध्यान के साथ ही यदि उत्तम और सात्विक भोजन रखा तो निश्चित ही आप मन की ताकत को समझने लगेंगे। मन और मस्तिष्क आपको तरह-तरह के अनुभव कराएंगे, जैसे हवा में ऊपर उठ जाना या कुएं की गहराई में गिर जाना। ऐसा होता नहीं, लेकिन ऐसा अनुभव होता है। यह भी हो सकता है कि आपको लगे कि आप असहनीय प्रकाश के भीतर से गुजर रहे हैं या अंधकारमय अंतरिक्ष में कहीं भटक गए हैं।
यह सिर्फ मन का खेल रहता है। मन और मस्तिष्क पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा शक्तिशाली बन जाते हैं, क्योंकि ध्यान से उन्हें उतनी ऊर्जा मिल गई होती है जितनी की उनके प्रारंभिक काल में थी (गर्भकाल)। जरूरी है नींद में जाने की अपेक्षा साक्षी बने रहना।
साक्षी रहने वाला मन और मस्तिष्क ही अनंत सिद्धियों में छलांग लगा सकता है। सिद्धियों का अर्थ पाचों इंद्रियों सहित छटी इंद्री की क्षमता का विकास करना।