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Written By Author शरद सिंगी

हांगकांग में बर्बरता से खुद चीन की फजीहत

Vandalism in hong kong | हांगकांग में बर्बरता से खुद चीन की फजीहत
हांगकांग इस समय सुर्खियों में है। वहां प्रदर्शनकारी अपने मौलिक अधिकारों के लिए निरंतर आंदोलन और संघर्ष कर रहे हैं किंतु उन पर प्रशासन की बर्बरता हो रही है। प्रदर्शनकारियों की मांगों को समझने से पहले हांगकांग के इतिहास को थोड़ा देखना पड़ेगा।
 
हांगकांग, वर्तमान में तो चीन का हिस्सा है किंतु उसकी संस्कृति, मुद्रा, राजनीतिक व्यवस्था और संविधान चीन से भिन्न है। हांगकांगवासी अपने आपको 'चीनी' नहीं कहलवाना चाहते। नई पीढ़ी के लिए थोड़ी अचरज की बात तो है कि एक ही देश में दो मुद्रा कैसे चल सकती है?
हांगकांग छोटे-बड़े द्वीपों का एक समूह है, जो 150 वर्षों तक इंग्लैंड का उपनिवेश था। अभी कोई 22 वर्षों पूर्व ही सन् 1997 में इंग्लैंड ने इसे चीन को लौटाया था। इग्लैंड की राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत वहां मजबूत प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थापित तो हुई किंतु इंग्लैंड के जाते ही उसे चीन की कम्युनिस्ट सरकार के अधीन जाना पड़ा। यद्यपि चीन ने हांगकांग की जनता और दुनिया को आश्वस्त किया था कि वह हांगकांग की स्वायत्तता और उसकी राजनीतिक व्यवस्था के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा किंतु चीन तो फिर चीन ही है।
 
हांगकांग का संविधान, हांगकांग के निवासियों को स्वतंत्र प्रेस, बोलने की आजादी और सरकार का विरोध करने का बुनियादी अधिकार देता है, जो चीन के आम नागरिकों के लिए उपलब्ध नहीं है किंतु चीन इन अधिकारों की व्याख्या अब अपने साम्यवादी तरीके से करना चाहता है।
 
हांगकांग में बोलने की आजादी चीन की सरकार के लिए एक दुखती रग है इसलिए कई तरह से वह हांगकांग के कानूनों ने परिवर्तन का प्रयास कर रहा है। उसने एक कानून बनाया जिसके तहत वह किसी भी हांगकांगवासी पर मुकदमा चलाने के लिए उसका चीन में प्रत्यर्पण करवा सकता है। बस इसी प्रस्तावित कानून को लेकर जनता में भूचाल आ गया। इसके अलावा चीन ने हांगकांग की सड़कों पर स्मार्ट लैंप पोस्ट लगा दिए गए हैं जिन पर सेंसर और कैमरे लगे हुए हैं।
 
सरकार की ओर से बताया गया कि खंभों पर लगे कैमरे ट्रैफिक नियंत्रण और प्रदूषण की जांच आदि के लिए लगाए गए हैं किंतु प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि ये उन पर अवांछित निगरानी के लिए लगाए गए हैं। हांगकांग की जनता को चीन के ये पैंतरे नागवार गुजर रहे हैं। कैमरों के डर से सत्याग्रही मुंह पर मास्क लगाकर घूमने को मजबूर हैं ताकि वे पहचाने नहीं जा सकें।
 
हांगकांग के निवासियों को हांगकांग की शासन व्यवस्था में चीन की दखल बर्दाश्त नहीं है। साथ ही, उनकी मांग और अधिक लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की है। प्रदर्शनकारियों की यह मांग भी है कि पिछले 3 माहों से चल रहे आंदोलन में जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, उन्हें तुरंत छोड़ा जाए और पुलिस की बर्बरता की जांच हो।
 
चीन की साम्यवादी सरकार के लिए इस तरह के आंदोलन नई चीज है, क्योंकि वहां एकल पार्टी सिस्टम है। न्याय प्रणाली पश्चिमी देशों की तरह स्वतंत्र नहीं है। सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी के विरुद्ध चीन में कोई आवाज नहीं उठा सकता है। हांगकांग में हो रही इस बर्बरता के बावजूद चीन के विरुद्ध मानवाधिकार वाले भी चुप हैं। शक्तिशाली से कोई पंगा नहीं लेना चाहता।
 
कश्मीर में प्रजातंत्र की दुहाई देने वाले पाकिस्तान को हांगकांग में हो रहे अत्याचार दिखाई नहीं दे रहे। बिना किसी प्रमाण के भारत पर आरोप लगाने वाले पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार सम्मेलन में चीन के विरुद्ध चूं भी नहीं किया, जहां के कि सैकड़ों वीडियो प्रमाण के रूप में इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।
 
उधर चीन, कश्मीर के मामले में इसलिए चुप है कि यदि उसने कुछ बोला तो भारत के पास हांगकांग और उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर बोलने के लिए बहुत कुछ है। इसलिए कश्मीर पर कुछ बोलने से पूर्व विश्व का चाहे कोई देश हो, उसे पहले अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यकता होगी।
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