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Written By Author जनमेजय सिंह सिकरवार

इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स : तकनीक, सुविधा और चुनौती

इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स : तकनीक, सुविधा और चुनौती - Internet of things
एक ऐसी एम्बुलेंस, जो किसी सड़क दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को लेने जाते समय पहले तो सबसे कम समय लेने वाले रास्ते का चुनाव कर सके, और फिर घायल का पूरा चिकित्सकीय इतिहास ऑनलाइन खंगालकर उसकी प्राथमिक चिकित्सा में जो उपकरण व दवाएँ लग सकती हैं, उन्हें तैयार कर ले? चौंकिए मत! सूचना प्रौद्योगिकी हमारी दुनिया को कहाँ ले जाएगी, कोई नहीं जानता।
 

तीन-चार दशक पहले आधुनिक कम्प्यूटर के पहले पदार्पण तक हमारी दुनिया में हर प्रकार की तकनीक ने मंथर गति से पदार्पण किया। उदाहरण के लिए पत्थरों से शिकार करने से लेकर आग जलाकर उसे पकाने और आग के माध्यम से जानवरों को डराकर उनका शिकार करना सीखने में इंसान को लगभग 12 लाख वर्ष लग गए। लेकिन अब आलम यह है कि लगभग हर वर्ष तकनीक हमारे जीवन को पूरी तरह बदल डालती है। जैसे 1996 के लगभग भारत में पेजर का पदार्पण हुआ किंतु 1 ही साल के भीतर मोबाइल फ़ोन आए और पेजर का वजूद ख़त्म-सा हो गया।
 
इसी प्रकार पिछले कुछ समय में मोबाइल ऐप्स ने अपना डंका बजा दिया और दुनिया ने समझा कि अब सबकुछ ये ऐप्स ही करेंगे, परंतु सूचना-प्रौद्योगिकी की तेज़ चाल फिर सबकुछ बदलने लगी है। इस बार सामने आए हैं इंटरनेट इनेबल्ड डिवाइस, न-न, स्मार्ट वॉच, टीवी या स्मार्ट फ़ोन नहीं, हम बात कर रहे हैं उन उपकरणों की, जो खुद सोच सकते हैं और अपने मन से कोई काम कर सकते हैं। और इनके साथ उदय हुआ है इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स का!
 
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क्या है इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स? : इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स एक ऐसी कॉन्सेप्ट है जिसके तहत इंटरनेट से जुड़े खुद की सोच-समझ रखने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इंटरनेट के माध्यम से समय से पहले कुछ काम कर सकते हैं। इसे तकनीक की दुनिया में नॉन-स्क्रीन कम्प्यूटिंग भी कहा जा रहा है, क्योंकि ये उपकरण एक कम्प्यूटर की तरह सोच तो सकते हैं, लेकिन इनमें कम्प्यूटर की तरह कोई स्क्रीन नहीं है।

इस विचार का उदय 1982 में कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी के एक लैब में हुआ था, जब वहाँ के शोधार्थियों ने एक कोक मशीन को इंटरनेट से जोड़ा था। यह मशीन अपने भीतर रखे गए पेय पदार्थ की बोतलों की संख्या का हिसाब रख सकती थी व उनके तापमान को माप लेती थी। वहाँ से चलकर अब हम एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहाँ 2020 तक ऐसे समझदार उपकरणों की संख्या 26 अरब हो जाने का अनुमान है, जो स्वयं अपना संचालन करेंगे।
 
तो इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स हमारे जीवन में क्या नवीनता ला रहा है? उदाहरण के लिए कितना अच्छा होगा यदि कोई फ़्रिज अपने भीतर झाँककर स्वयं ही समाप्त हो चुके सामान का ऑर्डर किसी स्टोर को दे दे या फिर आपकी गाड़ी को देखकर सिक्योरिटी कैमरा आपके मकान के सिक्योरिटी सिस्टम को गराज का ताला खोल देने और शटर के मैकेनिज़्म को शटर खोलने तथा गराज की बत्तियों को ऑन हो जाने का आदेश दे सके। ऐसी कारों के प्रोटोटाइप तो बन ही गए हैं, जो आपको ऑफ़िस के दरवाज़े पर उतारकर खुद ही पार्किंग स्पेस में जाकर पार्क हो जाएँ और आपके द्वारा मोबाइल से एक संकेत किए जाने पर वहाँ से आकर आपकी सेवा में हाज़िर हो जाएँ।
 
यह सुनने में किसी साइंस फ़िक्शन वाली हॉलीवुड फ़िल्म का प्लॉट लग सकता है, लेकिन अब हम ऐसे उपकरणों के बहुत नज़दीक पहुँच चुके हैं, बल्कि इस तरह के कई उपकरण तो वास्तविक दुनिया में कदम रख भी चुके हैं। उदाहरण के लिए आज ऐसे उपकरण वास्तव में बाज़ार में मौजूद हैं जिन्हें अपने मोबाइल फ़ोन से नियंत्रित करके आप अपने घर के किसी कमरे के लाइट-पंखे या एसी बंद या चालू कर सकते हैं।
 
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सुविधा और समय की बचत : जैसा कि आप समझ ही गए होंगे, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स एक ऐसे युग का आगाज़ है जिसमें समझदार उपकरण आपकी हर ज़रूरत को समय से पहले पूरा करेंगे। खुद पार्क हो जाने वाली कार के उपरोक्त उदाहरण में, कार का सिस्टम पार्किंग के उपकरणों से जुड़कर वहाँ के खाली स्थान का पता लगा लेता है और इमारत के नक्शे को देखकर कार को वहाँ तक ले जाता है। वहाँ जाकर अपने आस-पास देखने की क्षमता का उपयोग करके कार उस खाली स्थान पर खड़ी हो जाती है। इस उदाहरण में उपकरणों ने इंटरनेट, अपने दिशा-ज्ञान और दूसरे उपकरणों से काम की जानकारी पाने की क्षमता का प्रदर्शन किया।
 
इसी प्रकार कई स्मार्ट उपकरण एक-दूसरे से जुड़कर शॉपिंग मॉल्स में आपकी खरीदारी के तरीके और पसंद (आप अकेले थे तब किस प्रकार के उत्पादों के पास बार-बार गए, परिवार के साथ होने पर आपने किन उत्पादों पर अधिक ध्यान दिया, किन कपड़ों को आपने उठाकर देखा और किस रंग पर आपकी नज़र अधिक रही आदि) के आधार पर आपके लिए सटीक विज्ञापन कर सकेंगे। वे अधोसंरचना, जैसे सड़कों, पुलों, पानी और बिजली के वितरण की प्रणाली पर नज़र रख सकेंगे और यहाँ तक कि उनके रखरखाव का समय भी निर्धारित कर सकेंगे, ऊर्जा व चिकित्सा के क्षेत्र में महती भूमिका निभाएँगे।

इनका सड़क सुरक्षा, परिवहन, दुर्गम इलाकों में मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले कई कामों आदि के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण योगदान होगा तथा वे जीवन के हर क्षेत्र में नि:शक्त व सामान्य लोगों के लिए नई सुविधाएँ जुटाएँगे। हम कुछ समय से ऐसे रोबोट देख रहे हैं, जो अपने मालिक के मौखिक आदेशों पर कोई काम कर सकते हैं। इंटरनेट इनेबल्ड स्मार्ट उपकरण उनसे भी एक कदम आगे जाकर हमारा कोई आदेश मिलने से पहले ही अपना काम कर लेने में सक्षम होंगे।
 
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चुनौतियाँ नित नई : सुविधाएँ बढ़ने के साथ ही ये उपकरण हमारी दुनिया के लिए चुनौतियाँ भी लाएँगे, जैसा कि आपने टर्मिनेटर-3 में देखा होगा। एक कम्प्यूटर नेटवर्क स्वयंभू बनकर अपने आका -इंसान- की पूरी दुनिया के लिए खतरा बन जाता है। यदि स्मार्ट डिवाइसेज़ की बढ़ती स्मार्टनेस पर मानव जाति का प्रभावी नियंत्रण न रहा, तो अरबों की संख्या में मौजूद, एक-दूसरे से जुड़कर काम करने में सक्षम ये उपकरण वास्तव में हमें धरती पर ही नर्क का नज़ारा दिखा सकेंगे।
 
लेकिन इस स्थिति तक पहुँचने से पूर्व अभी कई और चुनौतियाँ भी हैं जिनका समाधान खोजा जाना बाकी है। उदाहरण के लिए यदि आपका सिक्योरिटी सिस्टम आपके मोबाइल के साथ काम करने के लिए बना है, लेकिन आप उसे कम्प्यूटर के ज़रिए भी नियंत्रित करना चाहें, तो हो सकता है निर्माता कंपनी का कस्टमर केयर आपको पूरा समाधान उपलब्ध न करा सके। स्मार्ट डिवाइस कई प्रकार की कोडिंग तकनीकों, कोडिंग के हार्डवेयर के साथ तालमेल या इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ कोड के काम करने से चलते हैं और अभी उनके निर्माण या विकास के लिए कोई मानक तय नहीं किए गए हैं।
 
दुनिया के कई हिस्सों में वैज्ञानिकों व शोधार्थियों के दल मिलकर इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के लिए मानकों के निर्धारण पर काम कर रहे हैं। लेकिन इन मानकों का ध्यान रखते समय हमें यह भी देखना होगा कि कुछ प्रकार के उपकरण, कुछ खास प्रकार के कामों के लिए कभी न बनाए जाएँ। जैसे कोई स्मार्ट उपकरण किसी 3-डी प्रिंटर को कभी बंदूक बनाने का आदेश न दे सके इसके लिए आवश्यक है कि वह कभी 3-डी प्रिंटर के साथ बात ही न कर सके और यह हमारे मानकों के स्तर पर नियत किया जाए।