रविवार, 22 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. Atal Bihari Vajpayee
Written By Author देवेंद्रराज सुथार

अटल युग का अंत

अटल युग का अंत - Atal Bihari Vajpayee
देश के पूर्व प्रधानमंत्री, पत्रकार व कवि हृदय भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी का निधन राजनीति एवं साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। अटल बिहारी वाजपेयी एक दैदीप्यमान नक्षत्र थे जिनके व्यक्तित्व ने हर किसी को उनकी ओर आकर्षित किया। उनके इसी उदार चरित्र के कारण ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। इसके अलावा इन्होंने भी अपने विरोधियों के सही कामों को हमेशा सराहा है। 28 वर्ष की उम्र में अटल बिहारी वाजपेयी संसद पहुंचे थे।
 
 
लोकसभा में कश्मीर मुद्दे को वाजपेयी ने ओजस्वी भाषण देकर उठाया। वाजपेयी का इस तरह से भाषण देना तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को काफी पसंद आया था। प्रभावित होकर संसद में ही पं. नेहरू ने कहा कि एक दिन वाजपेयी जरूर प्रधानमंत्री बनेंगे, तो दूसरी तरफ साल 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। श्रद्धांजलि देने के बाद वाजपेयी ने कहा था कि एक सपना अधूरा रह गया। एक गीत मौन हो गया और एक लौ बुझ गई। दुनियाभर को भूख और भय से मुक्त कराने का सपना। गीता के ज्ञान से भरा गीत और रास्ता दिखाने वाली लौ।
 
वाजपेयी ने आगे कहा कि यह एक परिवार, समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है। भारतमाता शोक में है, क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया। मानवता शोक में है, क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया। दुनिया के मंच का मुख्य कलाकार अपना आखिरी एक्ट पूरा करके चला गया। उसकी जगह कोई नहीं ले सकता। वाजपेयी इतने पर ही नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि लीडर चला गया है, लेकिन उसे मानने वाले अभी हैं। सूर्यास्त हो गया है, लेकिन तारों की छाया में हम रास्ता ढूंढ़ लेंगे। यह इम्तिहान की घड़ी है लेकिन उनको असली श्रद्धांजलि भारत को मजबूत बनाकर ही दी जा सकती है।
 
इसी प्रकार एक समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को इलाज की जरूरत थी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधिमंडल का सदस्य बनाकर उन्हें अमेरिका भेज दिया था। साल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गई तो पत्रकार ने वाजपेयी से संपर्क किया। उन्होंने पत्रकार को अपने घर बुलाया और कहा कि अगर वे विपक्ष के नेता के नाते उनसे राजीव गांधी के खिलाफ कुछ सुनना चाहते हैं तो वे एक शब्द भी उनके खिलाफ नहीं कह सकते, क्योंकि आज अगर वे जीवित हैं तो उनकी मदद कारण ही जिंदा हैं। वाजपेयी ने बेहद भावुक होकर यह किस्सा बयान किया था।
 
उन्होंने कहा कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तो उन्हें पता नहीं कैसे पता चल गया कि मेरी किडनी में समस्या है और इलाज के लिए मुझे विदेश जाना है। उन्होंने मुझे अपने दफ्तर में बुलाया और कहा कि वे उन्हें आपको संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और उम्मीद है कि इस अवसर का लाभ उठाकर आप अपना इलाज करा लेंगे। मैं न्यूयॉर्क गया और आज इसी वजह से मैं जीवित हूं। फिर वाजपेयी बहुत भाव-विह्वल होकर बोले कि मैं विपक्ष का नेता हूं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि मैं विरोध में ही कुछ बोलूंगा लेकिन ऐसा मैं नहीं करने वाला। मैं राजीव गांधी के बारे में वही कह सकता हूं, जो उन्होंने मेरे लिए किया। आपको मंजूर है तो बताएं। नहीं तो मैं एक शब्द नहीं कहने वाला।
 
ऐसे विराट व्यक्तित्व के धनी रहे हैं अटल बिहारी वाजपेयी जिन्होंने हमेशा राजनीति की स्वच्छ परिभाषा गढ़ने की कोशिश की। अपने विरोधियों को जितना सम्मान उन्होंने दिया है, उतना ही सम्मान उन्होंने पाया भी है। आज ये शुचिता, ये स्वच्छता राजनीति से गायब है। कब नई पीढ़ी अपने पुराने नेताओं से सीखेगी? कब ये पीढ़ी एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की बजाय स्वस्थ राजनीति करना शुरू करेगी?
 
शायद ऐसा न हो, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी का कोई पर्याय नहीं हो सकता। उनके मार्ग पर चलना कठिन है। उन्होंने कुर्सी से ज्यादा देशहित को तवज्जो दी है। अधिकांश समय विपक्ष में रहकर सरकार को सचेत करने की भूमिका का उन्होंने पूरी ईमानदारी से पालन किया है। आज रातोरात राजनेताओं को पद चाहिए और इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
 
धैर्य जो अटल बिहारी वाजपेयी ने दिखाया, उतना धैर्य किसी राजनेता के पास नहीं दिखता। इतना धैर्य, इतनी शुचिता, इतनी ईमानदारी और ऐसा व्यक्तित्व बनने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए और वो किसी राजनेता के पास शायद नहीं है।
ये भी पढ़ें
25 दिसंबर : क्रिसमस पर निबंध