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Written By Author श्रवण गर्ग
Last Modified: मंगलवार, 31 मार्च 2020 (11:10 IST)

माफ़ी की वह मांग तो भाव-विभोर करने वाली थी!

माफ़ी की वह मांग तो भाव-विभोर करने वाली थी! - apology of narendra modi
प्रधानमंत्री ने समूचे देश को आश्चर्यचकित करते हुए भाव-विभोर कर दिया। जनता इस तरह से भावुक होने के लिए तैयार ही नहीं थी। पिछले छह-सात सालों में ‘शायद’ पहली बार ऐसा हुआ होगा कि 130 करोड़ लोगों से उन्होंने अपने ‘मन की बात’ इस तरह से बांटी होगी। 
 
'लॉक डाउन’ से होने वाली दिक़्क़तों पर उन्होंने जो कुछ कहा वह चौंकाने वाला था। 'जब वे अपने भाई-बहनों की तरफ़ देखते हैं तो उन्हें महसूस होता है कि वे सोच रहे होंगे कि ये कैसा प्रधानमंत्री है जिसने हमें इतनी कठिनाइयों में डाल दिया है।’
 
देश में जो मौजूदा हालात हैं उन्हें देखते हुए भी प्रधानमंत्री से इस तरह की उदारता की उम्मीद किसी को नहीं थी। वह इसलिए कि पिछले वर्षों में कुछेक बार निश्चित ही ऐसी परिस्थितियां बन चुकी हैं कि सरकार के ही फ़ैसलों के कारण जनता को अपार कष्टों का सामना करना पड़ा है और उसके लिए कभी किसी भी कोने से कोई सहानुभूति व्यक्त नहीं की गई। माफ़ी मांगना तो बहुत ही बड़ी बात हो जाती।
 
प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ को इस तरह से भी समझा जा सकता है कि वे माफ़ी की मांग खुद के लिए नहीं बल्कि समूची सरकार, उसमें शामिल ‘गो-कोरोना-गो’ घटकों, स्वास्थ्य मंत्री और उस नौकरशाही के लिए कर रहे थे जो कि इतने बड़े वैश्विक संकट के दौरान ऊंघती हुई नहीं बल्कि सोती हुई पकड़ी गई है।
 
चीन के वुहान प्रांत में महामारी ने दिसंबर में ही दस्तक दे दी थी। हमारे यहां 30 जनवरी को पहला केस दर्ज होने के बाद से 19 मार्च तक, जब कि प्रधानमंत्री ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 22 मार्च को एक दिन के ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा की थी, चीन में कोई तीन हज़ार से ज़्यादा जानें चुकी थीं।
 
महामारी तब तक अमेरिका और यूरोप के कई देशों में पैर पसार चुकी थी। कोई दो से ज़्यादा महीनों का बहुमूल्य समय केंद्र और राज्यों की लचर व्यवस्था हज़म कर गई। यही वह वक्त था जब कि सारे इंतज़ाम होने थे। कामों की असली शुरुआत पिछले दस-पंद्रह दिनों में हुई है या पहले से की जा रही थी समय आने पर पूछा ही जाना चाहिए। बचाव के उपकरणों की हक़ीक़त केवल मोर्चे पर लगे चिकित्साकर्मी ही बता सकते हैं।
 
संकट से उबारने के तत्काल बाद, देश के सभी नागरिकों को केंद्र सरकार के साथ-साथ अपने-अपने सूबों की हुकूमतों से विस्तृत ‘श्वेत पत्रों’ की मांग करनी चाहिए। इन ‘श्वेत पत्रों’ के ज़रिए उनसे मांग की जाए कि वे इन 70 दिनों में गुजरे हरेक घंटे में उनके द्वारा किए गए कामों का जनता के सामने ब्यौरा पेश करें। निरपराध लोगों की मौतों और जनता द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों का नैतिक भुगतान भी ज़रूरी है।
 
देश की जनता चाहे तो इस बात पर खेद व्यक्त कर सकती है कि अपने जिस ‘गवरनेंस'ने को प्रधानमंत्री अपनी सबसे बड़ी ताक़त मानकर चल रहे हैं, उसी की लापरवाही के लिए उन्हें माफ़ी मांगनी पड़ रही है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में संपादक और समूह संपादक रह चुके हैं। 
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