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Last Updated :नई दिल्ली , बुधवार, 8 नवंबर 2017 (12:22 IST)

#1yearofDemonetization नोटबंदी से नहीं खत्म हुआ कालाधन

#1yearofDemonetization नोटबंदी से नहीं खत्म हुआ कालाधन - demonetisation black money
नई दिल्ली। देश के तैंतीस गैर सरकारी संगठनों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि 55 प्रतिशत लोगों का मानना है कि नोटबंदी से काले धन का सफाया नहीं हुआ और 48 प्रतिशत लोगों की राय है कि आतंकवादी हमलों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
        
गत वर्ष आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के एक साल बाद देश की अर्थव्यस्था पर पड़े प्रभावों का अध्ययन करने वाले इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट आज यहां जारी की गई जिसमें यह निष्कर्ष सामने आया है। सामाजिक संगठन अनहद के नेतृत्व में देश के 21 राज्यों में 3647 लोगों के सर्वेक्षण के दौरान नोटबंदी से जुड़े 96 प्रश्न पूछे गए थे।
            
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता जान दयाल, गौहर राजा, सुबोध मोहंती और शबनम हाशमी द्वारा मंगलवार को यहां जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल 26.6 प्रतिशत लोगों का मानना है कि नोटबंदी से कालेधन का सफाया हुआ है, जबकि 55.4 प्रतिशत लोग मानते हैं कि कालाधन नहीं पकड़ा गया, जबकि 17.5 प्रतिशत लोगों ने इस पर जवाब नहीं दिया। 
इसी तरह केवल 26.3 प्रतिशत ने माना कि नोटबंदी से आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा जबकि 25.3 प्रतिशत ने कोई जवाब नहीं दिया। 33.2 प्रतिशत ने माना कि इससे घुसपैठ कम हुई जबकि 45.4 ने माना कि घुसपैठ कम नहीं हुई जबकि 22 प्रतिशत लोगों ने जवाब नहीं दिया।
            
रिपोर्ट के अनुसार, 48.6 प्रतिशत लोगों का कहना है कि कैशलेस समाज बनाने का झांसा देने के लिए नोटबंदी की गई जबकि 34.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि नकदी रहित अर्थव्यवस्‍था अच्छी बात है और सरकार ने इस दिशा में कदम उठाया है, जबकि केवल 17 प्रतिशत लोगों ने माना कि अर्थव्यवस्‍था को नकदी रहित बनाने के लिए ही नोटबंदी की गई।
            
सर्वेक्षण में यह भी दावा किया गया है कि केवल 6.7 प्रतिशत लोगों का कहना है कि नोटबंदी से आम जनता को फायदा हुआ, जबकि 60 प्रतिशत लोगों ने माना कि इस से कॉर्पोरेट जगत को लाभ हुआ जबकि 26.7 प्रतिशत की नज़र में नोटबंदी से सरकार को फायदा हुआ। सर्वे में 65 प्रतिशत लोगों ने माना कि नोटबंदी के दौरान अमीर लोग बैंक की लाइन में नहीं लगे जबकि नोटबंदी से 50 प्रतिशत  लोगों का भरोसा सरकार पर से ख़त्म हो गया। 
            
सर्वेक्षण को तैयार करने में वादा न तोड़ो, युवा, मजदूर किसान विकास संस्थान, आश्रय, आसरा मंच, नई सोच, पहचान, रचना, अधिकार, अभियान जैसे अनेक संगठनों ने सहयोग किया है। रिपोर्ट में उन 90 मृतक की सूची भी दी गई जो नोटबंदी के दौरान मौत के शिकार बने। (वार्ता)