विश्व में हैप्पीनेस रैंकिंग में तीसरा स्थान प्राप्त कर चुके नार्वे के लोगी की हैप्पीनेस में कोरोनावायरस (Coronavirus) के संक्रमण ने तनाव घोल दिया है। वहां लॉकडाउन (Lockdown) के समय से आज तक सार्वजनिक परिवहन बंद नहीं रहे, वहीं लोगों ने स्वतः ही सरकारी नियमों का पालन किया। विज्ञान और प्राद्योगिकी विश्वविद्यालय, नार्वे के आईसीटी और प्राकृतिक विज्ञान विभाग के साईबर भौतिक प्रणाली प्रयोगशाला में पोस्ट डॉक्टरल शोधकर्ता डॉ. रमेशचंद्र पूनिया ने वेबदुनिया के साथ खास बातचीत में कोरोना कालखंड से जुड़ी कई बातें साझा कीं।
पूनिया ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान मैंने जरूरी यात्राओं को छोड़कर अधिकतर यात्राओं को रद्द किया। हालांकि नार्वे में लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक परिवहन कभी भी बंद नहीं रहा। अभी भी लोग फ्लाइट, ट्रेन एवं बसों से यात्रा सकते हैं। मैंने सामान्यतः घर से ही ऑफिस के कार्य किए। यह मेरे लिए एक अच्छा समय था, जिसमें कि मैंने अपने शोध संबंधी कार्य भी किए। इस दौरान मैंने कोविड-19 के संबंध में दो रिसर्च पेपर पर कार्य के साथ अन्य शोध कार्य भी किया। मैंने यह भी महसूस किया कि यदि हम घर पर पूरा समय बिताते हैं तो स्ट्रेस भी रहता है। इस स्ट्रेस को दूर करने के लिए योग, मेडिटेशन सहित अन्य आध्यात्मिक गतिविधियां कीं।
भारत जैसा लॉकडाउन नहीं : नार्वे में मुझे दैनिक गतिविधियों में किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई। किराना एवं खाद्य पदार्थ सहज ही बाजार में उपलब्ध थे। कभी-कभी कुछ समय के लिए कोरोना से बचने के लिए उपयोग में आने वाले सामान आदि की जरूर कमी रहती थी, लेकिन बाद में सब कुछ उपलब्ध हो जाता था।
हालांकि मैंने कोरोना संक्रमण एवं इसकी भयावहता को देखते हुए बाहर की सभी यात्राएं रद्द कर दीं। इनमें मेरी जर्मनी एवं कुछ अन्य स्थानों पर रिसर्च कॉन्फ्रेंस में भाग लेने संबंधी यात्राएं भी शामिल थीं। नार्वे में लॉकडाउन भारत जैसा नहीं था। यहां लोग घूमने के लिए बाहर आ-जा सकते थे। लेकिन यह भी देखा गया कि यहां सार्वजनिक परिवहन का किसी ने भी उपयोग नहीं किया। ज्यादातर लोगों ने निजी वाहनों का ही उपयोग किया। सार्वजनिक स्थान अब नार्वे में खोल दिए गए हैं, लेकिन एहतियात के तौर पर सावधानियां जरूरी हैं।
हर व्यक्ति का प्राइमरी डॉक्टर : यहां सरकार ने कोरोना संक्रमण की भयावहता को देखते हुए तत्परता से कार्य किए हैं। इसके चलते सरकार ने बहुत बड़ी संख्या में टेस्ट किए हैं। इसके साथ ही जो लोग संक्रमित थे एवं जिन लोगों के संपर्क में आए उन पर विशेष रूप से ध्यान रखा गया। यहां हर व्यक्ति एक प्राइमरी डॉक्टर जिसे 'जीपी' कहते हैं, रखता है। यदि किसी को अपने अंदर कोविड-19 की जैसे सिम्टम्स दिखते हैं तो वह जीपी से कॉन्टेक्ट कर सकता है। कॉन्टेक्ट के बाद उसकी देखरेख की जिम्मेदारी कोविड टीम की होती है। मेरा मानना है कि गरम पानी के गरारे करने से भी फायदा होता है।
मीडिया की भूमिका : सोशल मीडिया मीडिया एवं हेल्थ केयर वेबसाइट के माध्यम से भी इसके संक्रमण से बचने, उपाय एवं नई-नई जानकारियां उपलब्ध करवाई जाती हैं। एनआरके सुपर, एनआरके 3 एवं टीवी नोरडवेस्ट पर ज्यादा भरोसा किया। हालांकि नार्वे में कोरोना के संबंध में कोई फेक न्यूज नहीं देखी गई। यहां लोग सरकार की ओर से प्रमाणित वेबसाइट एवं सोशल मीडिया चैनल्स को फॉलो कर रहे हैं।
नार्वे की विश्व में हैप्पीनेस अर्थात खुशहाली के मामले में तीसरी रैंक है। यहां पर सभी अपने कार्यों से संतुष्ट हैं। यहां पर कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की गंदी राजनीति में स्वयं को इन्वाल्व नहीं करता है एवं न ही करना चाहता है।
WHO को 36 मिलियन एनओके : नार्वे ने मानवता के नाते WHO को 10 मिलियन एनओके एवं कोरोना महामारी एवं नवाचारों के गठबंधन- सीईपीआई के तहत वैक्सीन तैयार करने के लिए 36 मिलियन एनओके एक विषेष अनुबंध के तहत उपलब्ध करवा रहा है। इसके साथ ही नार्वे अन्य देशों को भी प्रोत्साहित करने एवं उनको सपोर्ट करने के उद्देश्य से बहुत कड़ी मेहनत का कार्य कर रहा है।
मोदी का नेतृत्व अच्छा : पूनिया कहते मुझे फिलहाल इतनी जानकारी नहीं है कि वास्तव में भारत में क्या हो रहा है, लेकिन मेरे हिसाब से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व बहुत अच्छा है। हालांकि नेतृत्व जमीनी स्तर पर काम नहीं कर सकता है। बुनायदी चीजों को जमीनी स्तर पर लागू करने की आवश्यका है क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था जमीनी स्तर पर आधारित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रारंभिक तौर पर उठाए गए कदमों की मैं सराहना करता हूं। भारत में जनसंख्या अधिक होने के कारण जमीनी स्तर पर कार्य करना एक चुनौती है।
धोखेबाज चीन : पूनिया कहते हैं कि चीन ने हमेशा ही धोखेबाजी की है। वहीं, अमेरिका विश्व में स्वयं की लीडरशिप को मेंटेन करने में लगा हुआ है। नार्वे में सभी स्वतः ही सरकारी गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं। इसका इन पर कोई दबाव देखने को नहीं मिला है। नार्वे में किसी प्रकार का कोई अपराध देखने को नहीं मिला है, लेकिन घर पर रहने के दौरान स्ट्रेस को नकारा जा सकता है।
अर्थव्यवस्था पर असर : इस संकट की घड़ी में अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। विश्व में जॉब एवं व्यापार में इसका असर देखा जा सकता है। वर्तमान में नार्वे की अर्थव्यवस्था उभरती अर्थव्यवस्था है। इसके लिए यहां सरकार विभिन्न क्षेत्रों में सब्सिडी भी दे रही है। कोविड-19 का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है, लेकिन मुझे लगता है कि नार्वे इस प्रभाव या मंदी के दौर से इस साल के अंत तक बाहर निकल जाएगा। धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।
नार्वे सरकार ने नौकरियों को बचाए रखने, व्यवसायों एवं लोगों की मदद तथा स्वास्थ्य सेवाओं को और मजबूत करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय सुझाए हैं। आने वाले हफ्तों में इसकी और आवश्यकता होगी। मेरे अनुसार उपाय प्रभावी होने चाहिए। नार्वे में पर्यटन पर बहुत प्रभाव पड़ा है।
ओस्लो एवं विकेन में सक्रमण ज्यादा : नार्वे के ओस्लो एवं विकेन में कोरोना का संक्रमण अधिक है। इन दोनों स्थानों पर राष्ट्र के कुल संक्रमित लोगों में से करीब 50 प्रतिशत लोग हैं। ग्रामीण इलाकों में संक्रमण कम है या कह सकते हैं कि नहीं के बराबर है। मुझे लगता है कि जब तक कोई टीका या वैक्सीन नहीं आ जाती तब तक घर में सुरक्षित रहकर ही इस महामारी को हरा सकते हैं।
कौन हैं डॉ. पूनिया : डॉ. रमेश चंद्र पूनिया नार्वेगियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी नार्वे के डिपार्टमेंट ऑफ आईसीटी एवं नेचुरल साइंसेज की सीपीएस लैब में पोस्टडॉक्टरल रिसर्चर के रूप में कार्यरत हैं। आप तारू जरर्नल ऑफ सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी एवं कम्यूटिंग-टीजेएसटीसी के मुख्य संपादक हैं तथा 6 पुस्तकों के मुख्य एवं सह-लेखक हैं। वर्तमान में साइबर फिजिकल सिस्टम्स : एआई और कोविड-19 पुस्तक का संपादन कर रहे हैं।