कोरोनावायरस (Coronavirus) के चलते हुए लॉकडाउन (Lockdown) से स्पेन मुक्त हो चुका है। 19 जून से स्पेन खुल चुका है। अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है, पर्यटन चौपट हो गया है। सरकार ने महामारी पर नियंत्रण के लिए कदम तो उठाए, लेकिन वे पर्याप्त नहीं थे। हालांकि वह नजारा भी अलग ही होता था, जब लोग रोज रात 8 बजे बालकनी में खड़े होकर कोरना योद्धाओं के लिए तालियां बजाते थे। इसी संबंध में गिरोना विश्वविद्यालय, कैटेलोनिया, स्पेन में कार्यरत एमेरिट्स प्रोफेसर रेमन कार्बो डोरका ने वेबदुनिया से खास बातचीत की।
कोविड ने किया घर रहने को मजबूर : कोविड-19 ने कुछ महीनों के लिए घर पर ही रहने के लिए मजबूर कर दिया। जिस प्रकार से मैं महामारी से पहले शोध कार्य में व्यस्त रहता था, उसी प्रकार बाद में भी अधिकतर समय शोध कार्य में ही व्यतीत किया। कोरोना के दौरान किराने की दुकान पर वस्तुएं खरीदने जा सकते थे। इस दौरान कुछ पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को भी रद्द करना पड़ा।
घर के बाहर भी कोई गतिविधि आयोजित नहीं हो रही थी। सरकार ने घर पर ही रहने के निर्देश देने के साथ ही सुरक्षा संबंधी उपाय करने के निर्देश दिए। हालांकि फिर भी कुछ लोग निर्देशों का पालन नहीं करते। मैंने कोरोना काल में वाट्सएप एवं ईमेल के जरिए ही जानकारी ली। इसके साथ ही विज्ञान एवं फिक्शन संबंधी कार्य किए हैं।
निजी अस्पतालों का अधिग्रहण : स्पेन में कोविड-19 संक्रमण से लड़ने के लिए सरकार की रणनीति को बयां करना मुश्किल है। फिर भी सरकार ने एक सामान्य लॉकडाउन का आदेश जारी किया। कोरोनावायरस से संक्रमित रोगियों के लिए नए अस्पताल बनाए तो पुराने अस्पतालों का नवीनीकरण किया गया एवं सुविधाएं भी बढ़ाई गईं। इसके साथ ही इस महामारी से निपटने के लिए सरकार ने यहां पर निजी अस्पतालों को सार्वजनिक अस्पतालों के रूप में परिवर्तित कर दिया। इस दौरान मुझे यूरिन संक्रमण के कारण 5 दिन अस्पताल में रहना पड़ा।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सराहना : कोविड-19 के दौरान गिरोना में लोग प्रतिदिन रात को 8 बजे अपने घरों की बालकनी में अपने अंदाज में तेज करतल ध्वनि से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सराहना करते थे। समाचार माध्यमों ने संक्रमित व्यक्ति, कोरोना से मरने वाले एवं कोरोना समस्या से जुड़े समाचारों को प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित किया।
स्पेन की सरकार ने कोविड-19 पर नियंत्रण के लिए सही तरीके से काम किया, फिर भी हम कह सकते हैं कि सरकार के ये कदम पर्याप्त नहीं थे। बहुत से बुजुर्ग लोगों के घर तबाह भी हुए हैं। समस्या की वास्तविकता को लेकर कुछ गहन विश्लेषण भविष्य में किए जाने की संभावना है। यहां 28 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
अपराधों में कमी : स्पेन में सामान्य तौर पर कोविड-19 के दौर में अपराधों में कमी हुई है। वहीं दूसरी ओर सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार कोविड-19 के संबंध में नियमों का पालन नहीं करने पर उन्हें दंडित करने संबधी मामले जरूर बढ़े हैं। दूसरी ओर, स्पेन में कुछ फर्जी खबरें विभिन्न तरीके के प्लेटफार्म के माध्यम से फैलाई गईं। यहां तक कि उच्च सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक पदों पर बैठे लोग भी फेक न्यूज फैलाने से बाज नहीं आए। यहां दक्षिण पंथी पार्टियों का सरकार के साथ भयानक व्यवहार रहा। किसी न किसी प्रकार से वे फेक समाचारों के स्त्रोत थे।
आर्थिक संकट की आशंका : यदि कोई चमत्कार नहीं होता है एवं कोई अन्य रास्ता नहीं दिखाई देता है तो भविष्य में कोविड-19 के संकट से भी ज्यादा आर्थिक संकट के उत्पन्न होने से नकारा नहीं जा सकता है। आशा है इस समस्या का भी जल्द ही निदान होगा। हालांकि अर्थव्यवस्था पर पड़े असर का वास्तविक मूल्यांकन अभी करना मुश्किल है। दूसरी ओर, लोगों की नौकरियां भी गई हैं। कुछ बड़े उद्योगों ने अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं एवं कुछ तो भविष्य में फिर से नहीं खुलेंगे। महामारी के दौरान कई छोटी दुकानें बंद हुई हैं, जो फिर से नहीं खुलेंगी।
पर्यटन पर असर : स्पेन में पर्यटन पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है, जो कि यहां का मुख्य उद्योग भी है। आपदा और व्यापक होगी। बड़ी मात्रा में अस्थायी नौकरियां चली गई हैं। इसके साथ ही नए लोगों को खोजने की समस्या भी खड़ी हो गई है। पर्यटकों की कमी से होटल एवं रेस्टोरेंट पर खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है। आशा है कि कुछ पर्यटक देश में पर्यटन को आनंद लेंगे एवं फिर से कुछ लोगों को नौकरियां मिलेंगी।
जनसंख्या घनत्व की समस्या : स्पेन में बड़े शहरी क्षेत्र महामारी से ज्यादा त्रस्त हैं। मध्यम एवं छोटे शहरों में ऐसा नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी महामारी का असर है। यह जनसंख्या घनत्व की समस्या भी है। 19 जून से स्पेन पूरी तरह खुल गया है। हालांकि लोगों को मास्क पहनने के साथ ही पूरी सावधानी बरतने की सख्त हिदायत दी गई है।
घृणित राजनीति : कोविड-19 को लेकर स्पेन में विपक्ष में बैठे दक्षिणपंथियों की सरकार के खिलाफ एक घृणित लड़ाई रही है। कुछ राजनेताओं को यहां पर इस बात पर शर्म आनी चाहिए कि इस संकट के समय उन्होंने क्या कहा एवं उन्होंने यहां के निवासियों की मदद के लिए उचित कदम नहीं उठाए। इसके साथ ही मुनाफाखोरी एवं नाटकीय घटनाक्रमों को अंजाम देते हुए यहां आबादी को खत्म करने की कोशिश भी की है। मुझे उम्मीद है कि उनका यह पागलपूर्ण व्यवहार उनके खिलाफ जाएगा।
चमगादड़ से वायरस की उत्पत्ति : मैं किसी भी दवा परियोजना से संबंधित नहीं हूं। मैं एक औषधीय रसायन विज्ञान एवं औषधि डिजाइन से संबंधित हूं। जहां तक मैंने पढ़ा है उसके अनुसार कोरोनावायरस की उत्पत्ति का मूल चमगादड़ों से है। यह कैसे मनुष्यों में आया है, इस पर ठीक से नहीं कहा जा सकता। वायरस की उत्पत्ति को लेकर कई प्रकार की भ्रामक बातें भी सामने आ रही हैं। कोविड-19 भी अन्य वायरसों की तरह ही एक खतरनाक वायरस है।
मेरे मतानुसार वायरस का जैव रासायनिक दृष्टिकोण से अच्छी तरह से अध्ययन किया जा सकता है। संक्रमित व्यक्ति को कैसे ठीक किया जाए यह अभी भी समस्या है। डब्ल्यूएचओ अपने हिसाब से कार्य कर रहा है। दुनिया भर में यदि अर्थव्यवस्था ठीक हो जाती है तो कोरोना वैक्सीन निशुल्क किया जाना चाहिए। विश्व में अनेक वैज्ञानिक कोरोना के टीके की खोज कर रहे हैं। किसी भी वैज्ञानिक को अपने शोध परिणाम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी प्रमाण नहीं देना चाहिए।
कोविड ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को प्रभावित किया है। घर पर रहने से कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभावों को भी देखा जा सकता है। महामारी ने यह दिखाया है कि विश्व के विभिन्न देशों को शब्दों के अतिरिक्त अन्य तरीकों से भी एकजुट होना चाहिए। यह फेक्ट्स वास्तविक रूप से सभी लोगों के लिए एकजुटता के लिए साबित हो सकते हैं।
प्रो. रेमन कार्बो डोरका : 1940 में जन्मे प्रोफेसर रेमन कार्बो डोरका फ्रांस, इटली, कनाड़ा, नॉर्वे, जापान, भारत, बीजिंग सहित कई देशों के नामचीन विश्वविद्यालयों में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। आपके द्वारा क्वांटन और कम्यूटेशनल केमेस्ट्री, क्वांटम मैकेनिक्स, क्वांटन क्यूएसएआर, क्वांटम समानता, गणित, रसायन विज्ञान एवं पॉपुलर साइंस पर लिखित करीब 420 शोध पत्र का विभिन्न उच्चस्तरीय रिसर्च जनरल में एवं 20 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है।