छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को ले डूबी अंतर्कलह
विधानसभा चुनाव में भीतरघात और अंतर्कलह के कारण नुकसान उठाना पड़ा। नतीजतन, मुख्यमंत्री पद के तीन प्रमुख दावेदार धनेन्द्र साहू, महेन्द्र कर्मा व सत्यनारायण शर्मा को हार झेलनी पड़ी।विधायक दल के उपनेता भूपेश बघेल समेत एक दर्जन नेता विधानसभा पहुँचने से वंचित हो गए। पार्टी का कमजोर प्रचार तंत्र और रणनीति भी कटघरे में है। इसके चलते प्रदेश के नेता अपनी-अपनी सीटों से बाहर नहीं निकल पाए।कांग्रेसी हल्कों में हार की मीमांसा का दौर चल रहा है। कहा जा रहा है कि टिकट वितरण में गुटीय संघर्ष चुनाव के दौरान भीषण हो गया। इसका खामियाजा उन दिग्गज नेताओं को भुगतना पड़ा, जो टिकट बाँटते समय एक-दूसरे गुट के दावेदारों की स्क्रीनिंग कर रहे थे। कांग्रेस को बहुमत मिलने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रचारित किए गए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष धनेन्द्र साहू को उन्हीं मतदाताओं ने साथ नहीं दिया। साहू के खिलाफ तीन सतनामी प्रत्याशी मैदान में थे। इस कारण कांग्रेस का वोट बैंक समझे जाने वाले सतनामी वोट बिखर गए। खबर है कि कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने इन प्रत्याशियों को धन और संसाधन मुहैया कराया। दूसरे दावेदार महेन्द्र कर्मा को सलवा जुड़ूम की विरोधी सीपीआई ने कड़े संघर्ष में उलझाकर तीसरे स्थान पर धकेल दिया।इसका फायदा भाजपा को हुआ और उसे दक्षिण बस्तर की तीन में से दो सीटें मिल गईं। तीसरी सीट कोंटा में भी वह मजबूत होकर उभरी। कहा जा रहा है कि कर्मा भीतरघात का शिकार होने के साथ-साथ अपने परिवार की छवि के चलते पराजित हो गए। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा को परिसीमन और जातिवाद का नुकसान झेलना पड़ा। मंदिर हसौद सीट विलोपित होने के बाद वे रायपुर ग्रामीण से किस्मत आजमा रहे थे। भाजपा ने सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया और नंदकुमार साहू को उनके मुकाबले उतार दिया। करीब 20 हजार साहू मतदाता लामबंद हो गए। नतीजतन, पार्टी रायपुर की चार में से तीन सीट हार गई। पार्टी कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा हार की हैट्रिक बनाने वाले नेताओं की जमात में शामिल हो गए हैं। हालाँकि उन्होंने कड़ी टक्कर दी जिसके चलते संसाधन मंत्री हेमचंद यादव मामूली अंतर से सीट निकाल पाए। हाथ से निकला बस्तर : बस्तर में जोगी समर्थक फूलोदेवी नेताम, मनोज मंडावी समेत कई नेताओं को किनारे लगा दिया गया। मंडावी की बगावत के चलते पार्टी की दिग्गज नेता गंगा पोटाई तीसरे स्थान पर चली गईं। नेताम की बेटी डॉ. प्रीति नेताम को जनपद अध्यक्ष चन्द्रप्रकाश ठाकुर की बगावत ने हरा दिया। भारी पड़ा एनसीपी से समझौता : एनसीपी के लिए तीन सीटें छोड़ना भी कांग्रेस को भारी पड़ा। तीनों सीटों पर एनसीपी बुरी तरह पिट गई और प्रदेश में उसकी घड़ी बंद होने के कगार पर है। बताते हैं कि एनसीपी को तीन सीटें दिलाने के लिए डॉ. महंत ने दिल्ली में जबर्दस्त पैरवी की। एनसीपी से भाजपा होते हुए कांग्रेस में लौटे पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने इस मुहिम को पूरा समर्थन दिया। इस समझौते का असर यह हुआ कि कोरिया व सरगुजा जिले में कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया। (नईदुनिया)