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Last Modified: रविवार, 24 अक्टूबर 2021 (17:15 IST)

साहिर लुधियानवी ने कराई थी गीतकारों के लिए रॉयल्टी की व्यवस्था

साहिर लुधियानवी ने कराई थी गीतकारों के लिए रॉयल्टी की व्यवस्था - sahir ludhianvi arranged royalty for lyricists
बॉलीवुड में साहिर लुधियानवी ऐसे पहले गीतकार थे, जिन्होने गीतकारों के लिए रॉयल्टी की व्यवस्था कराई। साहिर लुधियानवी ने गीतकारों को उनका वाजिव हक दिलाया। साहिर से पहले किसी गीतकार को रेडियो से प्रसारित फरमाइशी गानों में श्रेय नहीं दिया जाता था।

 
साहिर ने इस बात का काफी विरोध किया जिसके बाद रेडियो पर प्रसारित गानों में गायक और संगीतकार के साथ-साथ गीतकार का नाम भी दिया जाने लगा। 8 मार्च 1921 को पंजाब के लुधियाना शहर में एक जमींदार परिवार में जन्में साहिर की जिंदगी काफी संघर्षों में बीती। साहिर ने अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई लुधियाना के खालसा स्कूल से पूरी की। इसके बाद वह लाहौर चले गये, जहां उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई सरकारी कॉलेज से पूरी की। 
 
कॉलेज के कार्यक्रमों में साहिर अपनी गजलें और नज्में पढ़कर सुनाया करते थे जिससे उन्हें काफी शोहरत मिली। जानी-मानी पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम कॉलेज में साहिर के साथ ही पढ़ती थीं जो उनकी गजलों और नज्मों की मुरीद हो गईं और उनसे प्यार करने लगीं लेकिन कुछ समय के बाद ही साहिर कालेज से निष्कासित कर दिए गए। इसका कारण यह माना जाता है कि अमृता प्रीतम के पिता को साहिर और अमृता के रिश्ते पर एतराज था क्योंकि साहिर मुस्लिम थे और अमृता सिख थी। इसकी एक वजह यह भी थी कि उन दिनो साहिर की माली हालत भी ठीक नहीं थी।
 
साहिर 1943 में कॉलेज से निष्कासित किए जाने के बाद लाहौर चले आए, जहां उन्होंने अपनी पहली उर्दू पत्रिका तल्खियां लिखीं। लगभग दो वर्ष के अथक प्रयास के बाद आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और तल्खियां का प्रकाशन हुआ। इस बीच साहिर ने प्रोग्रेसिव रायटर्स एसोसियेशन से जुड़कर आदाबे लतीफ, शाहकार और सवेरा जैसी कई लोकप्रिय उर्दू पत्रिकाएं निकालीं लेकिन सवेरा में उनके क्रांतिकारी विचार को देखकर पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया। इसके बाद वह 1950 में मुंबई आ गए।
 
साहिर ने 1950 में प्रदर्शित आजादी की राह पर फिल्म में अपना पहला गीत बदल रही है जिंदगी लिखा, लेकिन फिल्म सफल नही रही। वर्ष 1951 मे एसडी बर्मन की धुन पर फिल्म नौजवान में लिखे अपने गीत ठंडी हवाएं लहरा के आए के बाद वह कुछ हद तक गीतकार के रूप में कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। साहिर ने खय्याम के संगीत निर्देशन में भी कई सुपरहिट गीत लिखे।
 
साल 1958 में प्रदर्शित फिल्म फिर सुबह होगी के लिए पहले अभिनेता राजकपूर यह चाहते थे कि उनके पंसदीदा संगीतकार शंकर-जयकिशन इसमें संगीत दें जबकि साहिर इस बात से खुश नहीं थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि फिल्म में संगीत खय्याम का ही हो। वो सुबह कभी तो आएगी जैसे गीतों की कामयाबी से साहिर का निर्णय सही साबित हुआ। यह गाना आज भी क्लासिक गाने के रूप में याद किया जाता है।
 
साहिर अपनी शर्तो पर गीत लिखा करते थे। एक बार एक फिल्म निर्माता ने नौशाद के संगीत निर्देशन में उनसे से गीत लिखने की पेशकश की। साहिर को जब इस बात का पता चला कि संगीतकार नौशाद को उनसे अधिक पारिश्रमिक दिया जा रहा है तो उन्होंने निर्माता को अनुबंध समाप्त करने को कहा। उनका कहना था कि नौशाद महान संगीतकार है लेकिन धुनों को शब्द ही वजनी बनाते है। अतः एक रूपया ही अधिक सही गीतकार को संगीतकार से अधिक पारिश्रमिक मिलना चाहिए।
 
गुरूदत्त की फिल्म प्यासा साहिर के सिने करियर की अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म के प्रदर्शन के दौरान अदभुत नजारा दिखाई दिया। मुंबई के मिनर्वा टॉकीज में जब यह फिल्म दिखाई जा रही थी तब जैसे ही जिन्हे नाज है हिंद पर वो कहां है बजा तब सभी दर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और गाने की समाप्ति तक ताली बजाते रहे। बाद में दर्शको की मांग पर इसे तीन बार और दिखाया गया। फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में शायद पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था।
 
साहिर अपने सिने करियर में दो बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। लगभग तीन दशक तक हिन्दी सिनेमा को अपने रूमानी गीतों से सराबोर करने वाले साहिर लुधियानवी 25 अक्टूबर 1980 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
 
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