बॉलीवुड में दिलीप कुमार का नाम एक ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने दमदार अभिनय और जबरदस्त संवाद अदायगी से सिने प्रेमियों के दिल पर अपनी अमिट पहचान बनाई। 11 दिसंबर 1922 को पेशावर अब पाकिस्तान में जन्में युसूफ खान उर्फ दिलीप कुमार अपनी माता-पिता की 13 संतानों में तीसरी संतान थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे और देवलाली से हासिल की।
इसके बाद दिलीप कुमार अपने पिता गुलाम सरवर खान के फल के व्यापार में हाथ बंटाने लगे। कुछ दिनों के बाद फल के व्यापार में मन नहीं लगने के कारण दिलीप कुमार ने यह काम छोड़ दिया और पुणे में कैंटीन चलाने लगे। वर्ष 1943 में उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज की व्यवस्थापिका देविका रानी से हुई, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान मुंबई आने का न्यौता दिया। पहले तो दिलीप कुमार ने इस बात को हल्के से लिया लेकिन बाद में कैंटीन व्यापार में भी मन उचट जाने से उन्होंने देविका रानी से मिलने का निश्चय किया।
देविका रानी ने युसूफ खान को सुझाव दिया कि यदि वह अपना फिल्मी नाम बदल दे तो वह उन्हें अपनी नई फिल्म ज्वार भाटा बतौर अभिनेता काम दे सकती है। देविका रानी ने युसूफ खान को वासुदेव, जहांगीर और दिलीप कुमार में से एक नाम को चुनने को कहा। वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म ज्वार भाटा से बतौर अभिनेता दिलीप कुमार ने अपने सिने करियर की शुरूआत की।
फिल्म ज्वार भाटा की असफलता के बाद दिलीप कुमार ने प्रतिमा, अनोखा प्यार, नौका डूबी जैसी कुछ बी और सी ग्रेड वाली फिल्मों में बतौर अभिनेता काम किया लेकिन इन फिल्मों से उन्हें कोई खास फायदा नहीं पहुंचा। चार वर्ष तक मायानगरी मुंबई में संघर्ष करने के बाद 1948 में प्रदर्शित फिल्म मेला की सफलता के बाद दिलीप कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी बनाने में सफल हो गए।
दिलीप कुमार के सिने करियर पर नजर डालने पर पाएंगे कि उन्होंने फिल्मों में विविधिता पूर्ण अभिनय कर कई किरदारों को जीवंत कर दिया। यही वजह है कि फिल्म आदमी में दिलीप कुमार के अभिनय को देखकर हास्य अभिनेता ओम प्रकाश ने कहा था यकीन नही होता फन इतनी बुंलदियों तक भी जा सकता है।' वही विदेशी पर्यटक उनकी अभिनीत फिल्मों में उनके अभिनय को देखकर कहते है 'हिंदुस्तान में दो ही चीज देखने लायक है एक ताजमहल दूसरा दिलीप कुमार'।
दिलीप कुमार के सिने करियर मे उनकी जोड़ी अभिनेत्री मधुबाला के साथ काफी पसंद की गई। फिल्म तराना के निर्माण के दौरान मधुबाला दिलीप कुमार से मोहब्बत करने लगी। उन्होंने अपने ड्रेस डिजाइनर को गुलाब का फूल और एक खत देकर दिलीप कुमार के पास इस संदेश के साथ भेजा कि यदि वह भी उससे प्यार करते है तो इसे अपने पास रख ले और दिलीप कुमार ने फूल और खत को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
वर्ष 1957 में प्रदर्शित बी.आर. चोपड़ा की फिल्म नया दौर में पहले दिलीप कुमार के साथ नायिका की भूमिका के लिए मधुबाला का चयन किया गया और मुंबई में ही इस फिल्म की शूटिंग की जानी थी, लेकिन बाद मे फिल्म के निर्माता को लगा कि इसकी शूटिंग भोपाल में भी करनी जरूरी है। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान ने बेटी को मुंबई से बाहर जाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया। उन्हें लगा कि मुंबई से बाहर जाने पर मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच का प्यार और परवान चढ़ेगा और वह इसके लिए राजी नही थे।
बाद मे बी.आर. चोपड़ा को मधुबाला की जगह वैजयंती माला को लेना पड़ा। अताउल्लाह खान बाद में इस मामले को अदालत में ले गए और इसके बाद उन्होंने मधुबाला को दिलीप कुमार के साथ काम करने से मना कर दिया और यहीं से दिलीप कुमार और मधुबाला की जोड़ी अलग हो गई। वर्ष 1960 में दिलीप कुमार के सिने करियर की एक और अहम फिल्म मुगले आजम प्रदर्शित हुई।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर के. आसिफ के निर्देशन में सलीम-अनारकली की प्रेमकथा पर बनी इस फिल्म में दिलीप कुमार ने शहजादे सलीम की भूमिका को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया, जबकि अनारकली की भूमिका में मधुबाला थी। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म गंगा जमुना के जरिए दिलीप कुमार ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। फिल्म गंगा जमुना में दिलीप कुमार ने हिंदी और भोजपुरी का मिश्रण किया और उनका यह प्रयोग काफी सफल रहा।
इस फिल्म में दिलीप कुमार के साथ उनके भाई नासिर खान ने भी अभिनय किया।फिल्म की सफलता के बाद दिलीप कुमार ने इसके बाद भी फिल्म बनाने का निश्चय किया लेकिन इन्कमटैक्स वालों के बुरे वर्ताव के कारण उन्होंने फिर कभी फिल्म निर्माण करने से तौबा कर ली।
वर्ष 1966 में दिलीप कुमार ने फिल्म अभिनेत्री सायरा बानो के साथ निकाह कर लिया। वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म राम और श्याम दिलीप कुमार के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। दो जुडवां भाइयों की कहानी पर आधारित इस फिल्म में दब्बू और निडर के रूप में दोहरी भूमिकाओं को दिलीप कुमार ने बेहद सधे अंदाज में निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया था। बाद मे फिल्म राम और श्याम से प्रेरणा लेकर फिल्मकारों ने कई दोहरी भूमिका वाली फिल्मो का निर्माण किया।
वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म बैराग की असफलता के बाद दिलीप कुमार ने लगभग पांच वर्षो तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 1980 में फिल्म निर्माता -निर्देशक मनोज कुमार के कहने पर दिलीप कुमार ने फिल्म क्रांति में बतौर चरित्र अभिनेता अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की। फिल्म में अपने दमदार चरित्र से दिलीप कुमार ने एक बार फिर से दर्शकों का मनमोह कर फिल्म को सुपरहिट बना दिया।
वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म शक्ति हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की बेहतरीन क्लासिक फिल्मों में शुमार की जाती है। इस फिल्म में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन ने पहली बार एक साथ काम कर दर्शको को रोमांचित कर दिया। अमिताभ बच्चन के सामने किसी भी कलाकार को सहज ढ़ंग से काम करने में दिक्कत हो सकती थी लेकिन फिल्म शक्ति में दिलीप कुमार के साथ काम करने में अमिताभ बच्चन को भी कई दिक्कत का सामना करना पड़ा।
फिल्म शक्ति के एक दृश्य को याद करते हुए अमिताभ बच्चन ने बताया था कि फिल्म के क्लाइमेक्स में जब दिलीप कुमार उनका पीछा करते रहते है तो उन्हें पीछे मुड़कर देखना होता है, जब वह ऐसा करते है तो वह दिलीप कुमार की आंखों में देख नहीं पाते है और इस दृश्य के कई रिटेक होते है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता सर्वाधिक फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त करने का कीर्तिमान दिलीप कुमार के नाम दर्ज है। दिलीप कुमार को अपने सिने करियर में आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
फिल्म जगत में दिलीप कुमार के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हे वर्ष 1994 मे फिल्म इंडस्ट्री के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा पाकिस्तान सरकार ने उन्हें वहां के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से सम्मानित किया। वर्ष 1980 में दिलीप कुमार मुंबई में शेरिफ के पद पर नियुक्त हुए।
फिल्म इंडस्ट्री में दिलीप कुमार उन गिने चुने चंद अभिनेता में शामिल रहे जो फिल्म की संख्या से अधिक उसकी गुणवत्ता पर यकीन रखते थे, इसलिए उन्होंने अपने छह दशक लंबे सिने करियर में करीब 60 फिल्मों में ही अभिनय किया। 07 जुलाई 2021 को दिलीप कुमार इस दुनिया को अलविदा कह गए।