शेरशाह करने के बाद भारतीय सेना का बड़ा फैन बन गया हूं: विक्रम बत्रा की भूमिका निभाने वाले सिद्धार्थ मल्होत्रा
शेरशाह करने के दौरान अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने कई बातें सीखीं। विक्रम बत्रा, भारतीय सेना और यह रोल करने के दौरान आई चुनौती का जिक्र उन्होंने इस मुलाकात में किया है।
"शेरशाह मेरी पहली ऐसी फिल्म है जिसमें मैं किसी असली व्यक्ति के किरदार को पर्दे पर जीने वाला हूं और अपने आप पर बहुत फख़्र होता है कि कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे शख्स का किरदार मुझे करने को मिला। कैप्टन विक्रम बत्रा वह शख्स थे जिसे हर कोई प्यार करता है। आर्मी वाले उनकी बहुत सारी इज्जत करते हैं। जो भी मिलता है उनके बारे में अच्छी बातें ही बताता है। जब यह सारी बातें मेरे सामने होती है तो मुझे थोड़ा प्रेशर महसूस होता है। मेरी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि इतने अच्छे और इज्जतदार इंसान के जीवन को जब मैं पर्दे पर पेश करूं तो बहुत सावधानी के साथ करूं।" यह कहना है सिद्धार्थ मल्होत्रा का, जिन्होंने हाल ही में पत्रकारों से फिल्म प्रमोशन के लिए बातचीत की।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सिद्धार्थ मीडिया को बताते हैं- "मुझे अपने आप पर बहुत गर्व महसूस हुआ जब मैंने कैप्टन विक्रम बत्रा की यूनिफार्म को पहना। मैंने सिर्फ एक किरदार ही नहीं निभाया बल्कि उस व्यक्ति को भी समझा जो बहुत ही कम उम्र यानी कि 24 साल की उम्र में बतौर लीडर बात कर रहा था। जब उनकी पहली जीत हो गई तो अपने सीनियर को फोन लगाते हैं और कहते हैं यह दिल मांगे मोर सर। मतलब क्या सोच रही होगी उस इंसान की। जब मैं विक्रम की फैमिली से मिला तो मुझे एक अलग तरीके का प्रेशर महसूस हुआ। जो कहानी मैं पर्दे पर कहने वाला हूं, यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है और ना ही है कोई कैरेक्टर है जिसे कोई हीरो प्ले कर रहा है बल्कि ये शख्स उस घर का सदस्य रहा है। जीता जाता इंसान और जीता जागता एक रिश्ता रहा है उनका, तो इमोशनली बहुत प्रेशराइज्ड महसूस कर रहा था। कहीं, मैं किसी को रोल निभाते निभाते किसी को ठेस ना पहुंचा दूं। बहुत ही जल्द अब यह फिल्म लोगों के सामने आ जाने वाली है और मुझे सारे रिव्यूज में से सिर्फ एक ही रिव्यू से डर है और वह है कैप्टन विक्रम बत्रा के परिवार से। उम्मीद है और आशा करता हूं कि उन्हें मेरी यह फिल्म, मेरा यह काम पसंद आए।"
15 अगस्त आने वाला है और फिल्म भी आ रही है तो आपके लिए आजादी क्या है?
मेरे लिए इस बार का 15 अगस्त कुछ अलग ही कहानी लेकर आया है। इस बार में कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी लोगों के सामने रखने वाला हूं। वह किस तरीके के इंसान थे। वह किस तरीके से सोचते थे और उन्होंने अपने देश और देशवासियों के लिए प्राण तक न्यौछावर कर दिए। जब यह फिल्म देखेंगे तो कैप्टन विक्रम बत्रा के लिए सम्मान और बढ़ जाएगा। और जहां तक बात रही, मेरे लिए आजादी क्या है?
इससे बड़ी बात क्या कहूं कि हमार देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यहां पर आज हम बैठकर आपस में ऐसे बातचीत कर रहे हैं और फिल्मों को डिस्कस कर रहे हैं। बहुत सारे लोग इस बात पर दुखी हो सकते हैं कि हमारे देश में बहुत सारी बातों की आजादी नहीं है। मैं कहता हूं दूसरे देश में जा कर देखिए। वहां पर अपनी बात रखने की या अपनी संस्कृति निभाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। इसके साथ ही आजादी को बनाए रखने के लिए हमारी हमारी सेना ने बहुत काम किए हैं, कर्तव्य निभाया है और अपनी जान की बाजी लगाई है। पंद्रह अगस्त पर मैं उनको जितना भी धन्यवाद करूं उतना कम है। 'शेरशाह' करने के बाद अपने देश की सेना के लिए मेरी इज्जत सौ गुन बढ़ गई है।
इस फिल्म के साथ आप बतौर निर्माता भी लोगों के सामने आ रहे हैं।
हां, यह निर्माता के रूप में मेरी पहली फिल्म होगी। तकरीबन 5 साल पहले की बात है जब विशाल बत्रा और मैं फिल्म के बारे में बात कर रहे थे और तब टीम अलग हुआ करती थी। उस समय शब्बीर बॉक्सवाला, विशाल और मैं हम तीन हुआ करते थे और उसके बाद यही स्क्रिप्ट लेकर मैं धर्मा प्रोडक्शन के पास गया। धर्मा से बात फाइनल होने में दो साल लग गए। अब लगभग 5 साल बाद कभी कोई मुझे आकर कहता है कि उन्हें ट्रेलर अच्छा लगा तो दिल को बहुत तसल्ली होती है। अगर यह बायोपिक मेरी जिंदगी की पहली बायोपिक है तो वहीं निर्देशक विष्णु की भी पहली बायोपिक है। दोनों की जो सोच यह है कि इस फिल्म के जरिए हम आज के युवाओं को और दूसरे लोगों को बताना चाहते हैं कि कैप्टन विक्रम बत्रा कैसे थे। कितने साहसी थे, ताकि लोग प्रेरणा ले सकें।
आपके लिए यह दिल मांगे मोर क्या है?
मेरे लिए तो दिल मांगे मोर तब होगा जब यह फिल्म रिलीज हो जाएगी और उसके बाद मेरा करियर कैसा शेप लेता है। लेकिन इस फिल्म में जब मैं यह रोल निभा रहा था और जब यह वाला सीन कर रहा था तो उस समय मिला अनुभव बेहद अलग था। वह इसलिए क्योंकि विक्रम बत्रा असल जिंदगी में इतनी कम उम्र में उस चोटी को जीत लेते हैं, सिवाय उनके पूरी टीम में कोई हताहत नहीं होता। ऐसे में वह अपने सीनियर को फोन लगाते हैं और कहते हैं यह दिल मांगे मोर। मैं सोचता रह गया था कि कैसे ये सब हुआ होगा। जिसके शरीर से खून बह रहा है, लेकिन अपने सीनियर से बात करते समय वह यह कहता है कि कुछ भी हो जाए अब मुझे यह जंग जीतनी है। इस युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करना है। शायद कोई इंसान अध्यात्म के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। जहां पर डर क्या होता है, भूल चुका है। वह कई गुना आगे निकल गया है और उसे हर वक्त अपनी मंजिल को पाना। यही दिमाग में घूमता है।
इस फिल्म में क्या कोई चुनौती भरा सीन रहा आपके लिए?
जिस सीन में कैप्टन विक्रम बत्रा की मौत दिखाई गई है, वह मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहा है। हम में से कोई नहीं जानता कि जब आपके सामने मौत खड़ी होती है, तब क्या मनोभाव होंगे? मैंने कई बार निर्देशक से पूछा था कि हम वह वाला सीन कब करने वाले हैं। मैं कई बार उस हिस्से में घूम कर आया। सोचता था कि इस तरह चल कर गए होंगे, इस तरीके से गिरे होंगे। इस तरह के मनोभाव होंगे। मैं प्रार्थना करता हूं कि जब यह सीन दर्शक देखें तो उन्हें समझ में आए कि कितना मुश्किल समय रहा होगा। जब कारगिल में हम शूट कर रहे थे तब मुझे समझ आया कि यह काम कितना खतरनाक रहा होगा। वहां पत्थर हैं। गिरने पर चोट लग सकती है। दुश्मन ऊपर बैठा है। बचने के लिए पेड़ या कोई जगह भी नहीं है। आपको बचने के लिए बहुत मेहनत करना होगी। तेज हवा से धूल आपके मुंह-आंखों में जा सकती है। उस परिवेश में शूट करते समय मुझे लगा कि सेना के लोग कितना कठिन और महान काम करते हैं। मेरे दादाजी भी भारतीय सेना का हिस्सा रहे हैं। अब तो मैं भारतीय सेना का बड़ा फैन बन गया हूं।