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Written By रूना आशीष
Last Modified: बुधवार, 25 नवंबर 2020 (18:07 IST)

खेल को अच्छे खिलाड़ियों की जरूरत होती है, किसी हीरो की नहीं : अभिषेक बच्चन

खेल को अच्छे खिलाड़ियों की जरूरत होती है, किसी हीरो की नहीं : अभिषेक बच्चन - abhishek bachchan talk about documentary series sons of the soil jaipur pink panthers
आमतौर पर देश में डॉक्यूमेंट्री कम ही बनती है और ऐसे में स्पोर्ट्स डॉक्युमेंट्री और भी कम बनती है। इसी बात का ध्यान रखते हुए अमेज़न प्राइम देश के सामने एक स्पोर्ट्स डॉक्यूमेंट्री ले कर आ रहा है। इसका नाम है 'सन ऑफ सॉइल जयपुर पिंक पैंथर'। यह डॉक्यूमेंट्री जयपुर पिंक पैंथर के सारे खिलाड़ियों की जीत, उनकी हार और उनकी मनोदशा को ध्यान में रखकर बनाई गई है।

 
इस डॉक्यूमेंट्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान वेबदुनिया को अभिषेक बच्चन से बातचीत करने का मौका भी मिला। कबड्डी लीग के बाद से कबड्डी को लोगों ने अलग नजर से देखना शुरू किया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मिट्टी से जुड़े कोई भी खेल को आगे बढ़ाने के लिए किसी हीरो या किसी अभिषेक बच्चन का होना जरूरी है।
 
इस सवाल का जवाब देते हुए अभिषेक बच्चन ने कहा, मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि जितने भी खेल होते हैं उसमें और उसे बढ़ावा देने के लिए किसी भी एक एक्टर की जरूरत होती है या हीरो की जरूरत होती है। खेल में जो हीरो होते हैं वह खिलाड़ी होते हैं। मेरे पिताजी भी कई बार आते हैं और प्रो कबड्डी लीग को देखने के लिए भी आए हैं। लेकिन हम दर्शकों के स्टैंड पर बैठे हैं और खिलाड़ी सारा ध्यान उन्हीं पर होता है। सारा स्पॉटलाइट उन पर होता है। तो जो हीरो होते हैं, वह होते हैं।
 
यह वह खिलाड़ी जिनके पास जीत या हार की ताकत है। जहां तक बात है हीरो के होने या नहीं होने की। तो मेरी जितनी भी थोड़ी बहुत लोगों में मेरी प्रशंसा हुई है या लोग मेरे फैन्स हैं या फिर थोड़ी बहुत चमक-दमक मेरे नाम के साथ जुड़ी है अगर उसमें से थोड़ी भी चमक दमक इन खिलाड़ियों के नाम हो जाती है तो मैं तो बहुत खुश हो लूंगा इस बात को लेकर। लेकिन फिर भी मैं यही मानता हूं कि कभी किसी भी स्पोर्ट्स को या खेल को अच्छे खिलाड़ियों की जरूरत होती है। किसी हीरो की जरूरत कभी भी नहीं होगी।
 
स्पोर्ट्स डॉक्यूमेंट्री में कोच का रोल निभाने वाले असल जिंदगी में भी नेशनल कबड्डी टीम के कोच रहे हैं। कोच श्रीनिवास रेड्डी का कहना यह है कि जब किसी नेशनल टीम को कोच करना हो या फिर किसी प्रोफेशनल टीम को कोच करना हो उसमें जमीन आसमान का अंतर आता है। नेशनल टीम में जो लोग आपके सामने आते हैं, वह देशभर से चुने हुए क्रीम खिलाड़ी होते हैं और बेहतरीन खिलाड़ी होते हैं जिन्हें एक साथ एक सूत्र में पिरोना पड़ता है।
 
कई बार खेल में आपके सामने जो खिलाड़ी आते हैं तो गेम तो रोमांचक होता है लेकिन असल जो लड़ाई शुरू होती है वह कई बार सेमीफाइनल से फाइनल में जाकर मिलती है। जबकि किसी प्रोफेशनल टीम से जब आप जुड़ते हैं और उसके कोच होते हैं तो उसमें सारे ही अलग-अलग मूड और अलग-अलग तरह के लोग आपके सामने होते हैं। इन लोगों को एक सूत्र में लाना थोड़ा सा मुश्किल काम हो जाता है। यह मुश्किल इसलिए होता है क्योंकि आपका हर मैच किसी फाइनल मैच से कम नहीं होता। आप के हर मैच में आपको ऐसे खेलना होता है जैसे कि असली और आखिरी मैच है और आपके पीछे कई सारे लोग और उनके नाम जुड़े होते हैं।
 
आप अपने आपको, अपने खिलाड़ियों को और जो आपके फ्रेंचाइज के मालिक होते हैं उनके नाम को खराब नहीं कर सकते। इसलिए प्रेशर बहुत होता है। जब तनाव ज्यादा होता है तो लोगों की आपसे उम्मीदें भी ज्यादा होती है तो ऐसे में हमें हर मैच के साथ अपने से जुड़े और अपनी टीम से जुड़े लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरना होता है।
 
जयपुर पिंक पैंथर के जाने-माने खिलाड़ी दीपक निवास हुड्डा का कहना है कि इस खेल ने मुझे बहुत कुछ दिया है। इस खेल ने मुझे मेरे जीने का नया तरीका भी सिखाया है। वरना बचपन से ही मैंने बहुत मुश्किलों का सामना किया है। काफी कम उम्र का था जब मेरे माता-पिता का देहांत हो गया था। कई बार तो ऐसी हालत थी कि मेरे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं हुआ करते थे। मेरे घर में मेरी दो बड़ी बहन है और उनके जीवन में भी जब उतार-चढ़ाव आए तो बहन अपने बच्चों के साथ मेरे घर पर ही आ गईं।
 
ऐसे में मैंने एक स्कूल में टीचर का काम किया और हर बार इस चीज की चिंता लगी रहती थी कि मैं कैसे अब बच्चों की अगली फीस जमा कर पाऊंगा क्योंकि मेरे ऊपर उनकी भी जिम्मेदारी है। लेकिन जब से यह खेल में खेल रहा हूं। मेरी जिंदगी में बहुत सारी तब्दीली आई हैं। इसलिए इस खेल ने मुझे जो दिया है, मैं उसको शब्दों में भी बयान नहीं कर पाऊंगा और ऐसे में डॉक्यूमेंट्री बनी है। मुझे बहुत खुशी है इस बात की।
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