क्या ऐसे माहौल में सितारों का गुलछर्रे उड़ाना जायज है?
देश महामारी के बुरे दौर से गुजर रहा है। सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन, बेड, अस्पताल, डॉक्टर, इंजेक्शन, दवाई को लेकर मैसेजेस आ रहे हैं। हर चीज की कमी है। गंभीर लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है और लोग तेजी से दम तोड़ रहे हैं। हर तरफ भय और उदासी का माहौल है। सरकार और प्रशासन बेबस नजर आ रहे हैं। मरीजों की संख्या अस्पतालों की तुलना में बहुत ज्यादा है और इस वजह से सिस्टम फेल हो गया है। लोग दु:खी हैं। उदास हैं। असहाय हैं। ऐसे माहौल में कुछ बॉलीवुड सेलिब्रिटिज़ वैकेशन पर जा रहे हैं। विदेश में गुलछर्रे उड़ाते हुए अपने फोटो लगा रहे हैं। हंस रहे हैं। खिलखिला रहे हैं। उनकी यह हंसी चुभने वाली है।
माना कि आप सुविधा-सम्पन्न हो। स्वस्थ हो। किसी भी समस्या से निपटने के काबिल हो, लेकिन ऐसे दु:ख भरे माहौल और कठिन समय में छुट्टी मनाने जाना और वहां से फोटो पोस्ट करना भोंडा प्रदर्शन ही कहा जाएगा। आपको असंवेदनशील माना जाएगा। आपके प्रशंसक दु:खी हैं तो भला आप कैसे जश्न मना सकते हैं? बॉलीवुड के ये खूबसूरत चेहरे डांस कर रहे हैं। बढ़िया खा रहे हैं। समुंदर किनारे मजा ले रहे हैं। सवाल ये उठता है कि ऐसे समय में क्या इन्हें ऐसा करना चाहिए? क्या ये असहाय लोगों की मदद नहीं कर सकते? क्या इन्हें सोनू सूद से सीखना नहीं चाहिए?
सोनू भी चाहते तो ऐशो-आराम से अपने घर बैठ सकते थे। दुनिया के किसी भी कोने में जाकर वैकेशन एंजॉय कर सकते थे, लेकिन उन्होंने लोगों की मदद का रास्ता चुना। देश के कोने-कोने में बैठे लोगों की मदद का वे जतन कर रहे हैं। सितारों के इस असंवेदनशील रवैये की आलोचना भी हो रही है। लेखिका शोभा डे और फिल्म अभिनेत्री श्रुति हासन ने इनके खिलाफ उंगली उठाई है। कहा है कि सुविधाओं का लोगों के सामने दिखावा करना बंद करना चाहिए।
एक दौर था जब सितारे अपने प्रशंसकों की मुश्किल में उनके साथ खड़े नजर आते थे। भूकंप, बाढ़ या अन्य प्राकृतिक आपदाएं जब सिर उठाती थी तो प्रभावित लोगों के बीच राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद जैसे सितारे पहुंच जाते थे। उनकी मदद करते थे। उनके लिए पैसा जुटाते थे। लेकिन वर्तमान दौर के ज्यादातर स्टार 'स्टार' हो गए हैं। उन्हें किसी की परेशानी से कोई सरोकार नहीं है।