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  4. Why did exit poll predictions in Bihar turn out to be wrong in 2015 and 2020
Last Modified: बुधवार, 12 नवंबर 2025 (15:01 IST)

बिहार एग्ज़िट पोल का इतिहास : 2015 और 2020 में क्यों गलत निकले पूर्वानुमान?

Bihar Exit Poll
History of exit polls in Bihar: बिहार की चुनावी बिसात हमेशा से ही अपनी अप्रत्याशितता के लिए जानी जाती है। यहां के जटिल जातिगत समीकरण, धुर-विरोधी दलों के गठबंधन और वोटरों का अंतिम समय पर मन बदलना एक आम राजनीतिक गतिशीलता है। यही कारण है कि चुनाव के ठीक बाद सामने आने वाले एग्ज़िट पोल्स, जो मतदाताओं की नब्ज़ टटोलने का दावा करते हैं, अक्सर बिहार की इस जटिलता के सामने संघर्ष करते नज़र आए हैं।
 
2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों का इतिहास इस बात का प्रमाण है कि एक बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को बहुत ही कम आंका गया, जबकि दूसरी बार उसके लिए बढ़ा-चढ़ाकर अनुमान लगाया गया। ये महत्वपूर्ण विसंगतियां न केवल पोलिंग एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि बिहार की अनूठी राजनीतिक चालों और 'साइलेंट वोटर' की ताकत को समझने में भी मददगार हैं।
 
2020 का चुनाव: बहुमत की भविष्यवाणी, परिणाम हुआ उलट
2020 का बिहार विधानसभा चुनाव कोविड-19 महामारी के साए में लड़ा गया, जो अपने आप में एक अनोखी चुनौती थी।
  • चुनावी खेमे : एक ओर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाला महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल) था, जिसने युवा नेता तेजस्वी यादव की ऊर्जा पर दांव लगाया। दूसरी ओर, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला NDA (JDU, BJP और सहयोगी) था, जिसने स्थिरता और विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाया। अविभाजित लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने अकेले चुनाव लड़ा, जिससे NDA के वोटों में बिखराव की आशंका थी।
  • एग्ज़िट पोल का अनुमान : ग्यारह प्रमुख एजेंसियों के औसत ने महागठबंधन के लिए मामूली जीत की भविष्यवाणी की। 243 सीटों की विधानसभा में, महागठबंधन को औसतन 125 सीटें (बहुमत का आंकड़ा 122) और NDA को 108 सीटें दी गईं।
  • वास्तविक नतीजा : 10 नवंबर को परिणाम आए, तो एग्ज़िट पोल पूरी तरह से गलत साबित हुए। NDA ने 125 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन को 110 सीटों पर संतोष करना पड़ा।

विश्लेषण : क्यों हुई यह चूक?
पोलस्टर्स ने मुख्य रूप से बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत वोटों के एकीकरण को समझने में गलती की।
  • 'साइलेंट' फैक्टर: नीतीश कुमार की 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की रणनीति, भाजपा की केंद्र-प्रायोजित कल्याणकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का अंतिम समय में उभरा प्रभाव एग्ज़िट पोल के सैंपलिंग में सही ढंग से कैप्चर नहीं हो पाया। विशेषकर महिला मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा चुपचाप NDA के साथ चला गया।
  • चरमपंथी अनुमान : न्यूज़ 18-टुडेज़ चाणक्य जैसे कुछ पोल्स ने तो महागठबंधन के लिए 180 सीटों तक का अनुमान लगाया, जो वास्तविकता से कोसों दूर था।
  • राजनीतिक परिणाम : एग्ज़िट पोल्स की इस नाकामी ने विपक्ष को 'वोट ट्रांसफर' और 'कमजोर कैम्पेनिंग' की अपनी खामियों पर सोचने के लिए मजबूर किया।
     
2015 का झटका : 'महागठबंधन' की अप्रत्याशित लहर
 
2015 का चुनाव बिहार की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ था, जब लालू प्रसाद यादव (RJD) और नीतीश कुमार (JDU) ने अपने पुराने मतभेद भुलाकर कांग्रेस के साथ एक 'महागठबंधन' बनाया।
  • चुनावी खेमे : महागठबंधन एक ओर था, तो दूसरी ओर भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 'अच्छे दिन' के वादे के साथ NDA की कमान संभाली। NDA में अविभाजित LJP, उपेंद्र कुशवाहा की RLSP और जीतनराम मांझी की HAM (S) शामिल थे।
  • एग्ज़िट पोल का अनुमान : छह प्रमुख एजेंसियों के औसत ने महागठबंधन के लिए मामूली बढ़त का अनुमान लगाया— औसतन 123 सीटें और NDA को 114 सीटें।
  • वास्तविक नतीजा : परिणाम चौंकाने वाले थे। महागठबंधन ने शानदार जीत दर्ज करते हुए 178 सीटें हासिल कीं, जबकि NDA महज़ 58 सीटों पर सिमट गया।
विश्लेषण : 'MMY' फैक्टर की अनदेखी
इस भारी चूक का मुख्य कारण 'महादलित-मुस्लिम-यादव' (MMY) समीकरण की शक्ति को कम आंकना था।
 
  • जातिगत एकजुटता : लालू-नीतीश की जोड़ी ने मुस्लिम (17%) और यादव (14%) वोटों का प्रभावी ढंग से ध्रुवीकरण किया। वहीं, NDA का हिंदू एकीकरण का प्रयास इसके सामने विफल रहा।
  • साइलेंट वोट : दलित और खासकर महिला वोटरों ने अंतिम समय में महागठबंधन की ओर रुख किया, जो पोलस्टर्स के सैंपल्स में सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं हो पाया।
  • निकटतम भविष्यवाणी : सीएनएन आईबीएन-एक्सिस ही एकमात्र एजेंसी थी, जिसने महागठबंधन के लिए 176 सीटों का अनुमान लगाकर वास्तविकता के सबसे करीब थी।
दोनों चुनावों से उभरते सबक : विश्वसनीयता की कसौटी
बिहार के एग्ज़िट पोल्स का इतिहास एक स्पष्ट पैटर्न दिखाता है: जटिल सामाजिक ताने-बाने और ग्रामीण सैंपलिंग की उपेक्षा।
 
  • ग्रामीण पूर्वाग्रह : बिहार की लगभग 90% आबादी ग्रामीण है, लेकिन पोलस्टर्स अक्सर शहरी पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होते हैं, जिससे ग्रामीण मतदाताओं के वास्तविक रुझान को समझने में चूक होती है।
  • अंतिम-मिनट शिफ्ट : 2015 में मोदी लहर का कम होना या 2020 में कल्याणकारी योजनाओं का अंतिम समय में प्रभाव—ये 'लेट स्विंग' अक्सर एग्ज़िट पोल्स के सैंपलिंग विंडो से बाहर रह जाते हैं।
  • जातिगत जटिलता : पोलस्टर्स के पास विश्वसनीय जाति सर्वेक्षण के डेटा की कमी होती है, जिससे वे गठबंधन-विरोधी (जैसे 2020 में चिराग पासवान) और गठबंधन-समर्थक (जैसे 2015 में MMY) वोट ट्रांसफर की जटिलताओं को ठीक से माप नहीं पाते।
बिहार के एग्ज़िट पोल्स का इतिहास हमें सिखाता है कि लोकतंत्र में आंकड़े अंतिम नहीं होते—वोटर की चेतना निर्णायक है।

यह इतिहास राजनीतिक दलों को रणनीतिक लचीलापन सिखाता है। 2015 की बड़ी हार ने भाजपा को बिहार में गठबंधन तोड़ने और 'सॉफ्ट हिंदुत्व' की रणनीति अपनाने को प्रेरित किया। वहीं, 2020 की एग्ज़िट पोल की गलती ने महागठबंधन को 'जीत के भ्रम' में रखा, जिससे हार का सदमा बड़ा हो गया।
 
आगे के चुनावों के लिए, पोलिंग एजेंसियों को जाति-आधारित सैंपलिंग में सुधार, डिजिटल ट्रैकिंग का बेहतर उपयोग और पोस्ट-पोल वैलिडेशन को अपनाना होगा। क्योंकि बिहार के मतदाता के मन की बात को समझना, अभी भी सबसे बड़ी राजनीतिक पहेली बनी हुई है।