इमरान खान भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। वह खुद आम चुनाव का आह्वान कर चुके हैं और विपक्ष से भी चुनाव की तैयारियों में जुट जाने को कह रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग के सूत्र के हवाले से प्रकाशित एक खबर के मुताबिक तीन महीने में आम चुनाव कराना उनके लिए संभव नहीं है।
जिस तरह से इमरान खान ने अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए एक असामान्य 'गेम प्लान' तैयार किया, पाकिस्तान के संसदीय इतिहास में उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती है। इससे पता चलता है कि वह किसी भी सूरत में सत्ता छोड़ने को तैयार नहीं थे।
इमरान खान के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव एक अमेरिकी साज़िश थी, जिसका उद्देश्य किसी भी तरह से उन्हें सत्ता से बेदख़ल करना था। यह अलग बात है कि असेंबली को भंग करके इस साज़िश को उन्होंने ख़ुद ही कामयाब कर दिया है।
अविश्वास प्रस्ताव ने पाकिस्तान में संवैधानिक संकट पैदा कर दिया है। नेशनल असेंबली और कैबिनेट भंग हो चुकी हैं। पंजाब विधानसभा में भी एक ऐसा संकट खड़ा हो गया है, जिसका संवैधानिक और संसदीय परंपरा में कोई उदाहरण नहीं मिलता है।
इमरान खान इस साल जनवरी के बाद से विपक्ष के पैंतरों में आए बदलाव को नहीं भांप सके और इसे उनकी राजनीतिक और सरकारी पोज़िशन में सबसे बड़ी विफलता मानी जा सकती है। वह 'अपरिपक्व आदर्शवादी' आख़िरी समय तक समझते रहे कि विपक्ष को आवश्यक संख्या नहीं मिल पाएगी। लेकिन सब कुछ इसके उलट हुआ।
अब उनके लिए आगे का रास्ता क्या बचा है?
इमरान खान की अब सारी उम्मीदें नए चुनावों और वोट देने का अधिकार रखने वाली जनता से जुड़ी हुई हैं। वह विपक्ष से अपनी विवादित हरकतों को भूलकर आम चुनाव की तैयारियों में जुट जाने को कह रहे हैं। अगर विपक्ष चाहे भी तो यह संभव नहीं है।
आम चुनाव
पकिस्तान के चुनाव आयोग के हवाले से ख़बर है कि, वह अचानक तीन महीने से कम समय में चुनाव नहीं करा पाएगा। उसे कम से कम छह महीने का समय चाहिए होगा। दूसरी ओर कई सरकारी संस्थाओं की तरह, चुनाव आयोग के साथ भी इमरान खान के अच्छे संबंध नहीं हैं। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और कई अन्य मामलों को लेकर हाल के दिनों में दोनों के बीच तनाव काफ़ी बढ़ गया है।
पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन की ख़बर के अनुसार, चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि हाल ही में निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, ख़ास तौर से ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में, जहाँ 26 वें संशोधन के तहत सीटों की संख्या में वृद्धि की गई थी और ज़िले निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार मतदाता सूची का मिलान बड़ी चुनौतियां हैं।
अधिकारी ने कहा कि काम पूरा होने में कम से कम तीन महीने लगेंगे, जिसके बाद मतदाता सूची को अपडेट करना एक और बड़ा काम होगा।
चुनाव सामग्री का ख़रीदना, बैलेट पेपर की वयवस्था और मतदान कर्मचारियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण भी बड़ी चुनौतियां हैं। क़ानून के तहत वाटरमार्क वाले बैलेट पेपर्स का इस्तेमाल करना होता है, जो देश में उपलब्ध नहीं है और उन्हें आयात करना पड़ेगा।
इलेक्शन कमिशन पहले ही बलूचिस्तान में स्थानीय निकाय चुनावों की तारीख़ों की घोषणा कर चुका है, जिसमें 29 मई को मतदान का दिन निर्धारित किया गया है। वहीं पंजाब, सिंध और इस्लामाबाद में भी स्थानीय निकाय चुनाव हो रहे हैं। आम चुनाव कराने की स्थिति में स्थानीय निकाय चुनाव की योजना को रोकना पड़ेगा।
ऐसे में अगर पीटीआई 'विदेशी साज़िश' के जुमले को बेचकर चुनाव में भारी जन समर्थन की उम्मीद कर रही है, तो शायद यह तुरंत संभव न हो।
मज़बूत विपक्ष
इमरान खान को सुप्रीम कोर्ट में हार की सूरत में मज़बूत विपक्ष का सामना करना पड़ेगा। विपक्ष पहले ही संसद में जीत को बहुत नज़दीकी से देख चुका है। अब जबकि वह सरकार बना सकेगा, इमरान खान के लिए अब इस पर क़ाबू पाना बेहद मुश्किल साबित हो सकता है।
कहा जा रहा है कि अपनी साढ़े तीन साल की सरकार में इमरान खान ने जवाबदेही के नाम पर विपक्षी दलों का जो हाल किया है, उन्हें जेलों में भेजा, उन्हें अपमानित किया और आख़िर में इन सभी आरोपों को साबित नहीं कर सके। अब यह देखना बाक़ी है कि विपक्ष उनसे किस तरह बदला लेगा।
प्रथम महिला बुशरा बीबी की क़रीबी सहयोगी फ़राह खान पहले ही भ्रष्टाचार के आरोप में देश छोड़कर दुबई भाग चुकी हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की नेता और नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ ने उनके ख़िलाफ़ एक बयान में आरोप लगाया है कि फ़राह खान ने लाखों रुपए की रिश्वत के बदले पंजाब में पोस्टिंग और तबादले कराए हैं।
वह उनके भ्रष्टाचार का अनुमान 6 अरब रुपये लगा रही है। उनका नाम बर्ख़ास्त गवर्नर चौधरी सरवर और अलीम खान जैसे पीटीआई के कुछ वरिष्ठ दलबदलु और नाराज़ सदस्यों ने भी लिया है।
ये तो अभी शुरुआत है सरकार में आने पर यह तय है कि सभी विपक्षी दल जवाबदेही के नाम पर पीटीआई के लोगों को निशाना बनाएंगे।
पीटीआई का भविष्य
सबसे बड़ा सवाल इमरान खान की अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के भविष्य के बारे में शकं है। कई वरिष्ठ नेता जो अब तक केवल नाराज़ लेकिन ख़ामोश थे, अब इमरान खान पर खुलकर हमला बोल रहे हैं। इनमें पंजाब के बर्ख़ास्त गवर्नर चौधरी सरवर और पूर्व वरिष्ठ प्रांतीय मंत्री अलीम खान सबसे आगे हैं।
पीटीआई सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले और पीटीआई के एटीएम कहे जाने वाले जहांगीर तारीन कब के नाराज़ और अलग हो चुके हैं। वे सभी बहुत शक्तिशाली हैं और पार्टी के अंदर और भी टूट फूट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इस बार आम चुनाव की स्थिति में पीटीआई का कहना है कि वह केवल वैचारिक कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने के लिए टिकट देगी, इलेक्टेबल्स को नहीं। ऐसे में अगर पार्टी के लोग और समर्थक किसी अस्पष्टता का शिकार होते हैं तो चुनाव में पीटीआई को भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। हो सकता है कि वह भंग की गई नेशनल असेंबली की सीटों को भी बरक़रार न रख पाए। ऐसे में पंजाब तो उनके हाथ से जा सकता है।
इलेक्टेबल्स हमेशा उगते सूरज को सलाम करते हैं। क्या वे अब इमरान खान का समर्थन कर पाएंगे?
विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के बिखरने की प्रबल संभावनाएं हैं। विश्लेषक इफ़्तिख़ार अहमद के मुताबिक़, पीटीआई एक साल के अंदर अंदर बिखर जाएगी और आम चुनाव में 30 से ज़्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी। ऐसे में पीटीआई का सबसे ज़्यादा ज़ोर विदेशी साज़िश, विक्टिम और धार्मिक कार्ड के इस्तेमाल पर रहेगा।