तालिबान के शीर्ष कमांडर मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के नेतृत्व में अफ़ग़ान तालिबान का एक शीर्ष प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से मिला। पीएमओ के एक अधिकारी ने बीबीसी उर्दू के शहज़ाद मलिक को बताया कि गुरुवार दोपहर को हुई इस बैठक में पाकिस्तानी सेना प्रमुख भी शामिल हुए।
इससे पहले यह प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के दफ़्तर में विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी से भी मिला। उस बैठक में पाकिस्तानी सेना की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हमीद ने भी भाग लिया।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया कि मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर के नेतृत्व में अफ़ग़ान तालिबान के इस राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल ने अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया समेत आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा की। दूसरी ओर अफ़ग़ानिस्तान के चीफ़ एक्ज़ीक्यूटिव अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह ने उम्मीद जताई है कि पाकिस्तान तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान के साथ शांति वार्ता के लिए राज़ी कर लेगा।
बुधवार को काबुल में पाकिस्तान के राजदूत ज़ाहिद नसरुल्ला ख़ान के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसे अफ़ग़ान सरकार के साथ बातचीत के लिए राज़ी कर सकता है, तो इससे देश में शांति स्थापित करने के प्रयासों को बल मिलेगा।
बुधवार को काबुल में पाकिस्तान के राजदूत ज़ाहिद नसरुल्ला ख़ान के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसे अफ़ग़ान सरकार के साथ बातचीत के लिए राज़ी कर सकता है, तो इससे देश में शांति स्थापित करने के प्रयासों को बल मिलेगा।
पाकिस्तान की जेल में 8 साल : पाकिस्तान की जेल में बंद मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर को 8 साल की हिरासत के बाद पाकिस्तान ने बीते वर्ष रिहा कर दिया था। उन्हें सुरक्षा एजेंसियों ने 2010 में कराची से गिरफ़्तार किया था। इसी वर्ष उन्हें क़तर में तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस का प्रमुख नियुक्त किया गया था।
इस दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच संबंध धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्तों पर आधारित है, जबकि बीते 40 वर्षों से अफ़ग़ानिस्तान अस्थिरता झेल रहा है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का पूरी ईमानदारी से यह मानना है कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है और बातचीत ही अफ़ग़ानिस्तान में शांति का एकमात्र ज़रिया है।
क़ुरैशी ने कहा, हमें ख़ुशी है कि आज दुनिया अफ़ग़ानिस्तान पर हमारे रुख़ का समर्थन कर रही है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में एक ईमानदार भूमिका निभाई है क्योंकि शांत अफ़ग़ानिस्तान इस पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए ज़रूरी है। क़ुरैशी ने कहा, हम चाहते हैं कि अफ़ग़ान वार्ता से जुड़े संबंधित पक्ष इस दिशा में आगे बढ़ें ताकि स्थाई शांति और स्थिरता का मार्ग प्रशस्त हो।
विदेश मंत्री ने कहा कि पिछले कई सालों से पाकिस्तान दुनिया को याद दिला रहा है कि वह अफ़ग़ानिस्तान की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ज़मीनी हक़ीक़त को नज़रअंदाज न करे। उन्होंने कहा कि अफ़ग़ान संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान से इस समूचे इलाक़े में हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आएगी।
अमेरिकी मुख्य वार्ताकार भी पाकिस्तान में मौजूद : विदेश मंत्री ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए मौजूदा क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहमति से एक अभूतपूर्व अवसर मिला है, जिसे याद रखा जाना चाहिए। उन्होंने आशा व्यक्त की कि रुकी हुई अफ़ग़ान शांति वार्ता जल्द ही फिर शुरू होगी।
विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तानी तालिबान के उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान की भूमिका की सराहना की और संबंधित पक्षों के बीच बातचीत की तत्काल बहाली की ज़रूरत पर सहमति व्यक्त की। क़तर में अफ़ग़ानिस्तानी तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस के प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने बीबीसी के नूर नासिर से कहा कि तालिबान के इस प्रतिनिधिमंडल में मुल्ला बरादर समेत उनके 11 वरिष्ठ सदस्य शामिल हैं।
तालिबान के वार्ताकारों का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के मुख्य वार्ताकार रहे ज़िल्मे ख़लीलज़ाद पहले से ही पाकिस्तान में मौजूद हैं। ज़िल्मे ख़लीलज़ाद ने हाल ही में अमेरिका के दौरे पर गए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से मुलाक़ात की थी।
हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान में वे तालिबानी नेताओं से मिलेंगे या नहीं। अगर यह बैठक होती है, तो पाकिस्तानी धरती पर तालिबान प्रतिनिधिमंडल के साथ अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की पहली बैठक होगी।
तालिबान किससे मिले? : तालिबान ने पहले कहा था कि वो पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से मिलेंगे। इसके प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने कहा था कि प्रतिनिधिमंडल इस दौरे पर केवल पाकिस्तानी विदेश विभाग के शीर्ष अधिकारियों से मुलाक़ात करेगा। जुलाई में अपनी अमेरिकी दौरे के दौरान प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा था कि वह लौटकर तालिबानी नेताओं से बैठक करेंगे और उन्हें अफ़ग़ान सरकार के साथ बातचीत करने को कहेंगे।
इसके जवाब में, तालिबान के प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने बीबीसी से कहा था कि अगर प्रधानमंत्री इमरान ख़ान उन्हें आमंत्रित करते हैं तो वे पाकिस्तान जाकर उनसे मुलाक़ात करेंगे। यह पहली बार नहीं था जब अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया को लेकर किसी तालिबान प्रतिनिधिमंडल के पाकिस्तान आने की बात की गई थी।
इस साल फ़रवरी में, अफ़ग़ानिस्तानी तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने एक बयान में कहा कि उनके ऑफिस का एक प्रतिनिधिमंडल 18 फ़रवरी को पाकिस्तान का दौरा करेगा, लेकिन बाद में तालिबान ने कहा कि उसे संयुक्त राष्ट्र में बुलाया गया था। इसी संबंध में, प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने तब कहा था कि उन्होंने अफ़ग़ान सरकार की चिंताओं पर तालिबान नेताओं के साथ बैठक स्थगित कर दी थी।
अफ़ग़ान शांति वार्ता : अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध विराम और अमेरिका के साथ बातचीत शुरू होने के बाद से यह तालिबान प्रतिनिधिमंडल की चौथी विदेशी यात्रा है। इससे पहले तालिबान का यह प्रतिनिधिमंडल रूस, चीन और ईरान का दौरा कर चुका है।
इसी वर्ष सितंबर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विटर पर तालिबान के साथ बातचीत के ख़त्म किए जाने की घोषणा की थी। इससे पहले दोनों पक्षों के बीच बीते 11 महीने से बातचीत चल रही थी, लेकिन अचानक ही ट्रंप ने इस वार्ता को समाप्त कर दिया।
कौन हैं मुल्ला बरादर? : मुल्ला बरादर को 2010 में पाकिस्तान के कराची में एक ऑपरेशन के दौरान गिरफ़्तार किया गया था, 8 साल जेल में रखने के बाद उन्हें 2018 में रिहा किया गया। उसके बाद से यह पाकिस्तान का उनका पहला दौरा है।
इमरान ख़ान ने हाल ही में उनके बारे में कहा, हम अमेरिका से बातचीत के लिए तालिबान को क़तर लेकर आए हैं। सूत्रों के मुताबिक़ पाकिस्तान ने अमेरिका के अनुरोध पर ही मुल्ला बरादर को रिहा किया था ताकि वे बातचीत में अहम भूमिका निभा सकें। 51 वर्षीय मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के क़रीबी सहयोगी और शीर्ष कमांडर में उनके बाद नंबर 2 पर थे।
अल जज़ीरा के पत्रकार कार्लोटा बाल्स की एक डॉक्यूमेंट्री में अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने कहा था कि मुल्ला बरादर और कई तालिबान नेता 2010 में अफ़ग़ान सरकार से बातचीत के लिए तैयार थे। हालांकि उनके अनुसार तब अमेरिका और पाकिस्तान उनसे बातचीत के पक्ष में नहीं था और इसके बाद हीमुल्ला बरादर को गिरफ़्तार कर लिया गया। करज़ई के मुताबिक़ उन्होंने तब मुल्ला बरादर की गिरफ़्तारी का विरोध भी किया था।