गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Why kejriwal gets angry on center ordinance on Delhi
Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 21 मई 2023 (08:03 IST)

दिल्ली के लिए लाए गए अध्यादेश में क्या है, जिसे लेकर केंद्र से नाराज हैं अरविंद केजरीवाल

Arvind Kejriwal
प्रेरणा, बीबीसी संवाददाता
''जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया था, उसके अगले ही दिन केंद्र सरकार ने सोच लिया था कि अध्यादेश लाकर इसे पलटना है। अब जैसे ही सुप्रीम कोर्ट बंद हुआ, केंद्र सरकार अध्यादेश लेकर आ गई और बीते 11 मई को दिए उनके फ़ैसले को पलट दिया गया।''
 
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और केंद्र सरकार पर ये आरोप लगाए। केजरीवाल का कहना है कि केंद्र सरकार का लाया अध्यादेश पूरी तरह से ग़ैरकानूनी, ग़ैर संवैधानिक और जनतंत्र के ख़िलाफ़ है।
 
केजरीवाल ने कहा, ''हमने सुना है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है, लेकिन अध्यादेश लाने के बाद इस याचिका का क्या औचित्य है। इस याचिका की सुनवाई तो तभी हो सकती है जब वो अपना अध्यादेश वापस ले लें। ''
 
केजरीवाल के मुताबिक उन्होंने तय किया है कि अब वो केंद्र सरकार के अध्यादेश के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का रुख़ करेंगे।
 
केंद्र सरकार का अध्यादेश क्या कहता है?
दरअसल, केंद्र सरकार शुक्रवार देर शाम ये अध्यादेश लेकर आई है। सरल शब्दों में कहें तो इस अध्यादेश के तहत अधिकारियों की ट्रांसफ़र और पोस्टिंग से जुड़ा आख़िरी फैसला लेने का हक़ उपराज्यपाल को वापस दे दिया गया है।
 
सरकार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 लेकर आई है। इसके तहत दिल्ली में सेवा दे रहे 'दानिक्स' कैडर के 'ग्रुप-ए' अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए 'राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण' गठित किया जाएगा। दानिक्स यानी दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस।
 
प्राधिकरण में कौन-कौन होगा?
  • प्राधिकरण में तीन सदस्य होंगे।
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री
  • दिल्ली के मुख्य सचिव
  • दिल्ली के गृह प्रधान सचिव
  • मुख्यमंत्री को इस प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है।
 
प्राधिकरण को सभी 'ग्रुप ए और दानिक्‍स के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का हक़ तो होगा लेकिन आख़िरी मुहर उपराज्यपाल की होगी। यानी अगर उपराज्यपाल को प्राधिकरण का लिया फैसला ठीक नहीं लगा तो वो उसे बदलाव के लिए वापस लौटा सकते हैं। फिर भी अगर मतभेद जारी रहता है तो अंतिम फैसला उपराज्यपाल का ही होगा।
 
अध्यादेश लाने के पीछे केंद्र सरकार का तर्क
केंद्र सरकार ने कहा है कि दिल्ली देश की राजधानी है। 'पूरे देश का इस पर हक़ है' और पिछले कुछ समय से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की 'प्रशासनिक गरिमा को नुकसान' पहुंचाया है।
 
''कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थान और अथॉरिटी जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद, सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में हैं। कई संवैधानिक पदाधिकारी जैसे- सभी देशों के राजनयिक दिल्ली में रहते हैं और अगर कोई भी प्रशासनिक भूल होती है तो इससे पूरी दुनिया में देश की छवि धूमिल होगी।''
 
केंद्र सरकार का कहना है कि राजधानी में लिया गया कोई भी फैसला या आयोजन न केवल यहां के स्थानीय लोगों, बल्कि देश के बाकी नागरिकों को भी प्रभावित करता है।
 
क्या कहते हैं कानून के जानकार?
हिमाचल प्रदेश नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर चंचल कुमार ये अध्यादेश लाने को लेकर केंद्र सरकार के अधिकार पर सवाल उठाते हैं।
 
वो कहते हैं, ''दिल्ली की तुलना दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों से नहीं की जा सकती। यहां लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनी जाती है और संवैधानिक रूप से इस चुनी हुई सरकार को ही अधिकारियों की ट्रांसफर, पोस्टिंग से जुड़े सभी मामलों में फ़ैसला लेने का अधिकार है।''
 
''संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत भले ही कार्यपालिका को विशेष मामलों में अध्यादेश लाने का अधिकार है, लेकिन इस मामले में ये अधिकार केंद्र के पास नहीं है।''
 
प्रोफेसर चंचल कहते हैं कि केंद्र सरकार का ये फ़ैसला 'शुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित' है।
 
केंद्र सरकार बनाम दिल्ली सरकार
जब सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया था, तब वरिष्ठ पत्रकार और आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता आशुतोष ने इसे 'केजरीवाल सरकार की जीत' बताया था।
 
उन्होंने कहा था, ''ये मामला केजरीवाल बनाम केंद्र सरकार का था। एलजी के माध्यम से केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रही थी, उन्हें कंट्रोल कर रही थी, अब इस फ़ैसले से ये साफ़ हो गया है कि दिल्ली सरकार ही दिल्ली के नौकरशाहों को देखेगी।"
 
लेकिन अब जब इस मामले में केंद्र सरकार ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है और दूसरी तरफ़ अध्यादेश भी ले आई है, ऐसे में केंद्र सरकार बनाम दिल्ली सरकार की राजनीति किस ओर जा रही है?
 
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि ये कश्मकश और रस्साकशी की राजनीति है।
 
वो कहते हैं, ''सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला लोकतांत्रिक लिहाज़ से बिल्कुल सही था। केंद्र सरकार कोर्ट के फैसले को नगण्य बनाने के लिए अध्यादेश लाकर आई है, जो कि ठीक नहीं है। ''
 
विनोद शर्मा सवाल करते हैं, "क्या केंद्र सरकार ये मानती है कि संवैधानिक पीठ का दिया गया फ़ैसला ग़लत था?"
 
वो कहते हैं, ''सरकार का फ़ैसला नैतिकता और लोकतंत्र के मापदंड पर सही नहीं उतरता। केंद्र सरकार का उद्देश्य साफ़ है कि वो दिल्ली सरकार को जड़मत रखना चाहती है। वो चाहती है कि ये सक्रिय न हो।''
 
''भारतीय जनता पार्टी, (तब की) कांग्रेस सरकार की इस बात को लेकर आलोचना करती है कि उन्होंने शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का जो फ़ैसला आया था उसे एक नया क़ानून पारित कर नगण्य कर दिया, लेकिन आज वो ख़ुद वही काम कर रहे हैं।''
 
''अगर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलटना ही है तो अध्यादेश लाने की बजाए क़ानून लाकर बदलें।''
 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बीते 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि अधिकारियों के ट्रांसफ़र और पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होना चाहिए।
 
पीठ ने कहा कि दिल्ली में सभी प्रशासनिक मामलों में सुपरविज़न का अधिकार उपराज्यपाल के पास नहीं हो सकता।
 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के हर अधिकार में उपराज्यपाल का दखल नहीं हो सकता।
 
पीठ ने कहा, "अधिकारियों की पोस्टिंग और ट्रांसफ़र का अधिकार लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के पास होता है।"
 
"भूमि, लोक व्यवस्था और पुलिस को छोड़ कर सर्विस से जुड़े सभी फैसले, आईएएस अधिकारियों की पोस्टिंग (भले ही दिल्ली सरकार ने किया हो या नहीं) उनके तबादले के अधिकार दिल्ली सरकार के पास ही होंगे।"
 
केजरीवाल को थी आशंका
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीती 19 मई को ट्वीट कर ये आशंका जताई थी कि केंद्र सरकार ऑर्डिनेंस लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने जा रही है।
 
उन्होंने लिखा था, ''एलजी साहिब, सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्यों नहीं मान रहे? दो दिन से सर्विसेज़ सेक्रेटरी की फाइल साइन क्यों नहीं की? कहा जा रहा है कि केंद्र अगले हफ़्ते ऑर्डिनेंस लाकर सुप्रीम के आदेश को पलटने वाली है? क्या केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने की साज़िश कर रही है? क्या एलजी साहिब ऑर्डिनेंस का इंतज़ार कर रहे हैं, इसलिए फाइल साइन नहीं कर रहे?''
 
कई जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आठ दिन बाद अरविंद केजरीवाल का 'डर' सच साबित हुआ है।
 
क्या था विवाद?
दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन इसे अपनी विधानसभा बनाने का हक़ मिला हुआ है। संविधान के अनुच्छेद 239 (एए) के बाद दिल्ली को नेशनल कैपिटल टेरिटरी घोषित किया गया।
 
दिल्ली की सरकार का तर्क था कि चूंकि यहां पर जनता की चुनी हुई सरकार है इसलिए दिल्ली के सभी अधिकारियों के ट्रांसफ़र और पोस्टिंग का अधिकार भी सरकार के पास होना चाहिए। चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया है।
 
फरवरी 2019 में, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने इस मामले पर बँटा हुआ फ़ैसला सुनाया था।
 
जस्टिस सीकरी ने अपने फ़ैसले में कहा कि सरकार में निदेशक स्तर की नियुक्ति दिल्ली सरकार कर सकती है। वहीं जस्टिस भूषण का फ़ैसला इसके उलट था, उन्होंने अपने फ़ैसले में कहा था कि दिल्ली सरकार के पास सारी कार्यकारी शक्तियां नहीं है। अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल के पास होने चाहिए।
 
दो बेंच की पीठ के फ़ैसले में मतभेद होने के बाद असहमति वाले मुद्दों को तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया था लेकिन बीते साल केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि ये मामला बड़ी संवैधानिक बेंच को भेजा जाए क्योंकि ये देश की राजधानी के अधिकारियों की पोस्टिंग और तबादले से जुड़ा है।
 
इसके बाद ये फ़ैसला पांच जजों की संवैधानिक पीठ को भेजा गया और आख़िर में 11 मई को इस मामले में फ़ैसला सुनाया गया।
 
ये भी पढ़ें
2000 rupees note: 2000 के नोट विदाई के अवसर पर जानिए रुपए की कहानी, RBI कैसे करता है भारतीय करेंसी का प्रबंधन