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Last Modified: शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017 (11:32 IST)

1200 करोड़ के बजट वाली सिखों की 'मिनी संसद'

1200 करोड़ के बजट वाली सिखों की 'मिनी संसद' - shiromani gurdwara management committee
- रविंदर सिंह रॉबिन
गोविंद सिंह लोंगवाल को सिखों के सबसे बड़े संगठन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) का अध्यक्ष चुना गया है। लोंगवाल एसजीपीसी के 42वें अध्यक्ष बनेंगे। इससे पहले किरपाल सिंह बडूंगर अध्यक्ष थे। लोंगवाल पंजाब में अकाली दल (बादल) के विधायक भी रह चुके हैं। बंडूगर भी अकाली दल के वयोवृद्ध नेता हैं और दो बार एसजीपीसी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
 
एसजीपीसी सिखों का सबसे बड़ा संगठन होने के अलावा सबसे ताक़तवर संगठन भी है जिसकी कार्यकारिणी का हर पांच साल में चुनाव किया जाता है। एसजीपीसी का सलाना बजट 1200 करोड़ रुपये का है। इसे सिख समुदाय की मिनी संसद भी कहा जाता है जिसका काम है अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर समेत उत्तर भारत के लगभग सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन संभालना।
 
पहले पूरी दुनिया के गुरुद्वारों की देखरेख की ज़िम्मेदारी इसी की थी, लेकिन बाद में पाकिस्तान आदि में अन्य कमेटियां बन जाने और हरियाणा के गुरुद्वारों का अलग संगठन बनाए जाने की मांग के कारण इसका अधिकार क्षेत्र सिमट गया। अमेरिका में भी अमेरिकी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी है जिसके तहत 87 गुरुद्वारे आते हैं।
 
97 साल पुराना इतिहास
सबसे पहले इसकी स्थापना 175 सदस्यों के साथ 1920 में हुई थी और उसी समय इसका नाम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी रखा गया। इसके बाद सिखों के अधिकारों को मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने सिख गुरुद्वाराज़ एक्ट 1925 पारित किया।
 
एसजीपीसी मुख्य रूप से धर्म और शिक्षा को बढ़ावा देने, गुरुद्वारों का प्रबंधन, गुरु का लंगर चलाने और सिख समुदाय के हितों को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी निभाती है। इसकी पहली बैठक 12 दिसम्बर 1920 को अकाल तख़्त में हुई थी। इसी में इसका संविधान बनाया गया और पहले अध्यक्ष सरदार सुंदर सिंह मजीठिया को चुना गया।
 
इसके एक साल बाद ही इसे सोसाइटीज़ रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत 30 अप्रैल 1921 को पंजीकृत कराया गया और उस समय बाबा खड़क सिंह इसके अध्यक्ष बने। अकाल तख़्त दुनिया भर के सिखों की शीर्ष धार्मिक संस्था है जिससे सारे संगठन जुड़े हुए हैं। वर्तमान में एसजीपीसी के 191 सदस्य हैं जिनमें स्वर्ण मंदिर में पांच तख़्तों के जत्थेदार और हरमिंदर साहिब का मुख्य ग्रंथी और 15 अन्य नामित सदस्य हैं। बाकी 170 सदस्य सीधे चुनाव से आते हैं।
 
राजनीति में दख़ल
वो गुरुद्वारों की सुरक्षा और रख रखाव के अलावा पुरातात्विक महत्व के सिख गुरुओं के वस्त्रों, हथियारों, किताबों और अन्य कलात्मक सामानों की देख रेख की ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा पाती है। गुरुद्वारों के अलावा एसजीपीसी कई प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों, मेडिकल कॉलेजों, अस्पताल और कई कल्याणकारी संस्थाएं भी चलाती है। धार्मिक रूप से ये निकाय तो अहम है ही, राजनीति में इसका काफ़ी दख़ल है, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल के मुख्य वोटर भी सिख ही हैं।
 
पिछले कुछ सालों से शिरोमणि अकाली दल (बादल) का सिखों के इस धार्मिक निकाय पर पूरा नियंत्रण रहा है। जिसकी वजह से उसे पिछले दो कार्यकालों में राज्य की सत्ता हासिल हुई थी। एसजीपीसी का भले ही पाकिस्तान के गुरुद्वारों पर कोई नियंत्रण नहीं है लेकिन वो हर साल पाकिस्तान के गुरुद्वारों की तीर्थयात्रा का आयोजन करती है और पूरी दुनिया के सिख संगठनों के बीच एक तालमेल स्थापित करने का काम करती है। 9/11 की घटना के बाद अमेरिका और यूरोप में सिख समुदाय के लिए पहचान का संकट खड़ा हुआ है, इस मसले पर भी एसजीपीसी ने बातचीत शुरू की।
 
विवाद
इस पर तब संकट खड़ा हुआ था जब हरियाणा में तदर्थ हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाई गई। नानकशाही कैलेंडर को लेकर भी पूरी दुनिया के सिख संगठनों में मतभेद उभरे। ये कैलेंडर 2003 में स्वीकार किया गया, लेकिन इसमें एसजीपीसी ने कई संशोधन किए जिसकी वजह से सिख समुदाय में मतभेद और बढ़ा।
 
एसजीपीसी के लिए 1984 के दंगों का मामला भी महत्वपूर्ण रहा है। हिंसा के दोषी अभी भी क़ानून के शिकंजे से बाहर हैं और पीड़ितों का कहना है कि इतने सालों बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिला। समुदाय को इंसाफ दिलाने के लिए पर्याप्त कोशिश न करने के आरोप भी एसजीपीसी पर लगे।
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