- टीम बीबीसी हिन्दी (नई दिल्ली)
आर्थिक संकट में फंसा पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की शरण में गया है, लेकिन वहां भी उसकी राह आसान नहीं दिख रही है। अमेरिका ने कहा है कि वो पाकिस्तान की इस पहल पर नजर बनाए हुए है।
अमेरिका ने कहा है कि पाकिस्तान पहले से ही चीनी क़र्ज़ में उलझा हुआ है, इसलिए उसकी समीक्षा ज़रूरी है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हीदर नौर्ट ने शुक्रवार को कहा था कि पाकिस्तान को आईएमएफ़ से किसी भी तरह के क़र्ज़ मिलने से पहले उस पर बाक़ी क़र्ज़ों की समीक्षा की जाएगी।
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी पाकिस्तान को क़र्ज़ देने को लेकर आईएमएफ़ को आगाह किया था। अमेरिका के इस कड़े तेवर को लेकर अब पाकिस्तान ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
अमेरिका हुआ सख़्त
इंडोनेशिया में विश्व बैंक और आईएमफ़ की वार्षिक बैठक से वापस लौटे पाकिस्तान के वित्त मंत्री असद उमर ने अमेरिका के समीक्षा वाले बयान को ख़ारिज कर दिया है। असद उमर ने कहा कि आईएमएफ़ से किसे फंड मिले और किसे नहीं इस पर अमेरिका को वीटो पावर नहीं है।
हालांकि अमेरिका के इस रुख़ से पाकिस्तान के लिए आईएमएफ़ से क़र्ज़ लेना आसान नहीं होगा, क्योंकि आईएमएफ़ में अमेरिका सबसे बड़ा अंशदाता है और उसके पास 17.68 फ़ीसदी वोट हैं।
ऐसे में पाकिस्तान अमेरिका को नाराज़ कर आईएमएफ़ से क़र्ज़ हासिल नहीं कर पाएगा। आईएमएफ़ में अंशदाता की हैसियत से चीन तीसरे नंबर पर है और वो जापान से पीछे है। चीन के पास महज 6.49 वोट हैं।
उमर ने पाकिस्तान के आईएमएफ़ जाने के फ़ैसले का भी बचाव किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के पास कोई और विकल्प नहीं था। असद उमर ने कहा कि पाकिस्तान को तत्काल 12 अरब डॉलर की ज़रूरत है और यह क़र्ज़ नहीं मिलता है तो हालात बदतर हो जाएंगे। वित्त मंत्री ने कहा कि आर्थिक संकट से निकलने की कोशिशें जारी हैं और बाक़ी स्रोतों से भी विदेशी मुद्रा जुटाने का विकल्प देखा जा रहा है।
19वीं बार आईएमएफ़ की शरण में पाकिस्तान
असद उमर ने कहा, ''हम लोग आईएमएफ़ 19वीं बार जा रहे हैं और उम्मीद है कि यह आख़िरी बार होगा। आईएमएफ़ की टीम सात नवंबर को पाकिस्तान आएगी और प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।''
उमर ने कहा कि पाकिस्तान आईएमएफ़ की उन शर्तों को नहीं मानेगा जिनसे राष्ट्रहित प्रभावित होंगे। पाकिस्तानी वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और चीन की मदद के बदले कोई शर्त नहीं मानी है। उन्होंने कहा कि सऊदी से उधार तेल लेने की बात चल रही है। हालांकि सऊदी ने अभी कोई आश्वासन नहीं दिया है।
असद उमर ने ये भी कहा है कि पाकिस्तान चीन से लिए क़र्ज़ की जानकारी आईएमएफ़ से साझा करेगा। इससे पहले पाकिस्तान ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। उमर ने कहा कि इसमें कोई छुपाने वाली बात नहीं है।
उन्होंने कहा, ''पाकिस्तान को चीन से छोटी अवधि के सस्ते क़र्ज़ मिले हैं और अगले तीन सालों में चुका दिए जाएंगे। हमने आईएमएफ़ से 12 अरब डॉलर मांगे हैं, लेकिन हमें इससे छोटी राशि मिलेगी।'' उमर ने ये भी कहा है कि आईएमफ़ के पास जाने से पहले पाकिस्तान ने अपने दोस्त देश सऊदी और चीन से मश्विरा किया था।
उमर ने कहा कि चुनावी अभियान के दौरान इमरान ख़ान ने आईएमएफ़ नहीं जाने की बात कही थी, लेकिन सरकार बनने के बाद हमें लगा कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। नवाज शरीफ़ की सरकार में अर्थव्यवस्था पिछले 13 सालों में उच्च दर के साथ आगे बढ़ रही थी, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता आने के बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी अस्थिर हुई है।
कोई विदेशी निवेश नहीं
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की सबसे जटिल समस्या यह है कि कोई विदेशी निवेश नहीं आ रहा है। पाकिस्तान में वित्तीय वर्ष 2018 में महज 2.67 अरब डॉलर का निवेश आया था, जबकि चालू खाता घाटा 18 अरब डॉलर का रहा। आईएमएफ़ ने कहा है कि अगले वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान में महंगाई दर 14 फ़ीसदी तक पहुंच सकती है। आईएमएफ़ से क़र्ज़ लेने के बाद इमरान ख़ान की सरकार के लिए लोकलुभावन वादों से पीछे हटना होगा।
समस्या यह है कि लगातार कम होते विदेशी मुद्रा भंडार के कारण पाकिस्तान को पास कोई विकल्प नहीं था। पाकिस्तान के सूचना मंत्री ने कहा है कि अनिश्चितता बढ़ रही थी और शेयर बाज़ार में भगदड़ सी स्थिति थी। आईएमएफ़ की शरण में पाकिस्तान उस वक़्त गया है जब चीन और अमेरिका के रिश्ते ठीक नहीं हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि आईएमएफ़ पाकिस्तान को क़र्ज़ तभी देगा जब वो चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट के तहत चीन से मिले क़र्ज़ों की पूरी जानकारी ले लेगा। दोनों देशों ने इस परियोजना की शर्तों और कुल राशि को सार्वजनिक नहीं किया है।
पाकिस्तान और चीन का कहना है कि सीपीसी 62 अरब डॉलर की तीन साल पुरानी परियोजना है जिसके तहत चीन पाकिस्तान में सड़क, पावर प्लांट और बंदरगाह बना रहा है और पाकिस्तान के वर्तमान आर्थिक संकट से इसका कोई संबंध नहीं है।
हालांकि इस परियोजना के लिए पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर मशीनरी और कच्चे माल के आयात की ज़रूरत पड़ रही हो जो चीन से ही करना पड़ रहा है। मतलब चीनी क़र्ज़ से पाकिस्तान चीन से ही सामान ख़रीद रहा है।
चीन की क़र्ज़ डिप्लेमैसी?
अमेरिका का कहना है कि चीन ने क़र्ज़ को राजनयिक हथियार बना लिया है। अमेरिका ने इसी साल जुलाई में कहा था कि चीन क़र्ज़ देता है, उसी क़र्ज़ से अपना सामान बेचता है, उस परियोजना में अपने ही लोगों को काम देता है और क़र्ज़ इतना बढ़ जाता है कि उसका मालिकाना हक़ अपने पास रख लेता है।
मिसाल के तौर पर श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट को पेश किया जा रहा है। श्रीलंका क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहा तो उस पोर्ट ही चीन को सौंपना पड़ा। हालांकि चीन इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करता है। दूसरी तरफ़ श्रीलंका और पाकिस्तान की मुश्किलों से सबक लेते हुए मलेशिया ने चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड के तहत 22 अरब डॉलर के एक प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया।
पिछले हफ़्ते पाकिस्तान की विदेश मुद्रा भंडार चार सालों के निचले स्तर 8.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया। स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के मुताबिक यह दो महीने के आयात से भी कम की रक़म है। चुनावी अभियान के दौरान इमरान ख़ान कहते थे कि वो ख़ुदकुशी करना पसंद करेंगे, लेकिन दुनिया के किसी भी देश से पैसे मांगने नहीं जाएंगे।
लेकिन इमरान ख़ान जब पहले विदेशी दौरे पर सऊदी पहुंचे तो उन्होंने आर्थिक मदद ही मांगी। पिछले महीने ही सरकार ने कहा था कि पिछले पांच सालों में पाकिस्तान पर क़र्ज़ 60 अरब डॉलर से बढ़कर 95 अरब डॉलर हो गया है।
एक ही टोकरी में सारे अंडे?
सीपीईसी परियोजना को लेकर कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने सारे अंडे एक ही टोकरी में रख दिए हैं और अगर अंडे फूटे तो एक भी नहीं बचेगा। सीपीईसी से पाकिस्तान की ऊर्जा संकट के समाधान की बात कही जा रही है, लेकिन इसे लेकर कई तरह की दिक़्क़तें भी हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन पाकिस्तान को अपने इस प्रोजेक्ट में चीनी उपकरण ही ख़रीदने पर मजबूर कर रहा है।
पाकिस्तान को चीन इसलिए क़र्ज़ बढ़ाते जा रहा है और पाकिस्तान इसमें और उलझता जा रहा है। पाकिस्तान पर क़र्ज़ और उसकी जीडीपी का अनुपात 70 फ़ीसदी तक पहुंच गया है। कई विश्लेषकों का कहना है कि चीन का दो तिहाई क़र्ज़ सात फ़ीसदी के उच्च ब्याज दर पर है।